आदिवासियों की पंसद का पैरामीटर साबित होंगे 46 निकायों के चुनाव

निर्वाचन

अगले हफ्ते हो सकता है चुनावी तारीखों का एलान

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/ बिच्छू डॉट कॉम
सूबे में करीब चार दर्जन ऐसे नगरीय निकाय हैं , जिनमें अभी निर्वाचन का इंतजार बना हुआ है। माना जा रहा है की इनमें निर्वाचन के लिए तारीखों की घोषणा अगले हफ्ते की जा सकती है। यह वे निकाय हैं जो आदिवासी बाहुल्य हैं। इसकी वजह से सभी की निगाहें इन निकायों के चुनाव परिणामें पर अभी से लग गई है। दरअसल इन निकायों को आदिवासियों की पसंद के पैरामीटर के रुप में देखा जा रहा है। इनमें से कई निकाय तो नए बने हैं , जबकि बाकी का कार्यकाल अब समाप्त होने वाला है। इन निकायों में चुनाव के लिए आयोग से लेकर जिला प्रशासन द्वारा लगभग सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।
इन चुनावों के लिए सभी संबंधित जिलों के प्रशासन की ओर से वार्डों का आरक्षण कर पूरी जानकारी नगरीय प्रशासन एवं विकास संचालनालय को भेजी जा चुकी है। इसके बाद अब संचालनालय द्वारा निकायों का आरक्षण संबंधी गजट नोटिफिकेशन का काम किया जा रहा है। जिन निकायों में चुनाव कराए जाने हैं, उनकी संख्या तो वैसे महज 46 ही है, लेकिन राजनैतिक रुप से इन सीटों का महत्व बहुत अधिक है। यही वजह है की इन चुनावों को लेकर भाजपा व कांग्रेस संगठन अभी से तैयारी में जुट गया है। आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों की नजर आदिवासी वोट बैंक पर हैं। आदिवासियों को अपने पाले में लाने के लिए दोनों ही पार्टियां समय-समय पर कई तरह के न6 केवल आयोजन करती आ रही हैं , बल्कि उनके हितों को लेकर कई तरह के वादे व दावे भी कर रही हैं। दरअसल अब प्रदेश में होने वाले आम विधानसभा चुनाव में महज सवा साल से भी काम समय बचा है, ऐसे में इन निकायों के चुनाव परिणामों से यह तय हो जाएगा की शहरी क्षेत्रों के आदिवासी मतदाताओं की पंस कौन सा दल है। मप्र कांग्रेस कमेटी ने अपने सभी संबधित जिलाध्यक्षों को निर्देश दिए हैं पार्षद प्रत्याशी चयन में कोई भाई भतीजावाद नहीं चलेगा। इन निदेर्शों में कहा गया है की वे जिले के पार्टी पदाधिकारी और जनप्रतिनिधियों के साथ बैठकर योग्य प्रत्याशी का चयन कर एक नाम प्रदेश संगठन को भेजें। निदेर्शों में यह भी कहा गया कि जो भी जनप्रतिनिधि या पार्टी पदाधिकारी पार्षद प्रत्याशी को टिकट दिलाता है, तो उसे जिताने की जिम्मेदारी भी उसे ही लेना होगी।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ चुनाव के बाद परिणामों की समीक्षा करेंगे। जानकारी के अनुसार 37 नगरीय निकायों में से 2 का कार्यकाल अगस्त में पूरा हो चुका है और बचे हुए 35 निकायों का कार्यकाल 12 सितंबर को पूरा होने जा रहा है। यह सभी निकाय आदिवासी बाहुल्य हैं। इनके अलावा शेष नौ सीटों में से गढ़ाकोटा, खुरई और मलाजखंड नगर पालिका की सीमा में वृद्धि के कारण परिसीमन नहीं हो पाया था। इस कारण इन तीनों निकायों के चुनाव जुलाई में नहीं होने की वजह से अब कराए जा रहे हैं। वहीं, करार्पुर, पुनासा, बरगवां (सिंगरौली), सरई, देवरी (रायसेन) और बरगवां (अमलाई) नवगठित नगर परिषद बनीं हैं।
इन निकायों के होने हैं चुनाव
नगर पालिका- मंडला, नैनपुर, नेपानगर, सारनी, झाबुआ, आलीराजपुर, जुन्नारदेव, दमुआ, पांदुर्णा, सौंसर, शहडोल, कोतमा, बिजुरी, पाली, गढ़ाकोटा, खुरई, मलाजखंड । नगर परिषद- बरगवां (अमलाई), देवरी (रायसेन), सरई, बरगवां (सिंगरौली), पुनासा, करार्पुर, बुढार, जयसिंहनगर, बैहर, डिंडोरी, बिछिया, बम्हनीबंजर, निवास, लखनादौन, मोहगांव, हर्रई, मंडलेश्वर, महेश्वर, भीकनगांव, चंद्रशेखर आजाद नगर, जोबट, पेटलावद, थांदला, रानापुर, चिचोली, आठनेर, सैलाना, छनेरा और शहपुरा ।
विधानसभा की 47 सीटें आरक्षित
मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजाति (एसटी) की आबादी 21.1 प्रतिशत है। प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से एसटी के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने एसटी की 47 में से 30 सीटों पर जीत दर्ज की थी और वह सत्ता में आ गई थी। इसके पहले आदिवासी वर्ग की सीटों पर भाजपा को बढ़त मिलती रही है , जिसकी वजह से भाजपा लगातार डेढ़ दशक तक सत्ता में रही है। यही नहीं प्रदेश में जनसंख्या के हिसाब से आदिवासी समाज लगभग 90 सीटों पर हार-जीत के लिए प्रभावी माना जाता है।

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