भाजपा के दिग्गजों को गढ़ में… घेरने का कांग्रेसी प्लान तैयार

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  • ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस दिग्विजय को देगी बड़ी जिम्मेदारी

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में 19 महीने बाद विधानसभा चुनाव होना है। 2023 में भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए कांग्रेस ने कागजी तैयारी करने के बाद मैदानी जमावट शुरू कर दी है। इसके तहत केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस उनके गढ़ ग्वालियर-चंबल अंचल में ही घेरने की तैयारी कर चुकी है। इसके लिए पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को मोर्चे पर तैनात किया जाएगा। दरअसल, ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों समेत भाजपा में चले जाने के बाद से ग्वालियर-चंबल में मजबूत मौजूदगी कांग्रेस के लिए चुनौती बनी हुई है।
पार्टी में माना जाता था कि पूरे ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में दो तरह की कांग्रेस थी, एक महाराजा यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया की कांग्रेस और दूसरी राजा यानी दिग्विजय सिंह की कांग्रेस। अब इस क्षेत्र में पार्टी में ज्यादातर कार्यकर्ता दिग्विजय समर्थक ही बचे हैं। यही वजह है कि पार्टी इस क्षेत्र में सिंधिया का मुकाबला करने के लिए दिग्विजय सिंह और नेता प्रतिपक्ष डा. गोविंद सिंह को आगे बढ़ा रही है। उनके साथ युवा चेहरा के रूप में दिनेश गुर्जर को आगे बढ़ाने के संकेत हैं। इसके अलावा अनुसूचित जाति को साधने के लिए पार्टी फूलसिंह बरैया का उपयोग कर सकती है।
प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए एक साल से अधिक समय बाकी है। लेकिन कांग्रेस ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है। सिंधिया के प्रभाव वाले ग्वालियर-चंबल अंचल पर कांग्रेस का ज्यादा फोकस है। गौरतलब है कि मध्यप्रदेश की राजनीति में ग्वालियर-चंबल अंचल की बेहद अहमियत है। ग्वालियर-चंबल अंचल में ग्वालियर और चंबल संभाग के कुल 8 जिले हैं। 8 जिलों में विधानसभा की 34 सीटें आती हैं। ग्वालियर-चंबल अंचल केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के दबदबे वाला इलाका माना जाता है। साल 2020 में 28 सीटों पर हुए उपचुनाव में 16 सीटें ग्वालियर-चंबल अंचल की ही थीं। विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने जीत हासिल कर एक बार फिर ग्वालियर चंबल में कांग्रेस को पटखनी दी। सिंधिया ताकत दिखाने में कामयाब रहे। यही वजह है कि अगले साल होने वाले चुनाव में ग्वालियर-चंबल अंचल के नतीजों पर सभी की निगाहें टिकी होंगी। उधर कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का पूरा फोकस सिंधिया को उनके गढ़ में ही हराने की है। इसलिए दोनों नेताओं ने अंचल पर पूरा फोकस किया है।
चुनौतियों को पार पाने रोडमैप हो रहा तैयार
उदयपुर में कांग्रेस के अखिल भारतीय चिंतन शिविर का असर मध्य प्रदेश में भी दिखेगा। संगठन और चुनावी जिम्मेदारियों में युवाओं की भागीदारी का विशेष ध्यान रखा जाएगा। इस लिहाज से संगठन में बदलाव के भी संकेत हैं। पार्टी ने 2023 के विस और 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान जिन 10 राज्यों पर फोकस किया है, उसमें मध्य प्रदेश भी शामिल है। चूंकि मप्र में कांग्रेस के सामने अलग तरह की चुनौतियां हैं, तो इनसे पार पाने के लिए रोडमैप भी अलग तरीके से तैयार की जा रही है। इसके तहत प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्र में प्रभारियों को तैनात किया जाएगा। इनमें युवा चेहरों को तरजीह देने के संकेत हैं। कांग्रेस ने प्रदेश स्तर पर चुनाव अभियान समिति के गठन की भी तैयारी कर रही है। इसमें ज्यादा से ज्यादा नेताओं को समायोजित किया जाएगा।
हर क्षेत्र में अलग-अलग नेताओं को जिम्मेदारी
मिशन 2023 के लिए कांग्रेस क्षेत्रवार नेताओं को जिम्मेदारी देने की तैयारी कर रही है। पार्टी ने फिलहाल जो खाका खींचा है, उसमें मालवा-निमाड़ में कांग्रेस की कमान अरुण यादव को सौंपने की तैयारी है। यादव कांग्रेस में एकमात्र युवा चेहरा हैं। यादव ने चिंतन शिविर से लौटने के साथ ही मालवांचल में अपना प्रचार-प्रसार भी शुरू कर दिया है। वे कमल नाथ सहित अन्य दिग्गजों के साथ न लौटकर मंदसौर-नीमच रतलाम होते हुए गृह क्षेत्र लौट रहे हैं। इस दौरान उन्होंने कांग्रेस कार्यकर्ताओं से मुलाकात का कार्यक्रम रखा है। ताकि उनमें उत्साह का संचार हो सके। यहां यादव के साथ आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया और विक्रांत भूरिया को जोड़ा जा रहा है। महाकोशल-विंध्य क्षेत्र में अजय सिंह और विवेक तन्खा के साथ आदिवासी नेता के रूप में ओंकार सिंह मरकाम को आगे बढ़ाने की तैयारी है। मप्र कांग्रेस के अध्यक्ष कमल नाथ भी इसी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। वहीं मध्य भारत के बड़े नेता सुरेश पचौरी को मप्र चुनाव अभियान समिति की कमान भी दी जा सकती है। उनके साथ कुछ युवा चेहरे जोड़े जा सकते हैं। संगठन के महत्वपूर्ण पदों पर भी नए चेहरे लाए जा सकते हैं। खासतौर से कार्यकर्ताओं की शिकायत के चलते उपाध्यक्ष (संगठन) के पद पर भी नया चेहरा लाया जा सकता है। महासचिव (मीडिया) मप्र कांग्रेस केके मिश्रा का कहना है कि कांग्रेस का चिंतन शिविर भविष्य की संभावनाओं से सराबोर रहा है। उसके तहत लिए गए निर्णयों में मप्र भी शामिल होगा। जिसके सकारात्मक परिणाम सत्ता के निर्माण में सहयोगी होंगे।

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