शिव की योजनाएं कराएंगी आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा की चुनावी नैय्या पार

 भाजपा

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में भले ही विधानसभा चुनाव अगले साल के अंत में होने है, लेकिन अभी से भाजपा ने आदिवासी समाज के मतदाताओं को साधने के लिए पूरी ताकत लगानी शुरू कर दी है। इसकी वजह है , जिस दल को भी जनजातीय मतदाताओं का साथ मिल जाता है , उसी दल की प्रदेश में सरकार बनती है। प्रदेश में करीब 22 फीसदी मतदाता इसी वर्ग के हैं और वे सूबे की 80 विधानसभा सीटों पर हार जीत तय करने की स्थिति में हैं।
खास बात यह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा इस वर्ग के लिए संचालित की जा रहीं योजनाएं ही अगले विस चुनाव में इन क्षेत्रों में भाजपा की चुनावी नैय्या पार कराने वाली साबित होंगी। दरअसल इसकी वजहें भी हैं। शिव सरकार में उनके लिए न केवल कई तरह की योजनाओं को शुरू किया गया, बल्कि योजनाओं का लाभ दिलाने वाले बिचौलियों की भूमिका को भी पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया। इसकी वजह से अब योजनाओं का लाभ सीधे इस वर्ग के हितग्राही को मिलने लगा है। इसकी वजह से अब जनजातीय क्षेत्र के मतदाताओं को समझ आ गया है कि काम कौन करता है और किस दल की सरकार न केवल उनके साथ है ,बल्कि उनका भला भी कर रही है। गौरतलब है कि केंद्र में सरकार बनते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राज्य में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सुदूर वनांचल में रहने वाले इस जनजातीय वर्ग की समस्याओं का पता लगाकर उनके समाधान के लिए सरकारी खजाना भी खोलने में कोई कमी नहीं छोड़ी है। इसकी वजह से आदिवासी बाहुल्य इलाकों में अब तेजी से विकास हो रहा है। इसके उलट कांग्रेस प्रोपेगेंडा के सहारे अपना आधार बचाने के प्रयासों में लगी हुई ही नजर आ रही है।
दिया सख्त सुशासन का संदेश
हाल ही में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा जनजातीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के बीच सुशासन का सख्त संदेश दिया गया है। यह संदेश स्वयं मुख्यमंत्री द्वारा झाबुआ जिले के कलेक्टर-एसपी को हटाकर दिया गया है। इस मामले में झाबुआ नजीर बना। जबकि बीते दिनों डिण्डौरी में उज्जवला योजना का लक्ष्य पूरा नहीं करने वाले अधिकारी को भी सार्वजनिक कार्यक्रम में ही निलंबित करने के आदेश देकर सीधे जनता के दिल में जगह बनाने का काम किया है।
2003 के परिणाम दोहराने का प्रयास
प्रदेश में जनजातीय वर्ग के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं। इसके अलावा वे सूबे की लगभग 80 सीटों पर हार जीत तय करने की क्षमता रखते हैं। इसी वजह से ही भाजपा उनके बीच एक बार फिर से जनाधार बढ़ाने के पूरे प्रयासों में लगी हुई है। 2003 में भाजपा ने आरक्षित 41 में से 37 सीटों पर कब्जा कर कांग्रेस की दस साल पुरानी दिग्विजय सरकार को बाहर का रास्ता दिखा दिया था। इसके बाद  2008 में आरक्षित सीटों की संख्या बढ़कर 47 हो गई थी, जिसमें से भाजपा को 29 सीटों और 2013 में 31 सीटों पर जीत मिली थी। बीते विधानसभा चुनाव में परिणाम भाजपा के अनुकूल नहीं रहे थे, जिसकी वजह थी कांग्रेस द्वारा 47 में से 30 सीटों पर जीत हासिल करना , इस  वजह से भाजपा को महज 16 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था। इसकी वजह से भाजपा को डेढ़ दशक बाद सत्ता से बाहर होना पड़ा था और प्रदेश में कांग्रेस की वापसी संभव हो सकी थी। इसलिये अब भाजपा खोई सीटों को पाने का प्रयास कर रही है।
इस तरह की योजनाओं का संचालन
अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं और 22 प्रतिशत आदिवासी वोटरों को खुश करने के लिए शिवराज सरकार ने कई योजनाएं चलाई है। इनमें भगवान बिरसा मुण्डा स्वरोजगार योजना में विनिर्माण गतिविधियों के लिए एक लाख से पचास लाख रुपये तक तथा सेवा व व्यावसायिक गतिविधियों के लिए एक लाख से 25 लाख रुपये तक की परियोजना का प्रस्ताव अहम है। इसके साथ ही ग्रामीण होम स्टे योजना के तहत सुविधा देने वालों को दो-दो लाख रुपये की सब्सिडी का प्रावधान भी किया गया है। इससे एक हजार परिवारों को जोड़ने  का लक्ष्य है। 7 लाख 13 हजार परिवार को गाड़ी के माध्यम से राशन आपके द्वार योजना जनजातियों के बीच सरकार की नीव मजबूत कर रही है। क्योंकि इससे जुड़ा जनजातीय समुदाय रोजगार भी प्राप्त कर रहा है। सिकल सेल जैसी बीमारी खत्म करने के अलावा पेशा एक्ट जैसे विषय भी जनजातियों को आकर्षित करने की तैयारी पूरी कर ली गई है। जबकि चिन्हित ब्लॉक में तेंदू पत्ता तोड़ने  का अधिकार ग्राम सभाओं को देने और आदिवासी शहीदों के संग्रहालय निर्माण के माध्यम से भी सरकार जनजातियों को लुभाने के लिए कई तरह के कदम उठा रही है।

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