विष का विकार मिटाओ पापी हरो देवा

  • अवधेश बजाज कहिन
विष का विकार

राजनीतिज्ञों! एक बात का सच बताइये। ये जादूगरी आपने जनम घूंटी में पायी थी या फिर खुद घुट-घुटकर आप ऐसे हो गए हैं? कहने का आशय यह कि आप कैसे समाज से विषयों को गौण बना कर उनकी जगह अपने विष को आप यूं प्रसारित कर देते हैं? खूब शोर है हनुमान चालीसा बनाम लाउड स्पीकर पर अजान का। जड़ में जाएं तो यह जटिल उत्तर मामूली हो जाता है कि ये किया-धरा तो आपका ही है। मैं तो सार्वजनिक जीवन में असंख्य उन परिवारों को जानता हूं, जिनकी हनुमान चालीसा नितांत व्यक्तिगत श्रद्धा का विषय हुआ करती है और वह भी, जो नमाज के लिए अपने तई पूरी श्रद्धा के साथ पाबन्द हैं। इस भाव को चीरकर वह पैबंद कभी भी नहीं लगा, जो इन धार्मिक क्रियाओं के लिए किसी का विरोध करे या इसका विस्तार किसी को आहत करने की आहट जितना भी हो सके।
मगर मेरे और मेरे जैसे असंख्य लोगों के इन अनुभवों को आप झुठला देने की हद तक विखंडित कर देने पर आमादा हो गए हैं। यदि आप जैसे खास और आम जनता के बीच आपके अनुयायी इस बात के लिए उन्मादी हो गए हैं कि अब तो अजान शोर के रूप में ही होगी या फिर हनुमान चालीसा हुल्लड़ के रूप में ही पढ़ी जाएगी, तो फिर यह डराने वाला मामला हो गया है। मामला भी ऐसा, जो किसी जाति या मजहब से परे हरेक को डरा कर उनकी जान लेने वाले तथ्य तथा तत्वों को परे धकेलने में सफल साबित होता जा रहा है। यहीं बात आती है, आपकी आरंभ में बतायी गयी जादूगरी की। देश में बेरोजगारों की फौज बढ़ती ही जा रही है। महंगाई का आलम यह कि सियासत के फेर में मध्यम वर्ग ढेर होता जा रहा है और उससे नीचे वाले वर्ग को आपने आरामतलब तथा निठल्ले वर्ग में तब्दील कर दिया है। गरीब बस्तियों में आपका शराब और कपड़े सहित पैसे बांटने वाला अनुष्ठान्न अब भी जारी है, किन्तु अब यह भी हो गया है कि इस तबके को मुफ्तखोरी के तबेले में कैद कर आप अपनी राजनीतिक रोटी सेंक रहे हैं और इस आग के फफोले समाज में असमानता की आग के चलते और पनपते जा रहे हैं।
हनुमान चालीसा के पाठ की अपनी मर्यादा है, किन्तु अमर्यादित राजनीति में भला आपको इसकी क्या और क्यों फिक्र होने लगी? ये चालीसा की बात नहीं, बल्कि उस चालाकी की बात है, जिसकी आड़ में आप ज्वलंत मुद्दों को मुर्दा बनाने पर आमादा हैं। आपके हरकारे इस बात से कतई बेखबर नहीं हैं कि देश में पेट्रोल और डीजल सहित घरेलु गैस के दाम आसमान छू रहे हैं। हमारे जो बच्चे शहर से दूर किसी व्यावसायिक रसोई में भोजन करते हैं, उनसे इस खाने के मनमाने दाम लिए जा रहे हैं। क्योंकि गैस महंगी हो गयी है और भोजन की सामग्री से लेकर तरकारी लाने वाले वाहनों के महंगे ईंधन के नाम पर खाने की कीमत बढ़ा दी गयी है। क्या हम अपने बच्चों को यह नसीहत देने के लिए अभिशप्त कर दिए गए हैं कि वह लाउड स्पीकर पर अजान की आवाज या बीच सड़क पर हनुमान चालीसा के स्वरों के बीच अपनी इन तकलीफों को बिसरा दें? यह मान लें कि यदि मौजूदा हिंदुस्तान में रहना है तो फिर तिलक या गोल टोपी की शीतल छांव को ही गनीमत के रूप में स्वीकार करना होगा? बाकी सब तो मिथ्या है और उसका शुभ-लाभ आप राजनीतिज्ञों का हिस्सा है।अजान के शोर से भरी भोर हो या फिर हो उसकी प्रतिक्रिया में हनुमान चालीसा को सियासी हथियार बनाने की कुचेष्टा, दोनों ही आपत्तिजनक हैं, किन्तु हमारी इस शिकायत के मैदान में यूं राजनीति का डंडा लेकर उतर पड़ने वाले आप आखिर हैं कौन? सुचित्रा कृष्णमूर्ति या सोनू निगम को अजान से शिकायत हुई, कई स्वयंभू धर्मनिरपेक्षों को बीच सड़क पर नमाज पढ़ने से रोकने पर दिक्कत हुई, तो इस सबका फैसला कानून या व्यवस्था को करने दीजिए, आपसे इसने कहा कि इस नितांत वैचारिक द्वन्द में आप दंद-फंद पैदा करने की नीयत से उतर पड़िए? एक बार किसी भी सच्चे हिंदू या मुस्लिम की आंख में आंख डालकर बात करने की हिम्मत दिखाइए। सभी एक स्वर में आपसे कहेंगे कि उन्हें चालीसा या अजान से पेश्तर भरपेट रोटी, बच्चों सहित परिवार की सामाजिक सुरक्षा और उस माहौल की दरकार है, जो उन्हें यह यकीन दिला सके कि वह हुकूमत और सियासत के चंद ऐसे लोगों की उपस्थिति से आज भी सुगन्धित है, जो सचमुच सकल विकास की बात करते हैं, समस्त विनाश की बात नहीं। हम पढ़ लेंगे हनुमान चालीसा और पूरी अकीदत के साथ पढ़ लेंगे नमाज भी, ये हमारा अपना-अपना विषय है। आप क्यों इसमें विष घोलने पर यूं आमादा हैं? हमारी सदैव से हार्दिक कामना रही है कि ‘विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।’ किंतु उस प्रार्थना का इमला कैसे  लिखा जाए जो आपके प्रति पूरे असम्मान और डर के साथ यह भाव संचारित कर सके कि ‘विष का विकार मिटाओ, पापी हरो देवा।’

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