प्रत्याशियों के साथ ही… मंत्रियों और विधायकों की प्रतिष्ठा मतपेटी में कैद

मंत्रियों और विधायकों

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। 16 नगर निगमों में से पहले चरण में 11 नगर निगमों में मतदान जारी है। मतदान के साथ ही प्रत्याशियों की हारजीत का भी फैसला हो रहा है , लेकिन इसमें खास बात यह है की इस बार कई मंत्रियों , विधायकों व सांसदों की प्रतिष्ठा भी आज शाम मतदान के साथ ही कैद हो जाएगी। किसकी प्रतिष्ठा बची और किसी गई इसका पता तो मतगणना के दिन ही पता चलेगा , लेकिन तब तक उनकी धडकनें जरुर बड़ी रहेगीं। दरअसल इस बार भाजपा विधायकों ने इन चुनाव में अपने हिसाब से दबाब बनाकर संगठन से प्रत्याशी तय कराए हैं। संगठन ने भी साफ कर दिया है की यह चुनाव परिणाम ही उनका भविष्य तय करेंगे। मंत्री और विधायकों के लिए सबसे बड़ी मुश्किल माहपौर प्रत्याशी बने हुए हैं।
सभी 16 नगर निगमों की बात की जाए तो इनमें भाजपा के करीब 30 विधायकों का पार्टी की ओर से राजनीतिक भविष्य दांव पर लगा हुआ है। पार्टी पहले ही साफतौर पर कह चुकी है की अगर महापौर प्रत्याशी हारा तो आपका टिकट भी संकट में पड़ सकता है। दरअसल महापौर प्रत्याशी चयन में कई जगह संगठन की जगह विधायकों ने अपनी पंसद से प्रगत्याशियों को खड़ा करवाया है , जिसकी वजह से उन्हें जिताने की जिम्मेदारी भी उन पर ही है। फिलहाल पहले चरण का ही मतदान जारी है। हाल ही में हुई वर्चुअल बैठक में भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा पार्टी विधायकों को स्पष्ट कर चुके हैं की निकाय चुनाव परिणामों के आधार पर ही आपका रिपोर्ट कार्ड तैयार होगा, इसमें टिकट सबसे अहम पक्ष होगा। इसकी वजह से ही निकायों वाले इलाकों से आने वाले पार्टी विधायक अपने प्रत्याशियों की जीत के लिए कड़ी मेहनत करते दिखे हैं। भोपाल में तो संगठन की इच्छा के विरुद्ध स्थानीय विधायकों ने एक राय होकर मालती राय पर यह कहकर टिकट दिलवाया की वह चुनाव जितवाने की जिम्मेदारी ले रहे हैं। यही वजह है कि भोपाल में दिग्गजों के बजाय विधायकों को ही पूरी तरह से मोर्चा सम्हालना पड़ा है। उधर, इंदौर में गैर राजनीतिक व्यक्ति पुष्यमित्र भार्गव को प्रत्याशी बनाए जाने से कुछ भाजपा नेता और विधायक शुरूआत में पूरी ताकत के साथ मैदान में नहीं उतरे नजर आए , जिसकी वजह से पार्टी के बड़े नेताओं को भितरघात का शंका होन लगी थी , लेकिन इसके बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को मैदानी मोर्चा सम्हालना पड़ा है। लगभग यही स्थिति जबलपुर, ग्वालियर, सतना में भी रही है। ग्वालियर में तो एक नेता के पीछे एक नेता तक निगरानी के लिए लगाया गया। सिंगरौली में भाजपा प्रत्याशी को कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी की प्रत्याशी रानी अग्रवाल से जूझना पड़ रहा है। यह सीट त्रिकोणीय मुकाबले में फंसी हुई है। इस सीट पर पार्टी ने सामान्य की जगह पिछड़ा वर्ग के चंद्र प्रताप विश्वकर्मा को टिकट दिया है जिसकी वजह से सामान्य वर्ग में नाराजगी देखी जा रही है।
कांग्रेस में भी विधायकों का जिम्मा
इधर, कांग्रेस में भी कई बड़े नेताओं के अलावा विधायकों की भी प्रतिष्ठा दांव पर है। इसके अलावा कमलनाथ के सामने नगर निगमों में मेयर पद का खाता खोलने की भी चुनौति बनी हुई है। कांग्रेस संगठन ने भी पार्टी विधायकों की पसंद और ना पसंद के आधार पर टिकट दिए हैं। इसकी वजह से हार -जीत का जिम्मा भी उन्हीं पर है। छिंदवाड़ा कमल नाथ का विधानसभा क्षेत्र है और उनके पुत्र नकुल नाथ भी इसी संसदीय क्षेत्र से सांसद हैं। वहीं, इंदौर से विधायक संजय शुक्ला, उज्जैन से महेश परमार और सतना से सिद्धार्थ कुशवाहा