भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। फसलों को लेकर अब प्रदेश के अन्नदाता की पसंद तेजी से बदल रही है। यही वजह है की अब वे नकदी फसल माने जाने वाली सोयाबीन, धान जैसी फसलों की जगह मोटे अनाज वाली फसलों पर ध्यान केन्द्रित करने लगे हैं। दरअसल मोटे अनाज की फसलों में लागत कम आती है और दाम भी बेहतर मिलते हैं। राज्य सरकार द्वारा भी मोटे अनाज की ब्रांडिंग किए जाने से किसान इस तरह की फसलों को लेकर उत्साहित नजर आ रहे हैं। दरअसल नकदी फसलों को लेकर अरुचि की दूसरी वजह है महंगा खाद-बीज और कड़ी मेहनत के बाद भी उस हिसाब से दाम नहीं मिलना। जबकि कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि विभागीय प्रयासों से किसानों में जागरुकता आई है। विभाग के अनुसार, इस बार खरीफ सीजन में सोयाबीन की खेती में पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 4 लाख हेक्टयर की कमी की संभावना है। इसके अलावा तुअर, मूंग और उड़द जैसे दलहन के रकबे पर भी असर पड़ना तय माना जा रहा है। इन फसलों की जगह अब किसान ज्वार, मक्का, बाजरा और कोदो जैसे मोटे अनाज की पैदावार पर ध्यान फोकस कर रहे हैं। इसी तरह से किसानों के लिए सोयाबीन की तुलना में तिल भी लाभकारी है, जिसकी वजह से उसके रकबे में इस बार दोगुनी वृद्वि होने का अनुमान है। कृषि विभाग के अनुसार वर्ष 2021 में सोयाबीन का रकबा 55.31 लाख हेक्टेयर था, जो 24 जून तक 51.31 लाख हेक्टेयर पर आया है। यानी सीधे तौर पर राज्य में सोयाबीन के रकबे में लगभग 4 लाख हेक्टेयर की कमी दर्ज की गई है। मूंगफली का रकबा पिछले साल 3.94 लाख हेक्टेयर था, जो 4.58 हो गया है। इसकी तुलना में किसानों को तिली में संभावना ज्यादा दिखाई दे रही है। पिछले साल 3.94 लाख हेक्टेयर में तिली हुई थी, जिसका रकबा अब बढ़कर 6.73 लाख हेक्टेयर हो गया है। 2021 की तुलना में अनाजों में धान का रकबा पिछले साल जहां 38.61 लाख हेक्टेयर था।
08/07/2022
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