आंतरिक परिवाद समिति: मुख्य सचिव के आदेश बेअसर

आंतरिक परिवाद समिति

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। जिन संस्थाओं में महिलाएं काम करती हंै, उनमें हर हाल में आंतरिक परिवाद समिति के गठन के कई बार मुख्य सचिव द्वारा निर्देश दिए गए हैं , लेकिन इसके बाद भी सूबे की बात तो छोड़िए भोपाल में ही करीब 77 फीसदी संस्थाओं में इस समिति का गठन नहीं किया गया है। हद तो यह है कि इसमें वे सरकारी संस्थान भी  शामिल हैं, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं काम करती हैं। इसका बड़ा उदाहरण है प्रदेश का सबसे बड़ा हमीदिया अस्पताल है।
इस अस्पातल में नर्सेस के साथ वर्क प्लेस हैरासमेंट का मामला सामने  आने के बाद पड़ताल में पता चला है कि इसमें भी आंतरिक परिवाद समिति का गठन तक नहीं किया गया है। इस अस्पताल का यह हाल तो जब है जबकि यहां पर लगातार इस तरह के कई मामले पूर्व में सामने आ चुके हैं। जब सरकारी संस्थाओं में ही यह हाल है तो निजी संस्थाओं के  हाल तो बेहाल होना लाजमी है। खास बात यह है कि जिन संस्थाओं में गठित है, वह भी केवल खानापूर्ति के लिए है।  दरअसल हर उस संस्थान में जहां पर महिलाएं काम करती हैं सेक्सुअल हैरासमेंट अधिनियम 2013 की धारा 4 के तहत आंतरिक परिवाद समिति को गठन किया जाना जरुरी है। हाल ही में संगिनी जेंडर रिसोर्स संस्था द्वारा किए गए सर्वे से यह खुलासा हुआ है। इसमें भी बेहद चौकाने वाली बात यह है की अफसर प्रदेश के प्रशासनिक मुखिया के आदेशों तक को तबज्जो नहीं देते हैं। इस मामले में भी यही सामने आ रहा है। दरअसल मुख्य सचिव इस संबंध में 20 से अधिक बार आदेश जारी कर चुके हैं।  यही नहीं इस संबंध में महिला एवं बाल विकास के प्रमुख सचिव द्वारा भी 45 बार आदेश जारी किए गए हैं।  हमीदिया में अधीक्षक के खिलाफ प्रताड़ना व सेक्सुअल हैरासमेंट की शिकायत के बाद संभागायुक्त ने आनन- फानन में आंतरिक परिवाद समिति का गठन किया है। दरअसल इस तरह के आदेशों का पालन नहीं करने वाले अफसरों के खिलाफ शासन कोई कार्रवाई नहीं करता है जिसकी वजह से संस्थाओं के अफसर पूरी तरह से लापरवाह बने रहते हैं।
इस तरह के हैं निर्देश
– जिले के सभी विभागीय अधिकारियों के नियंत्रण में शासकीय व अशासकीय निजी कार्यालयों जैसे मॉल, दुकान, बैंक, उद्योग में आंतरिक परिवाद समिति का गठन किया जाए।
– प्रत्येक कार्यालय में समिति के सदस्यों के फोन नंबर आदेश का डिस्प्ले बोर्ड लगाया जाएं। परिवाद समिति निष्पक्ष निर्णय ले इसके लिए एक बाहर का एक सदस्य का समिति में होना अनिवार्य है।
प्रावधान के बाद भी नहीं लगाया जुर्माना
दरअसल अधिनियम में समिति गठित व प्रमाण पत्र नहीं होने पर 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाने का भी प्रावधान है। एक्ट के मुताबिक हर संस्था को तीन माह में बैठक कर रिपोर्ट तैयार करना अनिवार्य है। वहीं हर साल का वार्षिक रिपोर्ट महिला सशक्तिकरण अधिकारी भेजना जरूरी है। लेकिन 82 फीसदी संस्थाओं ने रिपोर्ट ही नहीं भेजी। इसके बाद भी जिम्मेदार अफसरों द्वारा आदेश की अवहेलना करने वालों पर कोई कारवाई नहीं की गई है। यही नहीं प्रावधानों की भी लगातार शासन व प्रशासन द्वारा अनदेखी की जा रही है।
यह हैं हाल
जिन संस्थाओं में 10 से अधिक महिला-पुरुष का स्टाफ है, उसमें आंतरिक समिति का गठन करने के निर्देश हैं। इस अधिनियम को प्रभावी हुए सात साल हो चुके हैं , लेकिन फिर भी कई संस्थाओं ने समिति का गठन नहीं किया है। कुछ संस्थाओं ने गठन किया है, लेकिन उनमें भी कोरम का अभाव बना हुआ है। अगर इस मामले में वास्तविकता पर नजर डालें तो 17.2 फीसदी संस्थाओं में ही आंतरिक समिति बनी है। इनमें से 4 फीसदी संस्थाओं ने समिति रिन्यू ही नहीं की है। इसी तरह से 59.31 फीसदी संस्था में बाहरी सदस्य को ही शामिल नहीं किया गया है।

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