पेंशन का टशन…भाजपा पर ना पड़ जाए भारी

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  • पौने पांच लाख पेंशनरों ने सरकार के खिलाफ खोला मोर्चा

भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। नगरीय निकाय चुनाव में पौने पांच लाख पेंशनर्स भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं। इसकी वजह यह है कि पेंशनरों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। आलम यह है की प्रदेश के कई जिलों में सरकार से नाराज पेंशनरों ने घरों पर पोस्टर चिपकाएं है। इसमें लिखा है कि डीए नहीं दिया, तो वोट मांगकर भी शर्मिंदा न करें । यह पोस्टर उज्जैन समेत कई जिलों में चिपकाएं गए है।  हालांकि राजधानी में ऐसे पोस्टर नहीं दिख रहे हैं।   दरअसल प्रदेश के करीब पौने पांच लाख पेंशनरों की करीब दो साल से डीए नहीं मिला है। उज्जैन समेत कई जिलों में नाराज पेंशनरों ने घरों के सामने पोस्टर चिपकाएं है जिसमें लिखा है कि यह पेंशनरों का घर है। डीए नहीं दिया, तो वोट मांगकर भी शमर््िांदा न करें। हालांकि इस पोस्टर पर किसी पेंशनर संगठन का नाम नहीं लिखा है लेकिन कई घरों में पेंशनरों ने ऐसे पोस्टर चिपकाएं है। हालांकि संगठन के गणेश दत्त जोशी का कहना है कि संगठन की तरफ से ऐसे कोई पोस्टर लगाने के आदेश नहीं दिए है। चुनाव में सभी को अपने मताधिकार का प्रयोग करना चाहिए।
डीए-डीआर में काफी अंतर
मप्र में 6 लाख 90 हजार कर्मचारियों को जहां 31 प्रतिशत महंगाई भत्ता (डीए) मिल रहा है, जबकि 4 लाख 75 हजार पेंशनर्स को 17 प्रतिशत महंगाई राहत (डीआर) मिल रही शर्तों और नियमों के तहत ही हुआ है। इस तरह यह पहला मौका है जब कर्मचारियों के डीए और पेंशनर्स की महंगाई राहत के बीच इतना अंतर हुआ। मध्यप्रदेश पुर्नगठन अधिनियम की धारा 49 पेंशनर्स के महंगाई राहत बढ़ाए जाने में आड़े आ रही है। केंद्र सरकार के गृह विभाग के द्वारा जारी इस अधिनियम के तहत दोनों राज्यों की सरकार यह कहती रही है कि जब तक दोनों राज्य पेंशनर्स के महंगाई राहत बढ़ाने पर सहमत नहीं होते तब तक बढ़ी हुई महंगाई राहत नहीं दी संबंध में चर्चा हो चुकी है। जाएगी दोनों राज्यों के बीच महंगाई राहत बढ़ाए जाने के मामलों में असहमति के बाद राज्य के पेंशनर्स ने केंद्र सरकार से अनुरोध किया था कि डीआर के बारे में स्थिति स्पष्ट की जाए। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 11 नवंबर 2017 को स्पष्ट तौर पर दोनों राज्यों के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर कहा कि पेंशनर्स की महंगाई राहत बढ़ाने के लिए दोनों राज्य निर्णय ले सकते हैं, बावजूद इसके दोनों राज्यों ने कोई फैसला नहीं लिया है। पेंशनरों ने सरकार से सवाल किया कि उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड व बिहार से पृथक होकर बने झारखंड के पेंशनर्स को कैसे 31 फीसदी डीआर मिल रहा है, जबकि दोनों राज्यों का विभाजन भी मध्यप्रदेश के समान राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की शर्तों और नियमों के तहत हुआ है।
डीआर का जल्द होगा निर्णय
अध्यक्ष मप्र कर्मचारी कल्याण समिति रमेश शर्मा का कहना है कि मतदान करना संवैधानिक अधिकार है। यह सभी को करना चाहिए। कांग्रेस से जुड़े कुछ लोग भ्रम फैला रहे है। पेंशनरों की डीआर को लेकर मुख्यमंत्री जल्द निर्णय लेंगे। केंद्र हो या राज्य के पेंशनर्स, सबके लिए महंगाई बराबर है, लेकिन दोनों की महंगाई राहत में बड़ा अंतर है। राज्य के 4 लाख 75 हजार पेंशनर्स को 17 प्रतिशत महंगाई राहत मिल रही है, जबकि केंद्र पेंशनर्स को 34 प्रतिशत सीधे-सीधे हर महीने मिलने वाली नहीं आया है। पेंशन में 1200 से 17000 रुपए तक का नुकसान हो रहा है। मप्र में पेंशनर्स को न्यूनतम पेंशन 7750 रुपए और अधिकतम 1 लाख 10 हजार रुपए तक है।
इसलिए हो रही है परेशानी
पेंशनर्स के मामले में मप्र सरकार के द्वारा छत्तीसगढ़ को लिखे पत्र में महंगाई राहत 14 प्रतिशत बढ़ाए जाने के बारे में मार्च के महीने में सहमति मांगी गई थी, जिस पर इंकार कर दिया गया। इसके बाद दोबारा छत्तीसगढ़ को महंगाई राहत बढ़ाने के बारे में सहमति प्रदान करने अपर मुख्य सचिव वित्त मनोज गोविल की ओर से पत्र लिखा गया है, लेकिन कोई जवाब नहीं आया है। वर्ष 2000 में मप्र से अलग होकर छत्तीसगढ़ बना कर्मचारियों का बंटवारा 74 और 26 फीसदी के हिसाब से हुआ तय हुआ कि जिस दिन से छग बना उसके पहले के पेंशन के मामलों में 74 फीसदी राशि मप्र और 26 फीसदी हक मिलाएगा। इसी के चलते 21 सालों से पेंशनर्स के महंगाई राहत के मामले छह महीने से साल भर लटकते रहे हैं। यानी बढ़ी हुई महंगाई राहत का फायदा 6 महीने बाद ही मिलता है।

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