हर वर्ष बारिश का करोड़ों लीटर पानी नदी-नालों में बहाया जा रहा

 पानी
  • भोपाल रेल मंडल के किसी भी स्टेशन पर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं …

भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में लगातार गिरते जल स्तर को देखते हुए सरकार ने वाटर हार्वेस्टिंग अनिवार्य किया हुआ है, लेकिन कई सरकारी विभाग और संस्थान सरकारी निर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं। इनमें से एक रेलवे भी है। बात भोपाल रेल मंडल की करें तो यहां के किसी भी स्टेशन पर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं लगा हुआ है। इससे हर वर्ष बारिश में करोड़ों लीटर पानी नदी-नालों में बह जाता है।  गौरतलब है कि पर्यावरण संरक्षण पर रेलवे का ज्यादा जोर है, लेकिन बारिश के पानी को रोकने के लिए उसके पास कोई पॉलिसी नहीं है। अकेले भोपाल रेल मंडल की बात करें तो छोटे-बड़े 95 स्टेशन हैं। इनमें चार बड़े स्टेशन भोपाल, इटारसी, बीना व रानी कमलापति को छोड़ दें तो सभी स्टेशनों के शेड (प्लेटफार्म की छत) पर गिरने वाला पानी नदी-नालों में बह रहा है।  किसी भी स्टेशन पर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं लगा है।  वर्षों से यही हो रहा है, लेकिन रेलवे इस अनदेखी पर ध्यान नहीं दे रहा है। यह हाल अकेले भोपाल रेल मंडल का नहीं है, बल्कि रतलाम, जबलपुर समेत सभी रेल मंडलों के तहत आने वाले स्टेशनों का भी है।
रेलवे की अपनी मजबूरियां
रेलवे स्टेशनों पर वाटर हार्वेस्टिंग नहीं लगाए जाने के पीछे   रेलवे की अपनी मजबूरियां हैं। रेलवे अधिकारियों का कहना है कि  स्टेशनों के  शेड की डिजाइन आरडीएसओ ने तय की है, ऐसे में उसकी बगैर  सहमति के शेड पर कोई भी बदलाव या अतिरिक्त काम नहीं किया जा सकता। इस संबंध में अधिकारियों का कहना है कि वाटर हार्वेस्टिंग अपनाना इसलिए चुनौतीपूर्ण होगा। संरक्षा को देखते हुए रेल लाइन के किनारे सोखते गड्ढों की खोदाई नहीं कर सकते। ट्रैक के आसपास पानी भी स्टोर करना मना है। ट्रैक को नुकसान पहुंच सकता है।
विशेषज्ञ मदद के लिए तैयार
उधर जल संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि संरक्षा सबसे जरूरी है, लेकिन रेलवे शेड के पानी को पाइप लाइन बिछाकर दूर ले जा सकते है और सोखता गड्ढा खोदकर जल स्तर बढ़ा सकते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक स्टेशनों पर पहले से बने बनाए शेड हैं, वाटर हार्वेस्टिंग अपनाने के लिए केवल सोखता गड्डा और पाइप लाइन बिछाने की जरूरत है। इसमें खर्च भी मामूली आएगा है। इतना करने से जल संरक्षण की दिशा में बड़ी मदद मिलेगी। वाटर हार्वेस्टिंग विशेषज्ञ संतोष वर्मा का कहना है कि रेलवे के पास तो बड़े-बड़े शेड हैं, जमीन तक पानी उतारने के लिए पाइप लाइन पहले से है। ऐसे में बारिश के पानी को जमीन के अंदर डालने में ज्यादा खर्च नहीं आएगा। यदि रेलवे कहेगा तो मैं जल संरक्षण के लिए मदद करने के लिए तैयार हूं।
नए स्टेशनों पर वाटर  हार्वेस्टिंग
रेलवे बोर्ड के सेवानिवृत सदस्य (इंजीनियरिंग)सुबोध जैन का कहना है कि दिल्ली के बिजवासन में नया स्टेशन टर्मिनल बनाया जा रहा है। इसकी डिजाइन में वाटर हार्वेस्टिंग को शामिल किया है। इस तरह सभी नए स्टेशनों के शेड को इसके दायरे में लाया जा रहा है। संभवत:  रेलवे का पुराने स्टेशनों पर ध्यान नहीं गया। है। यदि पुराने स्टेशनों के शेडों के पानी को एकत्रित कर जल स्तर बढ़ाने में उपयोग किया जाता है तो यह अच्छा कदम होगा। वहीं भोपाल रेल मंडल के डीआरएम सौरभ बंदोपाध्याय  का कहना है कि स्टेशन परिसर से निकलने वाले पानी को उपचारित करके स्टेशन परिसर व कालोनियों में उपयोग किया जा रहा है लेकिन शेड पर गिरने वाले पानी का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। इस संबंध में कोई नियम भी नहीं हैं। स्टेशन परिसर के भवनों पर शत-प्रतिशत वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम अपना रहे हैं।

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