भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। संगठन व विधायकों की मनमानी की वजह से निकाय चुनावों में मजबूरन बागी बनने वाले कई भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं ने अपनी दम पर विजय श्री हासिल की है। अब कई नगर पालिकाओं व नगर परिषदों में अध्यक्ष पद की चाबी इनके पास है। ऐसे में भाजपा संगठन को अब इनकी याद आने लगी है। इसकी वजह से अब प्रदेश संगठन ने इन बागियों का निष्कासन रद्द कर उन्हें गले में फिर से पार्टी की वरमाला डालने का तय कर लिया है। दरअसल इनके समर्थन के बगैर भाजपा का अध्यक्ष बनना नामुमकिन बना हुआ है। लगभग यही हाल जिला व जनपद पंचायतों में भी है। यही वजह है की अब इन नेताओं को संगठन फिर से पार्टी में लेकर उनका निष्कासन रद्द करने की तैयारी कर रही है।
निकायों में अपने अध्यक्ष बनवाने के लिए इस तरह के कदम उठाना पार्टी की मजबूरी बन चुकी है। इसके लिए पार्टी द्वारा हर जिले में पर्यवेक्षक पहले ही तैनात किए जा चुके हैं। इसके अलावा प्रभारी मंत्री और स्थानीय विधायकों को भी इस काम का जिम्मा सौंपा गया है। कुछ निकायों में तो बागी होकर जीत तय करने वाले पार्षदों का स्थानीय विधायकों ने स्वागत करते हुए घर वापसी तक कराने का एलान कर दिया है। यही हाल नगर पालिका और नगर परिषद में अध्यक्ष को लेकर है।
इन चुनावों में भाजपा को पिछली बार से अधिक सफलता के दावे किए जा रहे हैं। कुल 76 नगरपालिकाओं में हुए चुनावों में उसे 50 स्थानों पर स्पष्ट बहुमत मिला है। वहीं नगरपालिकाओं में 1795 वार्डों में से 975 वार्डों में भाजपा द्वारा अपने प्रत्याशियों की जीत की बात कही है। जबकि 571 स्थानों पर कांग्रेस और 249 स्थानों पर अन्य को जीत मिली है। इसी तरह से 255 नगरपरिषदों में से 185 में भाजपा को स्पष्ट बहुमत हासिल हुआ है। इनमें उनकी परिषद और अध्यक्ष बनना तय है। नगरपरिषदों के 3828 वार्डो में 2002 में भाजपा तो 1087 स्थानों पर कांग्रेस और 739 स्थानों पर अन्य दलों या निर्दलीयों ने जीत हासिल की है। विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर भाजपा का पूरा फोकस निकायों के अध्रूखें के अलावा जिला व जनपद पंचायतों पर है। अगस्त के प्रथम सप्ताह में नगरपालिका और परिषदों के अध्यक्ष का निर्वाचन होना है। पार्टी नेता अब इन बागियों के सम्पर्क में रहकर उन्हें भरोसा दिला रहे हैं की अगर वे भाजपा के प्रत्याशी के पक्ष में आते हैं तो उनका निष्कासन समाप्त कर दिया जाएगा।
एक सैकड़ा निकायों में करनी पड़ रही मेहनत
प्रदेश में हाल ही में हुए निकाय चुनावों में करीब एक सैकड़ा निकायों में कांग्रेस व भाजपा में से किसी को भी बहुमत नहीं मिला है। इनमें एक दर्जन से अधिक नगरपालिकाएं और 80 से अधिक नगर परिषदें शामिल हैं। इनमें निर्दलीयों के अलावा बड़ी संख्या में आप, बसपा और सपा के प्रत्याशी जीते हैं। इसकी वजह से इनमें निर्दलीयों की भूमिका बेहद अहम हो गई है। इनमें से कई निर्दलीयों ने पार्टी द्वारा टिकट नहीं दिए जाने की वजह से बागी होकर चुनाव लड़ा था। अब इन्ही बागियों को पार्टी से फिर से जोड़ने का जिम्मा विधायकों को दिया गया है। यह बात अलग है की विधायाकों की पंसद व ना पसंद की वजह से ही पार्टी के टिकट से इन बागियों को वंचित होना पड़ा था।
हारे नगर निगमों में लगाया जा रहा जोर
