
भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। लगातार वित्तीय संकट का सामना कर रही शिव सरकार के साथ ही प्रदेश के लिए अच्छी खबर इस समाप्त होने वाली तिमाही में आयी है। इसकी वजह है प्रदेश सरकार द्वारा लक्ष्य की तुलना में महज 25 फीसदी ही कर्ज का लिया जाना। इससे स्पष्ट है कि प्रदेश सरकार की अर्थिक स्थिति में तेजी से सुधार हुआ है।
दरअसल सरकार ने इस वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में 10 हजार करोड़ रुपए का कर्ज जुटाने का लक्ष्य तय किया था। यह कर्ज बॉन्ड के जरिए बाजार से लिया जाना था। लेकिन सरकार ने इस पूरी तिमाही में महज 2 हजार करोड़ रुपए का ही कर्ज ही लिया है। इसके साथ ही सरकार ने तीसरी तिमाही के लिए अब तक कोई नए कर्ज का शेड्यूल जारी नहीं किया है। इससे तय है कि फिलहाल सरकार को अभी नए कर्ज की जरुरत नहीं महसूस हो रही है। हालांकि कहा जा रहा है कि सरकार आने वाले दिनों में जरूरत पड़ने पर उधारी का नया शेड्यूल जारी करेगी। राज्य सरकार के उधारी के शेड्यूल के अनुसार मप्र सरकार को जुलाई से सितंबर के बीच 5 बार बॉन्ड मार्केट में जाना था। लेकिन सरकार केवल एक ही बार बॉन्ड मार्केट गई। सरकार ने 20 सितंबर में 2000 हजार करोड़ रुपए का कर्ज जुटाया था। इससे पहले जून माह में सरकार ने 2000 करोड़ रुपए का कर्ज लिया था। गौरतलब है कि इस बीच सरकार की पुरानी योजनाएं तो संचालित हो ही रही हैें , साथ ही कई अन्य तरह के खर्चों में भी वृद्धि हुई है। इसके बाद भी कर्ज लेने की जरुरत नहीं पड़ने से प्रदेश की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे संकेत माने जा रहे हैं। इस माह की 20 तारीख को शिवराज सरकार ने खुले बाजार से जो कर्ज लिया था उसकी , अवधि 10 साल है, जिसे 7 फीसदी के ब्याज पर लिया गया है।
पांच साल में तेजी से बढ़ा कर्ज
मध्य प्रदेश सरकार पर वित्तवर्ष 2017-18 में 1 लाख 54 हजार करोड़ का कर्जा था, जो प्रदेश में प्रतिव्यक्ति 21 हजार रुपए था, लेकिन यह कर्जा कम होने के बजाए और बढ़ता गया। वित्त वर्ष 2018-19 में मध्यप्रदेश पर कर्जा बढ़कर 1 लाख 94 हजार करोड़ हो गया थ, जिससे प्रदेश में प्रति व्यक्ति 25 हजार का कर्ज हो गया था। इसके बाद वर्ष 2019-20 में प्रदेश पर कर्जा 2 लाख 31 हजार करोड़ और प्रतिव्यक्ति कर्ज की दर 29 हजार रुपए हो गई। वर्ष 2020-21 में मध्यप्रदेश सरकार पर कर्जा 2 लाख 89 करोड़ का कर्जा हो गया था। इसके बाद 2021-22 में बढ़कर 3 लाख 32 हजार करोड़ हो गया , जिसकी वजह से प्रदेश के प्रत्येक नागरिक 41 रुपए का कर्जदार हो चुका है। इसकी वजह से सरकार को हर साल ब्याज में भी अधिक राशि देनी पड़ रही है। अगर बीत साल के आंकड़ों पर नजर डालें तो 20 हजार करोड़ रुपए सरकार को बतौर ब्याज के रुप में चुकाने पड़े हैं।