
- दावेदारों की लगातार बढ़ रही हैं मुसीबतें, भाजपा व कांग्रेस दोनों साबित हो रही फिसड्डी
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। पार्षद पदों के नामांकन के लिए अब महज दो दिन का समय ही रह गया है, लेकिन कांग्रेस व भाजपा दोनों दल अब तक भोपाल सहित अधिकांश निकायों के लिए पार्षद पदों के प्रत्याशियों के नामों की घोषणा नहीं कर सके हैं। हालात यह है कि इन पदों के दावेदार नामाकंन की तैयारियों को लेकर बेहद असमंजस में बने हुए है। इस मामले में दोनों ही प्रमुख राजनैतिक दल फिसड्डी बने हुए हैं। उधर बसपा, आप और सपा के अलावा कई क्षेत्रीय दलों में भी अब इन दोनों दलों की लेटलतीफी की वजह से ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। दरअसल इन दलों की नजर कांग्रेस व भाजपा के उन कार्यकर्ताओं पर लगी हुई है, जो टिकट न मिलने के वजह से असंतुष्ट हो सकते हैं।
भाजपा व कांग्रेस में अब भी जिला से लेकर प्रदेश स्तर तक का नाम तय करने के लिए बैठकों का दौर जारी है। दरअसल भाजपा ने इस बार जो क्राइटेरिया तय किया है वह भी प्रत्याशी चयन में देरी की वजह बन रहा है। इसकी वजह है कि घोषित क्राइटेरिया का पालन किया जाता है तो भाजपा की पिछली नगर निगम परिषद के 85 पार्षदों में से ज्यादातर चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। भाजपा द्वारा 50 साल से ज्यादा उम्र, दो चुनाव लड़ चुके नेताओं को टिकट नहीं देने और अनारक्षित वार्डों से सामान्य वर्ग के ही उम्मीदवारों को टिकट देने का फैसला किया गया है। इस हिसाब से पिछली परिषद में एमआईसी सदस्य रह चुके अधिकांश पार्षद बाहर हो जाएंगे। उधर कांग्रेस भी युवाओं को मौका देने व वार्ड के मतदाता को ही टिकट देने की बात कह चुकी है। इसकी वजह से आरक्षण के कारण वार्ड बदल कर दावेदारी कर रहे नेताओं का टिकट भी खतरे में पड़ गया है। कांग्रेस भी विधानसभा स्तर पर प्रत्याशियों के दावेदारों के आवेदन लेने के बाद अभी तक स्कूटनी में अटकी हुई है। कांग्रेस में विधायकों के अलावा विधानसभा चुनाव हार चुके नेता और डेढ़ साल बाद विधानसभा के होने वाले चुनावों के लिए अभी से दोवदारी कर रहे नेताओं का अपने-अपने समर्थकों को टिकट दिलाने का दबाब बना हुआ है। इसकी वजह से कांग्रेस में भी नाम तय करने में पेचेदगी बनी हुई है। कांग्रेस और भाजपा की ओर से हर वार्ड में आधा से लेकर एक दर्जन नेताओं से लेकर एक दर्जन नेताओं तक की दावेदारी बनी हुई है। इस बीच आप ने जरुर अपने कुछ प्रत्याशी दो दिन पहले घोषित कर दिए हैं, लेकिन वे कितने प्रभावशाली साबित होंगे इसको लेकर कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। इस बीच माना जा रहा हैै कि दोनों ही दलों के प्रत्याशियों की घोषणा कल यानि की नामांकन के अंतिम दिन से से एक दिन पहले ही होने की उम्मीद है।
कईयों का खेल पहले ही बिगड़ चुका है
दावेदारी के नए क्राइटेरिया से कई पूर्व पार्षदों का टिकट संकट में है। इससे पहले आरक्षण के कारण कइयों का खेल बिगड़ चुका है। भोपाल में मनोज चौबे और दिनेश यादव आरक्षण के कारण बाहर हो सकते हैं। महेश मकवाना 1999 से लगातार पार्षद हैं, इस आधार पर उनका टिकट भी क्राइटेरिया में फंस सकता है। नौवें भूपेंद्र माली का वार्ड महिला आरक्षित हो गया है। उनकी पत्नी बबली माली 2010-15 तक वार्ड 51 से पार्षद रही हैं। इस आधार पर वे पत्नी के लिए दावेदारी कर रहे हैं, लेकिन उनका बेटा भी पार्टी में पदाधिकारी है, इसलिए उनका विरोध हो रहा है। एमआईसी सदस्य शंकर मकोरिया का वार्ड अनारक्षित है, लेकिन वे आरक्षित वर्ग से हैं। कांग्रेस में बात करें तो गुड्डू चौहान के अलावा सभी का आरक्षण बदल गया है। मो सगीर जिस वार्ड से दावेदारी कर रहे हैं वहां बाहरी के आधार पर उनकी दावेदारी कमजोर हो गई है। मोनू सक्सेना पत्नी के लिए और सीमा की बजाय अब उनके पति प्रवीण सक्सेना फिर दावेदारी में हैं। संतोष कंसाना व शबिस्ता जकी अपने ही वार्ड से दावेदारी कर रही हैं।
विधायक बना रहे दबाब
भाजपा में जिला से लेकर प्रदेश स्तर तक भोपाल, इंदौर के अलावा कई शहरों की कोर कमेटी से लेकर पार्टी की बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन अब तक उनमें कोई फैसला नही हो सका है। भाजपा में सबसे बड़ी मुश्किल पार्टी के विधायकों की पंसद व ना पसंद बनी हुई है। विधायक अपने -अपने इलाकों में अपनी पंसद के कार्यकर्ताओं को प्रत्याशी बनाए जाने के पक्ष में लगतार दबाब बनाए हुए है, जबकि संगठन जीत के साथ ही नए चेहरों को मौका देने के पक्ष में है। इसकी वजह से नाम तय करने में परेशानी आ रही है। दरअसल विधायक नहीं चाहते हैं कि उनका अपने क्षेत्रों में प्रभाव कम हो और संगठन का प्रभाव बड़े। इसके अलावा तय की गई गाइड लाइन ने भी मुश्किलें बढ़ा रखी हैं। दरअसल पिछली बार पार्षद रहे सुरेंद्र बाडिका व केवल मिश्रा दो चुनाव तो लड़ ही चुके हैं साथ ही वे उम्र के क्राइटेरिया में भी फंस रहे हैं। दोनों की उम्र 50 साल से अधिक है।
दिग्गज नेता भी चाहते करीबियों को टिकट: भाजपा हो या कांग्रेस पार्टी के बड़े व दिग्गज नेता भी अपने समर्थकों के लिए भी टिकट की चाह रखे हुए हैं। इसकी वजह से भी दोनों दलों में पार्षद पदों के प्रत्याशी चयन में अलग से मुश्किलें आ रही हैं। दरअसल भाजपा में भोपाल से लेकर अधिकांश महागरों में कई बड़े नेता रहते हैं। इनमें प्रदेश पदाधिकारियों से लेकर केन्दी्रय मंत्री तक शामिल हैं। यही नहीं सबसे अधिक परेशानी भाजपा को भोपाल , ग्वालियर , इंदौर के अलावा सागर में आ रही है। उधर भाजपा के मुकाबले कांग्रेस में इस तरह की परेशानी महज भोपाल में ही देखी जा रही है।