- जो कलेक्टर भले ही राज्य सरकार के आखों के नूर बने हुए हैं , वे अब भाजपा के केंद्रीय संगठन के निशाने पर आ गए हैं। इसकी वजह है
आाध दर्जन जिलों में मतदाता पर्ची वितरण में हुई गड़बड़ी , जिसकी वजह से मतदान वृद्धि के लक्ष्य की तुलना में पूर्व के मतदान की
अपेक्षा कम मतदान होना है। इस मामले में अब पार्टी के केन्द्रीय कार्यालय ने पूरी रिपोर्ट तलब की है। इसके बाद से ही पार्टी के साथ
प्रशासनिक गलियारों में हड़कंप की स्थिति बन गई है। दरअसल केन्द्रीय नेतृत्व ने प्रदेश संगठन को मप्र में आगामी विधानसभा चुनाव के
मद्देनजर दस फीसदी मतदान वृद्वि का लक्ष्य दिया था , लेकिन इसके उलट पांच फीसदी मतदान कम हो गया है।
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। इस मामले में संगठन पूरी तरह से जिला प्रशासन को दोषी मान रहा है , जबकि संगठन की लापरवाही भी मामले में भारी पड़ी है। दरअसल जिस तरह से भाजपा व कांग्रेस ने दूसरे वार्ड के कार्यकर्ताओं को प्रत्याशी बनाया है उससे मतदाताओं का उत्साह समाप्त हो गया। इसकी वजह से कुछ मतदाता मत डालने के लिए घरों से नही निकले हैं, जबकि संगठन कम मतदान के लिए बड़ी वजह प्रशासनिक स्तर पर जबलपुर, भोपाल, ग्वालियर, छिंदवाड़ा, सागर और सिंगरौली की प्रशासनिक मशीनरी की लापरवाही मानकर चल रही है। इन जिलों के शहरी इलाकों में मतदान के पहले मतदाता पर्चियां तक पूरी तरह से नही बांटी गई है। इसके अलावा सूची तैयार करने में भी गंभीर लापरवाही बरती गई , जिसकी वजह से न केवल मनमाने तरीकों से नाम काटे गए हैं , बल्कि उनके मतदान केन्द्र तक बदल कर दूसरे दूर दराज के वार्डों में कर दिए गए। इसके अलावा कई मतदान केन्द्र कालोनियों से दूर स्थानों पर बनाना और वोटर लिस्ट में एक ही कालोनी के वोटर्स के नाम अलग-अलग मतदान केंद्रों पर शामिल कर दिए गए। रहे। इस तरह की गड़बड़ियों के बाद इन जिलों के कलेक्टर जहां प्रदेश सरकार के निशाने पर आ गए हैं ,तो वहीं केन्द्रीय संगठन द्वारा रिपोर्ट तलब किए जाने से माना जा रहा है की चुनाव समाप्त होते ही उनका तबादला होना तय है। सूत्रों की माने तो इन अफसरों को सरकार की ओर से उन्हें इस गड़बड़ी पर कार्रवाई का सामने करने को कह दिया गया है। खास बात यह है की जब शहरों में यही स्थिति रही है तो ग्रामीण इलाकों में मतदाता सूची से लेकर अन्य तरह के चुनावी कामों में किस तरह की लापरवाहियां की गई होंगी समझी जा सकती है।
यह भी रहीं कम मतदान की वजहें
अब तक इस मामले में जो कारण सामने आ रहे हैं उसके मुताबिक संगठन स्तर पर बूथ विस्तारक योजना में नेताओं द्वारा रुचि न लेना, विधायक और उनके परिचितों तथा परिजनों का पंचायत-निकाय चुनाव में व्यस्त रहना तो है ही साथ ही मैदानी स्तर के कार्यकर्ताओं में अपनी ही सरकार में पूछ परख न होने की नाराजगी रही है। दरअसल प्रदेश में पार्टी की लगातार सरकार होने के बाद भी कार्यकर्ताओं के व्यक्तिगत काम तक नहीं हो रहे हैं। पार्टी का मानना है कि भले ही वह अधिक सीटें जीत जाए , लेकिन कम मतदान के बाद उसके वोट शेयर में कमी आएगी।
