भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। मध्य प्रदेश ऐसा राज्य है जहां, पर शहरी इलाकों के अस्पतालों में जहां चिकित्सकों की भरमार बनी हुई तो छोटे शहरी इलाकों के अस्पताल चिकित्सकों की कमी से जूझ रहे हैं। इसमें भी ग्रामीण इलाकों के अस्पतालों में तो पूरी तरह से हाल बेहाल बने हुए हैं। दरअसल इसकी बड़ी वजह है विभाग द्वारा की जाने वाली विसंगति पूर्ण पदस्थापना। विभाग के आला अफसरों द्वारा अपने चहेते चिकित्सकों को उनकी मनचाही जगह पदस्थापना कर दी जाती है फिर चाहे पद हो या नहीं। यही वजह है कि बड़े शहरों में स्वीकृत चिकित्सकों के पदों की तुलना में डेढ़ गुना अधिक चिकित्सक सालों से पदस्थ है , जबकि छोटे शहरों व ग्रामीण इलाकों के सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों के पद खाली पड़े हुए हैं।
हालात यह हैं कि भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर जैसे महानगरों में तो एक पद की तुलना में कई-कई चिकित्सक तक पदस्थ हैं। अच्छी निजी प्रैक्टिस और बच्चों की पढ़ाई के लालच में भारी संख्या में डाक्टरों ने अपने रसूख की दम पर बड़े शहरों में पदस्थापना करवा रखी है। छोटे और पिछड़े जिलों में डाक्टर जाना ही पसंद नहीं करते हैं, जिसकी वजह से ऐसे जिलों में स्वीकृत पदों की तुलना में आधे से अधिक पद रिक्त पड़े हुए हैं। ऐसे जिलों के हाल इससे ही समझे जा सकते हैं कि मंडला और मंदसौर में 72 और झाबुआ में 65 प्रतिशत विशेषज्ञ के पद रिक्त पड़े हुए हैं। इसके उलट भोपाल में स्वीकृत पद से 56 प्रतिशत ज्यादा विशेषज्ञ और 62 प्रतिशत अधिक चिकित्सा अधिकारी पदस्थ हैं। इसी तरह से अन्य बड़े शहरों की बात की जाए तो ग्वालियर में विशेषज्ञ 59 प्रतिशत व चिकित्सा अधिकारी 94 प्रतिशत, इंदौर में विशेषज्ञ 18 प्रतिशत और चिकित्सा अधिकारी 86 प्रतिशत अधिक पदस्थ हैं। छोटे जिलों में निजी विशेषज्ञ बहुत कम हैं। ऐसे में सरकार को इन जिलों को प्राथमिकता में रखना चाहिए, पर ऐसा होता नहीं दिखता है। बड़े शहरों के अस्पतालों में पहले से ही स्वीकृत पद भरे हुए थे। लोक सेवा आयोग से नई नियुक्तियां होने के बाद भी डाक्टरों को ग्रामीण क्षेत्र के अस्पतालों या छोटे जिलों में पदस्थ करने की जगह बड़े शहरों के अस्पतालों में पदस्थ कर दिया जाता है।
इस तरह की विसंगति आम है
विशेषज्ञ अधिक होने की एक वजह यह भी है कि जिला अस्पताल, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और सिविल अस्पताल में पदस्थ स्नातकोत्तर चिकित्सा अधिकारियों को पदोन्नत कर विशेषज्ञ बना दिया गया। विशेषज्ञ बनाए जाने के बाद उनकी पदस्थापना दूसरी जगह कर दी गई, लेकिन कई विशेषज्ञ अपने रसूख की दम पर फिर पुरानी जगहों पर ही पदस्थापना करा लेते हैं। इसकी वजह से उनकी बड़े शहरों में स्वीकृत पदों की तुलना में संख्या अधिक हो गई है।
इस तरह की भी दिक्कतें
प्रदेश के कई अस्पतालों में सर्जन पदस्थ होने के बाद एनेस्थीसिया विशेषज्ञ नहीं होने के कारण सर्जरी तक नहीीं हो पा रही। इसी तरह से एनेस्थीसिया विशेषज्ञ, स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ और शिशु रोग विशेषज्ञ में से किसी एक के नहीं रहने पर सीजर डिलीवरी नहीं हो पाती। प्रदेश में शिशु एवं मातृ मृत्यु दर ज्यादा होने का यह भी बड़ा कारण है। इमरजेंसी में भी मरीजों को विशेषज्ञों की सेवाएं नहीं मिल पाती। जब तक वह दूसरे अस्पताल में पहुंचते हैं, बहुत देर हो चुकी होती है।
ग्रामीण होते रहते हैं परेशान
ग्रामीण और छोटे शहरों में रहने वाले लोगों के बीमार होने पर उन्हें समय पर इलाज ही नहीं मिल पाता है। उन्हें इलाज के लिए बड़े शहरों में जाना पड़ता है, जिससे न केवल उनका समय खराब होता है बल्कि पैसा भी अधिक खर्च होता है। इसकी वजह से उनका कामकाज भी बुरी तरह से प्रभावित होता है। प्रदेश में अधिकांश मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा, ऐसे में परेशानी और बढ़ रही है।
18/12/2022
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