महापौर का चुनाव लड़ रहे हैं। यह तीनों ही प्रत्याशी अभी विधायक भी है। इसी तरह से राजधानी भोपाल में कांग्रेस के तीन विधायक पीसी शर्मा, आरिफ अकील और आरिफ मसूद के क्षेत्र आते हैं। स्वास्थ्य कारणों से आरिफ अकील ज्यादा सक्रिय नहीं हैं , लेकिन वे चुनावी प्रचार समाप्त होने के पहले जरुर एक सभा में शामिल रहे। इंदौर जिले में कांग्रेस के तीन विधायक संजय शुक्ला, विशाल पटेल और जीतू पटवारी हैं। इनमें से संजय शुक्ला स्वयं ही चुनाव लड़ रहे हैं। शहर से एकमात्र पार्टी विधायक शुक्ला ही हैं। विशाल पटेल का क्षेत्र देपालपुर और जीतू पटवारी का क्षेत्र राऊ नगर परिषद में आता है। जबलपुर जिले में कांग्रेस के चार विधायक तरुण भनोत, लखन घनघोरिया, विनय सक्सेना और संजय यादव हैं। इनमें से संजय यादव का क्षेत्र बरगी ग्रामीण क्षेत्र है। इसकी वजह से उन्हें छोड़ तीनों विधायकों पर पार्टी प्रत्याशी की जीत का दारमोदार है। उज्जैन जिले में पार्टी के चार विधायक दिलीप सिंह गुर्जर, महेश परमार, रामलाल मालवीय और मुरली मोरवाल हैं। इनमें तराना से विधायक महेश परमार स्वयं ही महापौर पद का चुनाव लड़ रहे हैं। सतना जिले में कांग्रेस दो विधायक नीलांशु चतुवेर्दी और सिद्धार्थ कुशवाहा हैं। इनमें से सिद्धार्थ खुद ही महापौर का चुनाव लड़ रहे हैं। ग्वालियर जिले में कांग्रेस के तीन सतीश सिकरवार, प्रवीण पाठक और लाखन सिंह यादव विधायक हैं। इनमें से सतीश की पत्नी शोभा सिकरवार कांग्रेस की ओर से महापौर प्रत्याशी हैं। कमल नाथ ने सभी विधायकों को चुनाव की जिम्मेदारी सौंपकर पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि निकाय चुनाव परिणामों से ही उनका रिपोर्ट कार्ड तैयार किया जाएगा।
भाजपा के इन जन प्रतिनिधियों की असल परीक्षा
निकाय चुनावों के पहले चरण में जिन नगर निगमों में भाजपा के जनप्रतिनिधियों की प्रतिष्ठा दांव पर है उनमें सोलह में से ग्यारह नगर निगम के तहत आने वाले नेता शामिल हैं। इस बार बीते चुनाव के अपेक्षा कांग्रेस से भाजपा को अधिक चुनौति मिलती दिख रही है , जिसकी वजह से मुकाबला बेहद कांटे का माना जा रहा है। इसकी वजह से इस बार  भाजपा के तमाम केन्द्रीय मंत्रियों समेत राज्य सरकार के कई मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर है। ग्वालियर में सुमन शर्मा केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर की समर्थक मानी जाती हैं। सांसद विवेक शेजवलकर भी उनका ही नाम आगे बढ़ा रहे थे। इसकी वजह से उनकी प्रतिष्ठा दांव  पर है। सांगर में संगीता तिवारी के पति सुशील तिवारी मंत्री भूपेन्द्र सिंह के करीबी माने जाते हैं। संगीता का टिकट उनकी पहल पर ही तय हुआ है। इसकी वजह से उनकी प्रतिष्ठा भी दांव पर है। इसी तरह से भोपाल में मंत्री विश्वास सारंग की पंसद के चलते ही मालती राय को टिकट दिया गया है। उनके साथ अन्य भाजपा विधायक भी सारंग के पक्ष में खड़े हो गए थे। इसकी वजह से यहां पर सारंग के अलावा भाजपा के अन्य विधायकों पर भी पूरा दारमोदार है। उज्जैन मेंं महेश टटवाल को टिकट मंत्री मोहन यादव और पूर्व मंत्री पारस जैन की पहल पर दिया गया है। इसी तरह सतना में योगेश ताम्रकार को संघ की पसंद की वजह से टिकट दिया गया है। इसकी वजह से वहां पर संघ की प्रतिष्ठा भी लगी हुई है।
जिलाध्यक्षों की इज्जत दांव पर
भाजपा जिलाध्यक्ष सुमित पचौरी के पारिवारिक सदस्य  नीरज वार्ड 78 से चुनाव लड़ रहे हैं। इसी तरह से कांग्रेस जिलाध्यक्ष कैलाश मिश्रा की बहू प्रियंका मिश्रा वार्ड 7 से मैदान में हैं। प्रियंका पूर्व विधायक व भाजपा के वरिष्ठ नेता रमेश शर्मा गुट्टू की पुत्री है।

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