सीमेंट पोल की जगह लकड़ी और बांस के खंभे का उपयोग करने के निर्देश

वन महकमें

– वन विभाग के अफसर की मनमानी …

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। वन महकमें में जंगल राज का आलम यह है कि यहां सरकार के दिशा-निर्देशों का पालन तक नहीं किया जाता है। इसका ताजा मामला यह सामने आया है की वन विभाग में चैनलिंक फेसिंग के लिए सीमेंट के पोल की जगह लकड़ी और बांस के खंभे का उपयोग करने का निर्देश दिया गया है। इसका प्रदेशभर में विरोध शुरू हो गया है।
गौरतलब है कि मैदानी हकीकत का आकलन किए बिना वातानुकूलित कमरे में लिए गए निर्णय का अमलीजामा पहनाना मुश्किल होता है। जंगल महकमे में ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है। विभाग के मुखिया आरके गुप्ता ने कुछ  सीनियर अफसरों की सलाह पर निर्णय लिया कि वित्तीय वर्ष 22-23 में वन क्षेत्रों में चैनलिंक फेसिंग के लिए सीमेंट के पोल की जगह लकड़ी और बांस के खंबे का उपयोग करें। उनके इस फरमान का मखौल बन रहा है।
सीमेंट पोल का हो रहा उपयोग
जानकारी के अनुसार 70 से 80 प्रतिशत वन क्षेत्रों में चालू वित्तीय वर्ष में पूर्व में चली आ रही परंपरा के अनुसार मैदानी अफसर सीमेंट पोल का उपयोग ही कर रहे हैं। अभी तक वन बल प्रमुख के फरमान का विरोध डीएफओ और सीएफ दबे स्वर से करते आ रहे थे। अब सर्किल में पदस्थ पदेन वन संरक्षक एवं अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक कार्यालय को खुला पत्र लिखा है कि बांस अथवा लकड़ी खंबे लगाने से वनों की सुरक्षा लंबे समय तक नहीं हो पाएगी और बाद में सीमेंट के पोल ही लगाने पड़ते हैं। एपीसीसीएफ ने अपने पत्र में साफ तौर पर लिखा है कि वन मंडलों अंतर्गत वन-राजस्व भूमि सीमांकन क्षेत्रों में हार्ड मुरम होने के कारण एवं आसपास घास होने के कारण बांस अथवा लकड़ी के खंभों में आग लगने की संभावना अधिक होती है। वन परिक्षेत्र में नीलगाय जंगली सूअर एवं अन्य जानवरों की अधिकता होने से और उनके द्वारा सीमेंट के खंभे भी क्षतिग्रस्त कर दिए जाते हैं। ऐसी स्थिति में बांस अथवा लकड़ी खंभे लगाने से क्षेत्र की सुरक्षा लंबे समय तक नहीं हो पाएगी और बाद में सीमेंट के पोल ही लगाने पड़ेंगे। सर्किल के पदेन वन संरक्षक में यह भी लिखा है कि बांस अथवा लकड़ी हरदा, बालाघाट, डिंडोरी और मंडला आदि वन मंडलों से मंगाने पड़ते हैं, जिनकी अत्याधिक दूरी होने के कारण स्थानांतरण करने में भी काफी मुश्किलें आती हैं। पत्र के आखिर में उन्होंने वन बल प्रमुख से अनुरोध किया है कि चैनलिंक फेंसिंग सीमेंट पोल आदि जीइएम के माध्यम से लगाए जाने की स्वीकृति प्रदान करें।
वन बल प्रमुख के फरमान पर क्रियान्वयन नहीं
वन मंत्री विजय शाह के खंडवा सर्किल के वन मंडलों में ही वन बल प्रमुख गुप्ता के फरमान पर क्रियान्वयन नहीं हो रहा है। इसकी वजह भी स्पष्ट है कि सर्किल के अधिकांश वन मंडल अतिक्रमण के मामले में अति संवेदनशील है। यहां बांस-बल्ली के खंभों का उपयोग नहीं किया जा सकता। भोपाल, रीवा, बालाघाट, होशंगाबाद, उज्जैन, सिवनी सर्किल के अंतर्गत आने वाले वन मंडलों में भी मैदानी अफसर वन क्षेत्रों की चैनलिंक फेंसिंग में सीमेंट पोल का उपयोग कर रहे है। सर्किल में पदस्थ एपीसीसीएफ के पत्र ने बांस मिशन के सीईओ यूके सुबुद्धि के दावे की पोल भी खोल दी है। वन बल प्रमुख गुप्ता के फरमान के बाद सुबुद्धि ने दावा किया था कि तीन- साढ़े तीन लाख बांस की बल्ली प्रदाय करने की तैयारी कर ली है। पत्र में साफ तौर पर लिखा है कि लकड़ी और बांस की बल्लियां मंगाने में काफी दिक्कतें आ रही हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि नोएडा की एक कंपनी ने दावा किया था कि एक साल में बांस का उत्पादन तीन लाख से अधिक नहीं होता है, यानी बांस मिशन के सीइओ ग्राउंड रियलिटी से बेखबर है। वैसे भी मध्यप्रदेश में बालाघाट, मंडला, बैतूल, सिवनी और शहडोल में बांस का उत्पादन लगातार गिर रहा है।

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