मध्य प्रदेश के नेशनल पार्क शिकारियों के निशाने पर

म.प्र नेशनल पार्क
  • तीन प्रमुख टाइगर रिजर्व में शिकार की घटनाओं ने बढ़ाई चिंता

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में बाघों के शिकार के मामले साल-दर-साल बढ़ रहे हैं। यह इस बात के संकेत है कि प्रदेश के नेशनल पार्क शिकारियों के निशाने पर हैं। प्रदेश के सबसे प्रमुख नेशनल पार्कों में से तीन कान्हा, पेंच और बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में शिकार की घटनाओं में इजाफा हुआ है। इस गंभीर संकट के बीच सरकारी व्यवस्था का यह आलम है कि बाघों की सुरक्षा के लिए एक दशक में भी स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स का गठन ही नहीं हो पाया।  जबकि केंद्र सरकार ने वर्ष 2012 में कान्हा, बांधवगढ़ और पेंच टाइगर रिजर्व में फोर्स गठित करने की सलाह दी थी।
 वह 100 प्रतिशत फंड देने को भी तैयार थी, लेकिन वर्चस्व खोने के डर से राज्य सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया। इसके लिए यह शर्त रखी गई थी कि तीनों टाइगर रिजर्व में क्षेत्र संचालक (फील्ड डायरेक्टर) केंद्र सरकार नियुक्त करेगी। सरकारी अव्यवस्था और भरार्शाही का परिणाम है की प्रदेश के नेशनल पार्कों में लगातार शिकार की घटनाएं हो रही हैं। यदि बाघों के शिकार के मामले को देखा जाए तो सर्वाधिक प्रभावित बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व है। जहां पिछले दो साल में तीन बाघिन, तीन शावकों का शिकार हुआ है। इस अवधि में पेंच पार्क में 10 वन्य प्राणियों का शिकार हुआ, जिनमें से एक बाघ है। वहीं कान्हा नेशनल पार्क में आठ वन्यजीवों का शिकार किया गया। शिकार के मामलों में सबसे ज्यादा गिरफ्तारी पेंच पार्क में हुई, जहां 19 आरोपितों को पकड़ा गया।
बांधवगढ़ में दो साल के अंदर तीन बाघिन और तीन शावकों का शिकार: 124 बाघों के साथ मध्य प्रदेश को बाघ स्टेट का दर्जा लौटाने वाले बांधवगढ़ में दो साल के अंदर तीन बाघिन और तीन शावकों का शिकार हो गया। शहडोल संभाग के जंगलों में शिकारियों के फंदे में फंस कर पांच साल के अंदर 10 से ज्यादा बाघों की जान चली गई। अकेले उमरिया जिले में खेतों में फैलाए गए करंट की वजह से दो साल में सात से ज्यादा तेंदुए मारे गए। यहां छोटे वन्य प्राणियों में सूअर का शिकार भी होता है। बांधवगढ़ नेशनल पार्क के फील्ड डायरेक्टर डा बीएस अन्नागिरी के अनुसार जंगल और जानवरों की सुरक्षा के लिए सुरक्षा श्रमिक तैनात किए जाते हैं। इसके बावजूद जो घटनाएं  होती हैं उसकी विधिवत जांच होती है।
कान्हा और पेंच में वन्यप्राणी खतरे में
प्रदेश के कान्हा और पेंच नेशनल पार्क में वन्य प्राणियों के लगातार शिकार हो रहे हैं। दो साल में कान्हा पार्क में हिंसक वन्यजीवों द्वारा चीतल- सांभर के शिकार को छोड़ दें, तो साल 2109 से मार्च 2021 तक शिकारियों ने छह सांभर, एक जंगली सूअर और एक सेही का शिकार किया है। कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के डायरेक्टर एके सिंह का कहना है कि कान्हा के कोर एरिया में वन्यजीवों के शिकार की घटनाओं में पिछले दो सालों में कमी आई। शिकार की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए लगातार विभाग का अमला और मुखबिर सूचना तंत्र सक्रिय रहते हैं।
