छोटों पर कड़ाई, सरकारी… संस्थानों पर नहीं कोई कार्रवाई

वाटर हार्वेस्टिंग
  • भोपाल में कागजों पर वाटर हार्वेस्टिंग का प्लान

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। राजधानी में वाटर हार्वेस्टिंग की पाबंदी के बाद भी कई क्षेत्रों में भू-जल स्तर 500 मीटर तक पहुंच गया है। यह इस बात का संकेत है कि शहर में वाटर हार्वेस्टिंग का प्लान केवल कागजों पर चल रहा है। आलम यह है कि नगर निगम आम लोगों पर तो वाटर हार्वेस्टिंग के लिए कड़ाई कर रहा है, लेकिन बड़ी-बड़ी सरकारी संस्थानों पर वाटर हार्वेस्टिंग की कोई व्यवस्था नहीं है। अगर ऐसा हो जाता तो बड़ी मात्रा में पानी जमीन के नीचे जाता और भू-जल का स्तर उठता।
गौरतलब है कि नगर निगम की बिल्डिंग परमिशन शाखा रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के लिए नया प्रस्ताव तैयार कर रही है। इसके तहत यदि आप 140 वर्ग मीटर से छोटे प्लॉट पर भी अपना नया मकान या व्यापारिक संस्थान बनाने की प्लानिंग कर रहे हैं तो उसके साथ ही आपको रूफ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना होगा।
अब तक ये बंदिशें इससे बड़े प्लॉट पर हो रहे भवन निर्माण तक ही सीमित थीं। ऐसे ही नई कॉलोनी बनाने के दौरान कॉलोनाइजर को भी जमीन पर फैले बारिश के पानी को ग्राउंड वाटर रिर्चाजिंग सिस्टम लगवाना होगा। इसके बाद ही उन्हें कॉलोनी की परमिशन दी जाएगी। लेकिन बड़े-बड़े सरकारी संस्थानों के लिए काई गाइड लाइन नहीं है। अगर शहर में स्थित122 बड़े संस्थानों की छत पर वाटर हार्वेस्टिंग हो जाए तो जमीन में 61 करोड़ लीटर पानी जा सकता है। लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। शाहपुरा क्षेत्र में नगर निगम का भवन अनुज्ञा शाखा का 4000 वर्ग फीट छत का ऑफिस है। यहां सिस्टम ही नहीं लगा। माता मंदिर स्थित निगम भवन की छत करीब 7000 वर्ग फीट की है। यहां भी निगम ने वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं लगा रखा है। छह नंबर स्थित डायरेक्टरेट अर्बन डेवलपमेंट में बहुत पहले एक सिस्टम लगाया था। मौजूदा समय में अनदेखी का शिकार होकर बेकार हो गया। ये करीब 20 हजार वर्गफीट की छत है और यहां से भी 20 लाख लीटर पानी जमीन में उतारा जा सकता है। निगमायुक्त केवीएस चौधरी का कहना है कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए जागरूकता सभी स्तरों पर की जा रही है। निगम भी खुद के नए भवन पर इसके लिए काम करवा रहा है। पुराने के लिए भी हम प्रावधान करेंगे। सरकारी भवनों के लिए संबंधित विभागों से चर्चा की जाएगी, ताकि पानी जमीन में उतरे।
सरकारी संस्थानों के लिए कोई व्यवस्था नहीं
सरकार आम लोगों के घरों की छत पर वाटर हार्वेस्टिंग कराने तमाम नियम कानून और शुल्क तय किए हुए हैं, लेकिन खुद के ही संस्थानों की छतों का पानी जमीन में उतारने की कोई व्यवस्था नहीं है। शहर में 122 सरकारी संस्थानों के बड़े भवन हैं। इनकी छत का औसत क्षेत्रफल 8000 वर्गफीट ही मानें तो इनसे एक बारिश में 61 करोड़ लीटर पानी जमीन में उतारा जा सकता है। ये शहर के 1.35 लाख लोगों की एक माह की जल जरूरत के समान है। स्थिति ये है कि खुद नगर निगम के कई भवनों में ये व्यवस्था नहीं है। स्मार्टसिटी ने जरूर अपने भवन पर वाटर हार्वेस्टिंग कराई थी, लेकिन दो साल में उसका भी कोई हिसाब नहीं रखा गया। अगर, यही पानी सहेज लें तो काफी कुछ ग्राउंड वॉटर रीचार्ज हो सकता है।
18 करोड़ जमा, फील्ड पर नहीं किया काम
निगम ने 26 दिसंबर 2009 से मप्र भूमि विकास नियम 1984 की धारा 78 के तहत रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम अनिवार्य किया था। निगम में 140 वर्गमीटर से बड़े प्लॉट पर बिल्डिंग परमिशन लेने के दौरान ही सिक्यूरिटी डिपॉजिट जमा करवाना होता है। कंप्लीशन सर्टिफिकेट लेते वक्त बिल्डिंग परमिशन शाखा को आरडब्ल्यूएच की स्थिति देखनी जरूरी होती है। यदि भवन संचालक ने आरडब्ल्यूएच नहीं लगवाया है तो जमा हुई फीस से ये काम बिल्डिंग परमिशन शाखा करेगी। 2009 से 31 मई 2022 तक इस शाखा के पास करीब 18 करोड़ रुपए जमा हो चुके हैं। 2017-18 और इसके बाद भी इस राशि से आरडब्ल्यूएच लगवाने के लिए अभियान चलाने के लिए कई बार बैठकें हो चुकी हैं फिर भी फील्ड स्तर पर कोई काम नजर नहीं आया है।
भोपाल में कई क्षेत्रों में 500 फीट पर पानी भी नहीं
सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की रिपोर्ट में भोपाल को सेमी क्रिटिकल कैटेगरी में रखा गया है। शहर में ऐसे कई स्थान हैं, जहां 500 फीट पर भी पानी उपलब्ध नहीं है। भोपाल में 2859.06 हेक्टेयर मीटर में से 2271.72 हेक्टेयर मीटर पानी निकाला जा रहा है। ऐसा केवल इसलिए क्योंकि बरसात में ग्राउंड वाटर कम रिचार्ज हुआ है। ये रीचार्ज आरडब्ल्यूएच लगाने से ही हो सकेगा। आम लोग भी बेपरवाह है। वाटर हार्वेस्टिंग की शर्त पर निर्माण अनुमति लेने वाले 140 वर्ग मीटर से अधिक दायरे के 6172 भवनों ने शर्त का पालन नहीं किया। 2008 के बाद इसे अनिवार्य किया हुआ है। 140 वर्गमीटर की छत से सिस्टम के माध्यम से आठ लाख लीटर पानी जमीन में उतारा जा सकता है। इसमें बमुश्किल 15 हजार रुपए तक खर्च आता है। निजी प्लंबर से भी काम कराया जा सकता है।

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