– शिक्षकों और संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं प्रदेश के स्कूल …
भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में स्कूली शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विभिन्न स्तरों पर काम कर रहे हैं। इसका परिणाम भी सामने आने लगा है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था में सुधार को लेकर पिछले दिनों जारी नेशनल एचीवमेंट सर्वे में मप्र की रैंकिंग 17वें से 5 वें स्थान पर आ गई है। लेकिन चिंता की बात यह है कि मप्र की रैंकिंग में भले ही सुधार आ गया है, लेकिन शिक्षा की व्यवस्था पूरी तरह बदहाल है। मप्र के सरकारी स्कूलों में न तो पर्याप्त शिक्षक हैं और न ही व्यवस्था।
प्रदेश में बेरोजगारी का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। विभिन्न विभागों में पदों के रिक्त होने की बातें अक्सर निकल कर सामने आती हैं, लेकिन सबसे बड़ी बात शिक्षा विभाग से जुड़ी है। आंकड़ों की माने तो प्रदेश के अंदर सबसे अधिक शिक्षकों की आवश्यकता इस वक्त स्कूलों को है। प्रदेश में 21 हजार 77 स्कूल केवल एक 1 शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। सरकारी स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था में सुधार को लेकर पिछले दिनों जारी नेशनल एचीवमेंट सर्वे में मप्र की रैंकिंग भले ही सुधरी हो और वह 17वें से 5 वें स्थान पर आ गया हो, लेकिन प्रदेश के स्कूल शिक्षकों और संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं। प्रायमरी से लेकर हाईस्कूल तक हाल ही में 15 हजार शिक्षकों की नियुक्ति के बाद भी करीब 38 हजार शिक्षकों की कमी है। विभाग का दावा है कि स्वच्छ भारत अभियान के तहत 96 फीसदी स्कूलों में टॉयलेट की व्यवस्था कर दी गई है। लेकिन असर की 2019-20 की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के डेढ़ लाख सरकारी स्कूलों में से 36,532 में टॉयलेट और पानी नहीं है। 16,849 टॉयलेट उपयोग लायक नहीं हैं।
स्वच्छता अभियान में अभी भी बने हुए हैं फिसड्डी
स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा हर साल करोड़ों रुपए खर्च और तमाम अप्रवेशी बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलाने के लिए अभियान चलाने के बाद भी स्थिति नहीं सुधरी है। प्रदेश में 14,697 स्कूल ऐसे हैं, जिनमें 20 बच्चे भी नहीं हैं। इनमें से 40 फीसदी स्कूलों में तो एक भी स्टूडेंट नहीं है। परिणाम स्वरूप विभाग ने एक शाला एक परिसर का नाम देकर करीब 32 हजार प्रायमरी और मिडिल स्कूलों को हाईस्कूलों में मर्ज कर दिया है। राष्ट्रीय स्तर के स्वच्छता पुरस्कार में भोपाल के किसी स्कूल का नाम नहीं है। प्रदेश से इस पुरस्कार के लिए एक मात्र नाम जबलपुर के केंद्रीय विद्यालय नंबर-2 का है। भोपाल, इंदौर, ग्वालियर से किसी भी स्कूल का चयन स्वच्छता पुरस्कार के लिए नहीं हुआ है, जबकि गुजरात के 10 स्कूल लिस्ट में हैं। शिक्षाविद रमाकांत पाण्डेय का कहना है कि स्कूलों में लड़कियों के शौचालय का प्रतिशत 95 है। इनमें से आधे से अधिक उपयोग लायक नहीं हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में तो स्थिति और भी खराब है। अधिकांश स्कूलों में शौचालय की व्यवस्था नहीं होने के कारण बच्चे टॉयलेट रोक कर रखते हैं जो स्वास्थ्य समस्या पैदा करता है। स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री इंदरसिंह परमार कहते हैं कि मप्र के स्कूलों की रैंकिंग 17 से कम होकर 5वीं पर आना दशार्ता है कि सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता में सुधार हो रहा है। जहां तक शिक्षकों की कमी की बात है, तो भर्ती प्रक्रिया चल रही है। स्कूलों में टॉयलेट की स्थिति खराब है, तो इनकी मानीटरिंग कराई जाएगी।
स्कूलों की स्थिति
– प्राथमिक व माध्यमिक स्कूलों की संख्या 1,42,512
– शिक्षकों की संख्या 2,86, 471
– बच्चों की संख्या 71,86,000
– हाईस्कूल व हायरसेकंडरी स्कूलों की संख्या: 6,534
– शिक्षकों की संख्या 58,572
– बच्चों की संख्या 38,99,000
– प्रदेश में मर्ज किए गए स्कूलों की संख्या: 32,000
– 36,532 स्कूलों में पानी और टॉयलेट की सुविधाएं नहीं।
– 5,126 स्कूलों में पीने तक को पानी नहीं।