कई जिलों में बदली जाएगी संगठन की कमान तो कई के कटेंगे टिकट
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। बीते आम विधानसभा चुनाव में मिली हार से सबक लेते हुए भाजपा का प्रदेश संगठन अभी से चुनावी रणनीति बनाने में लग गया है। पिछली हार से सबक लेते हुए इस बार केन्द्र के निर्देश पर भाजपा का प्रदेश संगठन कई कड़े फैसले लेने की रणनीति बना रहा है। इसके तहत अच्छा प्रर्दशन नहीं कर पाने वाले जिलाध्यक्षों को तो हटाया ही जाएगा साथ ही कई ऐसे नेताओं के टिकट भी काटे जाने की तैयारी है,जिनके कामकाज को लेकर मतदाताओं में नाराजगी है। इनमें कई मंत्रियों के नाम भी शामिल रहेंगे। इसके लिए पार्टी द्वारा अभी से मैदानी स्तर पर पूरी जानकारी जुटाने का काम शुरू कर दिया गया है।
यही नहीं पार्टी ने हारने वाली सीटों के लिए भी विशेष रणनीति बनाने का काम शुरू कर दिया है। यानि की अगले साल होने वाले चुनाव में पार्टी संगठन किसी भी तरह की कोई भी रिस्क लेने को तैयार नही है। जिन सीटों पर भाजपा को हार मिली है उन सीटों पर अलग से बूथ मैपिंग से लेकर प्रभारियों के परफॉर्मेंस तक का आकंलन कराया जा रहा है। संगठन में बदलाव की शुरूआत जिलाध्यक्षों को हटाने से की जाएगी। यही वजह है की अब प्रदेश संगठन जिलाध्यक्षों के कामकाज का सर्वे करा रही है। यह सर्वे उनके दो साल के काम और उनके प्रबंधन कौशल का कराया जा रहा है। इसके लिए जिलों में प्रदेश संगठन द्वारा दो-दो नेताओं की टीमें भेजकर रिपोर्ट तैयार कराई गई है। इस रिपोर्ट के मिलने के बाद अब उसका विश्लेषण किया जा रहा है। माना जा रहा है की इस रिपोर्ट के आधार पर जल्द ही लगभग डेढ़ दर्जन जिलों के अध्यक्षों को बदला जा सकता है। दरअसल निकाय चुनावों में प्रदेश संगठन को कुछ जिलों में जिलाध्यक्षों को लेकर शिकायतें मिली हैं। इनमें कटनी जिलाध्यक्ष को लेकर स्थानीय नेताओं ने शिकायत की है कि उनके द्वारा भाजपा की अधिकृत प्रत्याशी का विरोध किया गया, जबकि ग्वालियर में हुई हार को लेकर भी कुछ स्थानीय नेताओं ने जिलाध्यक्ष की सीधे प्रदेश कार्यालय से शिकायतें की हैं। यही नहीं नर्मदापुरम जिले में भी जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव को लेकर भी इसी तरह की शिकायतें हैं। यही नहीं कुछ जिलों में जिलाध्यक्ष के परफार्मेन्स को लेकर विधायक और अन्य नेता भी समय- समय पर सवाल खड़ा कर चुके हैं। इसकी वजह से ही इस तरह के मामलों को लेकर कुछ दिन पहले ही सीएम शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश अध्यक्ष बी डी शर्मा और संगठन महामंत्री हितानंद के बीच बैठक भी हो चुकी है। जिसमें ही जिलाध्यक्षों के काम का सर्वे कराने का तय किया गया था। सर्वे रिपोर्ट के बाद संगठन अब सांसद और विधायकों से भी चर्चा करेगा। इसके बाद सत्ता और संगठन के शीर्ष नेताओं की बैठक में कर जिलाध्यक्षों को हटाने पर फैसला किया जाएगा। दरअसल इस बार भाजपा को अपने बेहद मजबूत गढ़ माने जाने वाले ग्वालियर, जबलपुर, मुरैना , कटनी और सिंगरौली जैसे शहरों में कई दशकों बाद महापौर के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है, जिसकी वजह से भाजपा सकते में है। इस हार को पार्टी हाईकमान ने भी बहुत गंभीरता से लिया है। केन्द्रीय अलाकमान इस मामले में प्रदेश संगठन से रिपोर्ट भी ले चुका है। खास बात यह है की जहां पर भी पार्टी को हार मिली है वहां पर भाजपा के विधायक व सांसद लगातार जीतते आ रहे हैं।