जिन शहरों में भाजपा मेयर का चुनाव हार चुकी है , लेकिन उसके पार्षद विपक्षी दल से अधिक चुनकर आए हैं। उनमें पार्टी द्वारा अपना परिषद अध्यक्ष बनवाने के लिए पूरा जोर लगाया जा रहा है। इसके लिए कई जगहों पर मंत्रियों के अलावा स्थानीय विधायक के साथ संगठन को भी जिम्मा सौंपा गया है। ऐसे नगर निगमों में शामिल ग्वालियर, जबलपुर, सिंगरौली, कटनी में भाजपा का परिषद अध्यक्ष बनना तय है। वहीं रीवा और मुरैना में पार्टी के सामने स्थिति बेहद कठिन बनी हुई है। रीवा में भाजपा के 18 पार्षद तो कांग्रेस के 16, और अन्य 11 जीते हैं। यहां पर भाजपा ने निर्दलीयों को साथ मिलाकर अपना परिषद अध्यक्ष बनाने की तैयारी शुरू कर दी है। इसी तरह से मुरैना में भाजपा के 14, कांग्रेस के 19 और 14 निर्दलीय व अन्य को जीत मिली है। इसकी वजह से भाजपा यहां पर भी निर्दलीयों को अपने साथ लाने का जतन कर रहीं है।
90 नगरीय निकायों में निर्दलीय किंग मेकर
नगर निकाय चुनाव परिणाम आने के बाद से राजनीति की शतरंजी बिसात बिछनी शुरू हो गई है। हर राजनीतिक दल जीत-हार की गणित में उलझा है। ख्वाहिश नगरीय निकाय सदन में अपनी हैसियत बढ़ाने की है यानी अध्यक्ष बनाने की है। इसके लिए निर्दलीय पार्षदों पर डोरे डाले जा रहे हैं। दरअसल, प्रदेश में 90 से अधिक नगरीय निकाय ऐसे हैं जहां निर्दलीय पार्षद किंग मेकर की भूमिका में हैं। इन पार्षदों को अपने पाले में लाने के लिए भाजपा और कांग्रेस पार्टियां पूरा जतन कर रही हैं। गौरतलब है कि इस बार संपन्न हुए नगरीय निकाय चुनाव का सत्ता का सेमीफाइनल माना जा रहा है। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस की कोशिश है कि अधिक से अधिक निकायों पर कब्जा जमाया जाए। प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव के परिणाम आने के बाद करीब 90 नगर पालिका और नगर परिषदों में अध्यक्ष बनाने के लिए निर्दलीय पार्षदों की भूमिका बढ़ गई है। इन निकायों में निर्दलीय पार्षद के सहयोग के बिना अध्यक्ष नहीं बन सकेगा। खासकर एक दर्जन नगर पालिकाओं में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला है, वहीं करीब 80 नगर परिषदों के भी यहीं हाल हैं। इसके लिए कांग्रेस भाजपा ने जोड़-तोड़ शुरू कर दी है।
निर्दलीय और अन्य दलों के पार्षदों की भूमिका बढ़ी
नगरीय निकाय चुनाव परिणाम के बाद जो स्थिति बनी है, उससे नगर पालिका आष्टा, बड़वाह, डोंगर परासिया, बालाघाट, वारासिवनी, महिदपुर, छतरपुर में नौगांव, दमोह, अनूपपुर, भिंड एवं गोहद तथा सबलगढ़ नगर पालिका में भी किसी को बहुमत नहीं मिला है। साथ ही करीब 80 नगर परिषदों में भी भाजपा-कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने के कारण निर्दलीयों के अलावा अन्य दलों के पार्षदों की भूमिका बढ़ गई है। खजुराहो संसदीय क्षेत्र से वीडी शर्मा सांसद हैं। इसमें छतरपुर, खजुराहो आदि नगर पालिका और नगर परिषद आते हैं। यहां रोचक मुकाबला हुआ, लेकिन स्पष्ट बहुमत किसी पार्टी को नहीं मिला है। इन निकायों में निर्दलीयों के सहयोग से ही अध्यक्ष बनाया जा सकेगा। वहीं गुना से भाजपा सांसद केपी यादव के क्षेत्र कुंभराज और मधुसूदनगढ़ में बहुमत किसी को नहीं मिला है। कुंभराज नगर पालिका में भाजपा को 6, कांग्रेस के 7 और 2 अन्य पार्षद चुनाव जीते। इसी तरह मधुसूदनगढ़ में भाजपा को 5, कांग्रेस को 4 और 6 निर्दलीय चुनाव जीते हैं। उधर, मुंगावली में भाजपा को 6, कांग्रेस को 5 और अन्य 4 पार्षद चुने गए हैं, तो पिपरई में भाजपा को 7, कांग्रेस को 6 और 2 निर्दलीय चुनाव जीते हैं।
27/07/2022
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