खास बात यह है की कम मतदान ऐसे समय हुआ है जब संगठन द्वारा इस वर्ष को पार्टी द्वारा प्रदेश में संगठन पर्व के रूप में मनाया जा रहा है। उसने बूथ से जुड़ा कार्यक्रम चलाया और तीन लोगों की त्रिदेव नाम से टीम बनाई। निकाय चुनाव की पहली ही परीक्षा में प्रदेश में बूथ विस्तारक और त्रिदेव के नाम से शुरू किया गया प्रयोग पूरी तरह से फेल हो चुका है। इस प्रयोग का बड़े स्तर पर प्रचार-प्रसार किया गया था और बूथ लेवल तक ट्रेनिंग प्रोग्राम रखे गए थे, लेकिन जिस तरह से मतदाता सूची में गड़बडिय़ां सामने आईं, उसने इस अभियान की पोल खोलकर रख दी। भाजपा ने इस साल की शुरूआत में समर्पण निधि अभियान के साथ-साथ बूथ विस्तारक अभियान चलाया था। इस अभियान के तहत एक-एक वरिष्ठ नेता को बूथ विस्तारक बनाकर बूथ पर भेजा गया था, जहां उसे बूथ की समितियां बनाना थीं और उसे ऑनलाइन पोर्टल पर लोड करना था। बूथ समिति का उद्देश्य उस बूथ के अंतर्गत रहने वाले मतदाताओं की जानकारी रखना और उनसे लगातार संपर्क में रहना था। उस समय दावे तो खूब किए गए कि अभियान सफल हो गया है। इसके लिए नेताओं ने अपनी पीठ भी जमकर थपथपाई। इसके बाद हर बूथ पर त्रिदेव के रूप में अध्यक्ष, महामंत्री और भाजपा की ओर से बीएलए बनाया गया। बूथ पर 20 लोगों की समिति भी तैयार हो गई, जिनका काम ही मतदाता सूची की जांच करना था और मतदाताओं को भाजपा से जोड़ना था, लेकिन इसका परिणाम उलटा हुआ और कई लोगों के नाम सूची से कट गए, जिसकी भनक भाजपा तक को लग नहीं पाई। अब भाजपा इसकी समीक्षा करने की बात कह रही है। समीक्षा के दौरान पदाधिकारियों से सवाल भी किए जाएंगे कि गड़बड़ी आखिर कहां हुई?
दिग्गज नेताओं के वार्ड में भी उत्साह नहीं दिखा
ग्वालियर नगर निगम के 66 पार्षद और सात महापौर प्रत्याशियों के लिए हुए मतदान में जनता ने रुचि नहीं ली। परिणाम यह है कि शहर की तीन और ग्वालियर ग्रामीण विधानसभा में आने वाले छह सीमांत वार्डों को मिलाकर कुल 49.3 प्रतिशत मतदान हुआ है। चारों विधानसभाओं में आने वाले नगरीय और ग्रामीण क्षेत्र में सबसे बेहतर स्थिति वार्ड-61 से 66 तक रही है। इन वार्डों में मतदान 64 प्रतिशत तक पहुंचा, जबकि ग्वालियर दक्षिण में 51, ग्वालियर में 49, ग्वालियर पूर्व में 43.7 तक ही सिमटकर रह गया। सबसे खराब स्थिति कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. शोभा सिकरवार और भाजपा की महापौर प्रत्याशी सुमन शर्मा के निवास वाली ग्वालियर पूर्व विधानसभा में रही है। इसके अलावा केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया, सांसद विवेक शेजवलकर, पूर्व राज्यसभा सांसद माया सिंह, प्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्नसिंह तोमर, विधायक डॉ. सतीश सिकरवार, प्रवीण पाठक और बीज निगम के अध्यक्ष मुन्नालाल गोयल पूरे विधानसभा क्षेत्र तो छोड़िए अपने-अपने वार्डों में ही मतदान के लिए लोगों को आकर्षित नहीं कर सके। सांसद विवेक नारायण शेजवलकर के वार्ड 42 में महज मतदान औसत प्रतिशत लगभग 49.06 रहा है। इसी तरह से श्रीमंत और पूर्व मंत्री माया सिंह के वार्ड 58 में औसत मतदान प्रतिशत 38.43 ही रहा है। