रिकार्ड में मौजूद आधा सैकड़ा से अधिक आवास मौके से गायब

 प्रधानमंत्री आवास योजना

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। कुछ साल पहले जिस तरह से प्रदेश में अफसरों व जनप्रतिनिधियों ने मिलकर सैकड़ों तालाब कागाजों में खोद डाले थे, उसी तरह का मामला अब प्रधानमंत्री आवास योजना में सामने आया है। इसमें एक ही ग्राम पंचायत में तत्कालीन सरपंच और अफसरों ने मिलकर 55 आवासों की राशि निकाल ली और मौके पर एक भी आवास नहीं बनाया । यह मामला सतना जिले के नागौद जनपद पंचायत के ग्राम पंचायत रहिकवारा का है। यह राज एक शिकायत के बाद कराई गई जांच में सामने आने के बाद अब  जिला पंचायत सीइओ डॉ. परीक्षित ने पूर्व सरपंच सहित तीन लोगों पर एफआइआर दर्ज कराई है। दरअसल शिकायत के बाद सीईओ द्वारा मामले की जांच के लिए एक दस सदस्यीय टीम गठित की गई थी। टीम जब इन आवासों की जांच के लिए ग्राम रहिकवारा पहुंची तो प्रारंभिक जांच में ही आठ हितग्राहियों के पीएम आवास मौके पर नहीं मिले। इन आवासों के लिए 9.6 लाख रुपए जारी किए गए थे। इसी तरह से शिकायत में ऐसे आवासों की संख्या कुल 55 बताई गई है। प्रारंभिक जांच रिपोर्ट के आधार पर बिना पीएम आवास का निर्माण कराए हितग्राहियों के साथ धोखाधड़ी करने वाले रहिकवारा के रोजगार सहायक बृज किशोर कुशवाहा, तत्कालीन सरपंच बलवेन्द्र प्रताप सिंह, पंचायत समन्वय राजेश्वर कुजूर के खिलाफ धोखघड़ी का प्रकरण दर्ज कराया गया है। खास बात यह है कि अब तक  55 हितग्राही ऐसे सामने आ चुके हैँ , जिन्हें बिना किसी सूचना के राशि निकालने के बाद  पोर्टल पर उनके मकान पूर्ण होना दिखा दिया गया है, जबकि वास्तव में वे मकान बने ही नही हैं।
कागजों में निर्माण
रहिकवारा पंचायत के 300 से ज्यादा गरीब परिवारों के नाम पीएम आवास की राशि मंजूर होने के बाद भी वे पक्के मकान के लाभ से वंचित हैं। सूत्रों की मानें तो गांव के 653 गरीब परिवारों को विगत सात साल में योजना का लाभ मिल चुका है। ज्यादातर हितग्राहियों को आवास की पूरी रकम दी जा चुकी है। पोर्टल पर आवास पूर्ण भी हो गए हैं, लेकिन हकीकत यह है कि 250 से ज्यादा पीएम आवास का निर्माण कागजों में दिखाकर साढ़े तीन करोड़ से ज्यादा का गबन पंचायत कर्मचारियों ने कर लिया। गौरतलब है कि इसी तरह से पूर्व में  देवास जिले में  बलराम तालाब योजना के तहत कृषि विभाग के अधिकारियों ने करोड़ों का घालमेल किया था। इसका खुलासा भी  कृषि विभाग के उच्च स्तरीय जांच में हुआ था। उस समय तालाबों के भौतिक सत्यापन में आधे से ज्यादा तालाब केवल कागजों पर ही मिले थे।

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