पात्रों का राशन हजम कर रहे अपात्र, खुलासे को माना शासन ने

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम
  • सरकार द्वारा कराए गए सर्वे में हुआ खुलासा

    भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम-2013 के माध्यम से भारत सरकार का उद्देश्य मानव को पोषण की सुरक्षा प्रदान करना है, इसके तहत केंद्र लगभग 80 करोड़ लोगों को अत्यधिक सब्सिडी वाला खाद्यान्न उपलब्ध कराता है। सरकार प्रति व्यक्ति प्रति माह 1-3 रुपये प्रति किलोग्राम पर पांच किलोग्राम खाद्यान्न प्रदान करती है। इस अधिनियम को लागू हुए नौ  साल हो गए हैं , लेकिन अब भी मध्यप्रदेश में करीब 20 फीसदी पात्र लोग ऐसे हैं, जिन्हें अब तक इसका फायदा नहीं मिल पाया है। इसके उलट 25 फीसदी लोग ऐसे हैं जो अपात्र होने के बाद भी सरकार की राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम का फायदा उठा रहे हैं। प्राय: सरकारें इस तरह की बातों को स्वीकार नहीं करती हैं , लेकिन ऐसा पहली बार है की किसी अधिकारिक रिपोर्ट में माना गया है की सरकारी दुकानों से 25 फीसदी अपात्रों द्वारा खाद्यान्न लिया जा रहा है। यह बात अलग है की अब भी जिलों में दूसरे चरण का सर्वे का काम किया जा रहा है। इस बीच खाद्य नागरिक आपूर्ति विभाग के प्रमुख सचिव द्वारा सभी कलेक्टर को जिला में सुधार करने के निर्देश जारी कर दिए गए हैं। सरकार ने अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन व नीति विश्लेषण संस्थान को खाद्य सुरक्षा अधिनियम के क्रियान्वयन के मूल्यांकन का कमा सौंपा है। इसके तहत संस्थान ने पहले चरण में भोपाल, ग्वालियर, सागर, जबलपुर में साइंटिफिक सर्वे का काम किया है। इसमें संस्थाओं तथा हितग्राहियों से चर्चा और विश्लेषण के बाद रिपोर्ट तैयार करने काम किया गया है। दरअसल बड़े पैमाने पर राजनैतिक रसूख वाले लोग संबधित अधिकारियों व कर्मचारियों से मिलकर गरीबी रेखा का राशनकार्ड बनवाकर पात्र लोगों का हक मारने लगते हैं। ऐसे मामलों में सरकार का रुख भी बेहद नरम रहता है , जिसकी वजह से उन पर रोक नहीं लग पाती है। हालात यह है प्रदेश में  बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी इस योजना का लाभ ले रहे हैं , जो न केवल दो पहिया वाहन के बल्कि चार पहिया वाहन के मालिक होने के साथ ही पक्के मकानों में तो रहते ही हैं, साथ ही उनके घरों पर एसी से लेकर अन्य तरह की विलासिता की वस्तुएं तक हैं। हद तो यह है इनमें से कई अपात्र तो स्वयं की कारों से ही राशन लेने सरकारी दुकानों पर जाते हैं। अगर सरकार चाहे तो उनके घरों व वाहनों और होने वाली आय के आधार पर उनका पता लगा कर उनके खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज करा सकती है। इसके लिए पेन कार्ड को अनिवार्य किए जाने की जरुरत है , लेकिन ऐसे अधिकांश लोग राजनैतिक दलों से जुड़े होते हैं जिसकी वजह से सरकारें उनके हितों को लेकर बेहद नरम रुख अपनाती हैं। रिपोर्ट के अनुसार, कई बार वे पात्रता के बाद भी वंचित कर दिए जाते हैं। यह भी पाया कि हितग्राहियों को वन नेशन वन राशन कार्ड योजना की जानकारी होने के बाद भी उन्हें इसका फायदा नहीं मिल पाता है।
    यह है वास्तविकता
    रिपोर्ट के अनुसार, गरीब हितग्राहियों को खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत पात्रता व आवेदन प्रक्रिया की जानकारी नहीं है। ऐसे में योजना के तहत खाद्यान्न दिलाने के नाम पर हितग्राही परेशान होते रहते हैं। अब इस रिपोर्ट  के आने के बाद विभाग के प्रमुख सचिव द्वारा सभी कलेक्टर को रिपोर्ट भेजते हुए कहा है, विश्लेषण का दूसरा चरण इंदौर, उज्जैन, मुरैना और खरगोन जिलों में होना है। उसके पहले ही सभी जिले में योजना में सुधार कर लें। अपात्रों के नाम हितग्राहियों की सूची से आवश्यक रूप से काटें।

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