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के वार्ड वार्ड- 27 में औसत मतदान प्रतिशत 49.84 रहा है। उधर, विधायक प्रवीण पाठक के वार्ड 39 में है। औसत मतदान प्रतिशत 48 तो ऊर्जा मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर के वार्ड 17 में 38.77 और विधायक डॉ सतीश सिकरवार और महापौर प्रत्याशी डॉ शोभा सिकरवार के वार्ड 57 में औसत मतदान प्रतिशत 49.97 प्रतिशत रहा है।
किस जिले में कैसा रहा मतदान
पंचायत के तीनों चरणों को मिलाकर जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में सबसे अधिक 89.30 प्रतिशत मतदान नीमच जिले में हुआ है। दूसरे नंबर पर रतलाम जिला है। जहां 88.90 प्रतिशत मतदाताओं ने वोट डाले हैं, तो तीसरे नंबर पर राजगढ़ जिला है, जिसमें 88.70 प्रतिशत मतदान हुआ है। सीहोर में 87.20, आगर मालवा में 88.40, शाजापुर में 87.70 प्रतिशत, देवास 84.50 प्रतिशत तक मतदान हुआ। इसी तरह से रतलाम जिले में पुरुषों ने 90.30 प्रतिशत वोट डाले हैं, जो सबसे ज्यादा है। दूसरे नंबर पर राजगढ़ जिले में 90.20 प्रतिशत और तीसरे नंबर पर नीमच जिला है, जिसमें 90.10 प्रतिशत पुरुषों ने मतदान किया है। वहीं प्रदेश में सर्वाधिक नीमच में 88.50 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया है। 87.60 प्रतिशत मतदान के साथ रतलाम दूसरे और 8730 प्रतिशत मतदान के साथ आगर-मालवा जिला तीसरे नंबर पर है।
पंचायत चुनाव में भी लगातार गिर रहा मतदान
प्रदेश में निकाय चुनाव तो ठीक त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में लगातार कम होता मतदान राजनैतिक दलों की चिंता का वजह बनते जा रहे हैं। अगर बीते दो दशक के चुनावों पर नजर डालें तो हर चुनाव में मतदान कम होता जा रहा है। इन चुनावों में मतदान के आंकड़े बताते हैं कि मतदाताओं में लगातार उत्साह की कमी आती जा रही है। दिलचस्प तो यह है कि कभी मतदाताओं की नब्ज टटोलने का दावा करने वाले नेताओं का पूरा गणित ही गड़बड़ा गया है। मतदाताओं ने नगरीय निकायों के साथ ही पंचायत चुनाव में भी उत्साह नहीं दिखाया , जिसकी वजह से पंचायत चुनाव में 3.03 प्रतिशत कम मतदान हुआ है। पिछले चुनाव के समय वर्ष 2014-15 में 83.39 प्रतिशत मतदान हुआ था, इस बार यह महज 80.31 प्रतिशत रह गया है। खास बात यह है की पंचायत चुनाव में यह आंकड़ा तब है जबकि, पहले दोनों चरणों में महिलाओं ने पुरुषों की अपेक्षा अधिक मतदान किया है। यह बात अलग है की तीसरे चरण में मतदान करने के मामले में पुरुष महिलाओं पर भारी पड़े , जिसकी बजह से पुरुषों का आंकड़ा बढ़ गया है।