वहीं करंट लगाकर शिकार की घटनाएं पेंच राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में लगातार बढ़ती जा रही हैं। जंगल में फैलाए गए करंट में फंसकर भालू, चीतल सहित अन्य वन्यप्राणी अपनी जान गवां रहे हैं। पेंच प्रबंधन के मुताबिक एक जनवरी 2020 से अब तक सामने आए शिकार के 10 में से सात मामलों में जंगल के आसपास करंट फैलाकर वारदात को अंजाम दिया गया है। हाल ही में पेंच प्रबंधन ने तीन मई को बाघ हड्डी व पेंगोलिन की खाल बरामद कर तीन आरोपितों को गिरफ्तार किया है। हालांकि बाघ और पैंगोलिन का शिकार कब और कहां किया गया है, इसकी जांच की जा रही है। पेंच पार्क के डिप्टी डायरेक्टर रजनीश सिंह कहते हैं कि सूचना तंत्र को मजबूत करने के साथ ही गश्ती पर जोर दिया जा रहा है।
फाइलों में कैद स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स
वर्ष 2018 के बाघ आकलन के अनुसार मध्य प्रदेश में देश के सबसे ज्यादा (526) बाघ हैं। मध्य प्रदेश में बाघों की सुरक्षा के दावे भी किए जाते हैं, पर असल स्थिति कुछ और ही है। प्रदेश में बाघों की मौत के आंकड़े साल-दर-साल बढ़ रहे हैं। पिछले साल 42 बाघों की मौत हुई थी और इस साल साढ़े चार माह में 18 बाघ मर चुके हैं। इस गंभीर संकट के बीच सरकारी व्यवस्था का यह आलम है कि बाघों की सुरक्षा के लिए एक दशक में भी स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स का गठन ही नहीं हो पाया। जबकि केंद्र सरकार ने वर्ष 2012 में कान्हा, बांधवगढ़ और पेंच टाइगर रिजर्व में फोर्स गठित करने की सलाह दी थी। वह 100 प्रतिशत फंड देने को भी तैयार थी, लेकिन वर्चस्व खोने के डर से राज्य सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया। इसके लिए यह शर्त रखी गई थी कि तीनों टाइगर रिजर्व में क्षेत्र संचालक (फील्ड डायरेक्टर) केंद्र सरकार नियुक्त करेगी। ऐसे में राज्य सरकार का दखल नहीं रहता। केंद्र सरकार की योजना के अनुसार इनमें सशस्त्र बल तैनात होना था। बाघों की संख्या को लेकर मप्र का मुकाबला कर्नाटक से है, वहां वर्ष 2012 में ही फोर्स का गठन किया जा चुका है। वहां बाघों की सुरक्षा सशस्त्र बलों के हाथ में है लेकिन मध्य प्रदेश में सुरक्षा डंडा धारी वन कर्मियों के भरोसे है। इस कारण शिकारी सक्रिय हैं। वर्ष 2021 में प्रदेश में आठ बाघों का शिकार हुआ था।
पुलिस बल भी नहीं मिल रहा
वन विभाग को पुलिस बल भी नहीं मिल रहा है। पुलिस मुख्यालय साफ कह चुका है कि पार्कों को देने के लिए पुलिसकर्मी नहीं हैं। ऐसे में वन विभाग ने वनरक्षक और वनपाल को फोर्स में रखने का प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजा है। तीन साल पहले एक प्रस्ताव बनाया गया था। उसके अनुसार तीनों पार्कों में एक-एक कंपनी तैनात की जानी है। प्रत्येक कंपनी में 112 सुरक्षाकर्मी होंगे। इसमें 18 से 25 साल के 24 वनरक्षक और 34 वनपाल रहेंगे। यह प्रस्ताव तीन साल से मंत्रालय में पड़ा है। उल्लेखनीय है कि फोर्स का गठन न होने पर वर्ष 2018 में आरटीआइ कार्यकर्ता अजय दुबे ने हाई कोर्ट में याचिका लगाई। इसके बाद 16 अक्टूबर 2019 को वन विभाग ने प्रस्ताव में संशोधन कर गृह विभाग को भेजा। प्रस्ताव करीब सवा साल गृह विभाग में पड़ा रहा। फिर वन सचिवालय को लौटा दिया। अब नोटशीट अलमारी में कैद है।

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