तीन माह बाद पूरा हो रहा कार्यकाल
भाजपा के 57 संगठनात्मक जिलों में से अधिकांश जिलाध्यक्षों का कार्यकाल तीन माह बाद नवंबर 2022 में पूरा होने जा रहा है। इसकी वजह है नवंबर 2019 में 33 जिलाध्यक्षों की पहली सूची जारी की गई थी। इसके बाद दिसंबर में 24 जिलाध्यक्षों की की सूची अलग -अलग तिथियों में जारी की गई थी। जिलाध्यक्षों का कार्यकाल पार्टी संविधान के अनुसार तीन साल का होता है। पार्टी में केन्द्रीय व राज्यस्तर पर चुनाव की प्रक्रिया एक साथ चलने की वजह से 2022 का साल संगठन के चुनाव का है, लेकिन अब तक इस मामले में कोई हलचल नहीं दिख रही है। इसकी वजह से माना जा रहा है कि संगठन चुनाव आगे बढ़ सकते हैं और परफार्मेन्स के हिसाब से भाजपा कुछ जिलाध्यक्षों को बदल सकती है और शेष का कार्यकाल अगले विसा चुनाव तक के लिए बढ़ा सकती है। पूर्व में 2017 में ऐसा हो भी चुका है।
बदली जाएगी बूथों की भी टीम
चुनाव के हिसाब से हारी हुई सीटों के लिए बनायी जाने वाली नई रणनीति पर मंथन का दौर जारी है। इसी के साथ संगठनात्मक कसावट का काम शुरू कर दिया गया है। इसके तहत सर्वाधिक कमजोर साबित हुए बूथों की टीम भी बदली जाएगी। इसके लिए विधानसभा से लेकर निकाय चुनाव परिणामों का तुलनात्मक अध्ययन करने का तय किया गया है। दरअसल निकाय चुनाव परिणामों की रिपोर्ट के बाद संगठन की कसावट को प्राथमिकता पर रखा गया है। जो विधानसभा सीटें 2018 में हारी थी, वहां विशेष तौर पर नए प्रभारी भी तैनात किए जाएंगे। दरअसल 2018 में विधानसभा चुनाव के अलावा उपचुनाव में हारी सीटों को भाजपा ने प्राथमिकता पर रखा है। सत्ता परिवर्तन के बाद 28 सीटों के उपचुनाव में 9 भाजपा हार गई थी।
सर्वे में यह बिंदु शामिल
प्रदेश संगठन द्वारा इस सर्वे के लिए जो बिंदु तय किए गए हैं उनमें जिलाध्यक्ष का पार्टी नेताओं के साथ समन्वय, जिलों से जुड़े बड़े फैसलों में विधायक, पूर्व विधायक और वरिष्ठ नेताओं से ली जाने वाली राय , मोर्चा प्रकोष्ठों के साथ तालमेल, केन्द्र और राज्य की जनहितकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में रूचि और रिजल्ट, कार्यकतार्ओं के बीच छवि और व्यवहार। इसके साथ ही दो साल के कामों का पूरा ब्यौरा शामिल है।
टिकट काटने में भी नहीं किया जाएगा परहेज
प्रदेश संगठन द्वारा करार्ई गई रायशुमारी में मौजूदा विधायकों के बारे में भी जानकारी जुटाई गई है। इसमें संगठन को लगभग 60 वर्तमान विधायकों के खिलाफ फीडबैक मिला है। यह वे विधायक हैं जो अपने विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं की पसंद नहीं आ रहे हैं। इनके खिलाफ बेहद खराब फीडबैक मिलने की वजह से माना जा रहा है की इनका टिकट काटा जाएगा। ऐसे विधायकों की संख्या पांच दर्जन बताई जा रही है। इनमें 12 मंत्री भी शामिल हैं। इस तरह की जानकारी आने के बाद से भाजपा संगठन भी सकते में है। माना जा रहा है की मतदाताओं की नाराजगी को दूर करने के लिए, भाजपा मौजूदा विधायकों की जगह नए उम्मीदवारों को मैदान में उतारेगी। इसके लिए अभी से नाम तलाशे जाने लगे हैं।