चुनावी साल में शक्ति केन्द्रों की कवायद

विधानसभा चुनाव

भोपाल/हरीश फतेहचदांनी /बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में विधानसभा चुनाव इसी साल के अंत में होने हैं। चुनाव के लिए अब महज दस माह का समय ही रह गया है, ऐसे में राजनैतिक दल खासतौर पर भाजपा व कांग्रेस अपनी चुनावी बिसात बिछाने की पूरी तैयारियां कर चुके हैं। बीते चुनाव की ही तरह इस बार भी प्रदेश में अभी से इन दोनों दलों में बेहद कड़ा मुकाबला नजर आना शुरू हो गया है। यही वजह है कि इन दलों द्वारा नई-नई चुनावी रणनीति तैयार कर उसके हिसाब से संगठन को गढ़ने  का काम किया जा रहा है। संगठन के मामले में भाजपा का  तोड़ अब भी कांग्रेस के पास नही है। इसी क्रम में अब भाजपा ने नया प्रयोग करने की कवायद शुरू कर दी है।  इसके तहत प्रदेश में गुजरात की तर्ज पर शक्ति केन्द्रों के गठन पर फोकस करना शुरू कर दिया है। दरअसल गुजरात की ऐतहासिक जीत की वजह इन शक्ति केन्द्रों को भी माना जा रहा है।  इसकी वजह है गुजरात में भाजपा ने पहली बार शक्ति केंद्र बनाने का प्रयोग किया था , जो चुनावी दृष्टि से बेहद कारगर रहा है।  दरअसल शक्ति केन्द्र मंडल और बूथ के बीच की कड़ी होता है।  एक शक्ति केन्द्र में आठ से ले दस बूथों को शामिल किया जाता है। इसके शक्ति केन्द्र प्रभारी और और संयोजक की नियुक्ति की जाती है।  शक्ति केन्द्रों का प्रयोग भाजपा उप्र के विधानसभा चुनावों में भी कर चुकी है। इन केन्द्रों को पूर्व के सेक्टर की जगह बनाया जा रहा है। अब प्रदेश में भी इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं , लिहाजा शक्ति केन्द्रों में प्रदेश में भी पूरी तरह से आकार दिए जाने की कवायद की जा रही है। उधर, पार्टी की चुनावी तैयारियों की गंभीरता को इससे समझा जा सकता है कि उसके कई दिग्गज नेता इन दिनों प्रदेश के अलग-अलग अंचलों में प्रवास कर जनता की नब्ज टटोल रहे हैं।  इन नेताओं का फोकस खासतौर पर उन क्षेत्रों पर है, जो पार्टी के हिसाब से कमजोर माने जा रहे हैं।  उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ नेता और मप्र के सह प्रदेश प्रभारी रामशंकर कठेरिया द्वारा ज्योतिरादित्य सिंधिया व नरेंद्र सिंह तोमर के प्रभाव वाले ग्वालियर-चंबल संभाग में कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें की जा रही हैं। प्रदेश प्रभारी पी. मुरलीधर राव महाकोशल क्षेत्र का दौरा कर चुके हैं। प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा जबलपुर और संगठन महामंत्री हितानंद ने उमरिया में फीडबैक लिया है। पार्टी के अन्य नेता भी विभिन्न क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं से संवाद कर रहे हैं।
ग्वालियर-चंबल पर खास फोकस
चुनावी साल शुरू होते ही भाजपा के वरिष्ठ पदाधिकारी बेहद सक्रिय हो गए हैं। प्रदेश प्रभारी पी मुरलीधर राव बीते कुछ दिनों से नर्मदापुरम संभाग में दौरे कर रहे हैं। हरदा-नर्मदापुरम और बैतूल जिलों में कोर कमेटी की बैठक लेने के बाद अब वे चंबल संभाग में सक्रिय हैं।  दरअसल भाजपा के लिए कमजोर कड़ी माने जा रहे ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ नेता औ मप्र के सह प्रदेश प्रभारी रामशंकर कठेरिया भी प्रवास कर रहे हैं। कठेरिया खुद अनुसूचित जाति के नेता हैं और इन दोनों संभाग में अजा वोटबैंक भाजपा से पिछले विधानसभा चुनाव 2018 से नाराज चल रहा है, जिसका खामियाजा पार्टी उठा चुकी है। दरअसल, एट्रोसिटी एक्ट में हुए संशोधन के बाद 2016 में भारत बंद के दौरान इस अंचल में आठ लोगों की मौत हुई थी, सैकड़ों एफआइआर दर्ज होने के कारण यह वर्ग भाजपा से दूर हो गया था। यही वजह है कि कुछ महीनों पहले ग्वालियर और मुरैना में महापौर का चुनाव भी भाजपा हार गई थी। जबकि दोनों क्षेत्र केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर के प्रभाव वाले क्षेत्र हैं। इसी तरह से प्रदेश संगठन महांमत्री हितानंद विंध्य क्षेत्र के जिलों में दौरे कर रहे हैं। वे रीवा- सीधी सहित उमरिया में कार्यकर्ताओं को साध रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बुंदेलखंड के टीकमगढ़ में जाकर ग्रामीणों को भूखंड के अधिकार पत्र बांट रहे हैं। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा महाकोशल में सक्रिय बने हुए हैं। उधर भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि दरअसल मंडल स्तर ज्यादा बूथ होने के कारण हर बूथ की निगरानी नहीं हो पाती है। शक्ति केंद्र में आठ-दस बूथ होने से उनकी मॉनिटरिंग बहुत अच्छे तरीके से होती है। शक्ति केंद्र के संयोजक और प्रभारी सीधे राज्य नेतृत्व के संपर्क में रहते हैं। मप्र में भी संगठन ने इस दिशा में काम शुरू कर है।
शक्ति केंद्रों से निगरानी आसान
मध्य प्रदेश में भाजपा अब तक मंडल स्तर(विकास खंड) से सारे कामकाज की निगरानी करती रही है लेकिन, गुजरात में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी ने आठ से 10 बूथों पर एक शक्ति केंद्र बनाया था। पार्टी ने चुनाव की सारी तैयारियों की जिम्मेदारी इन्हीं शक्ति केंद्रों को दी थी। प्रदेश स्तर से लेकर हर स्तर पर सीधे शक्ति केंद्रों की निगरानी की गई। इसके परिणाम बढिया आए। पहले मंडल स्तर के पास जो अधिकार थे, वह शक्ति केंद्रों को सौंप दिए गए। इन शक्ति केंद्र में एक संयोजक और एक प्रभारी की नियुक्ति की गई थी।

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