- राकेश अचल
स्तुतियां हमेशा शृद्धा भाव से ओत-प्रोत होतीं हैं, इसलिए आसानी से जनमानस की जुबान पर चढ़ जातीं हैं ,चढ़ ही नहीं जातीं बल्कि कंठस्थ हो जाती हैं। आजकल सियासत का औजार बना ‘ हनुमान चालीसा ‘ मुझे भी तब याद हो गया था जब मै कक्षा पांच का छात्र था। मेरे मुहल्ले में इशाक रहता था,हम उम्र, कभी स्कूल नहीं गया लेकिन उसे भी ‘ हनुमान चालीसा ‘ कंठस्थ था। उसने ये चालीसा कैसे याद किया मै नहीं जानता। मै आज भी ‘ हनुमान चालीसा ‘ कभी भी, कहीं भी सुना सकता हूं लेकिन असली आनंद तभी आता है जब मै अपने पूजाघर में बैठा होऊ या फिर हनुमान जी के मंदिर में।
कलयुग में हनुमान जी को भी अपने आराध्य राम जी की तरह सियासत का औजार बना दिया जाएगा । इसकी कल्पना हनुमान जी ने भी नहीं की होगी। आखिर कोई कैसे सोच सकता है कि किसी देवी-देवता की स्तुति सियासत का औजार बनाई जा सकती है, लेकिन सियासत करने वाले कुछ भी कर गुजरते हैं। आजकल हनुमान जी के नाम से बना कोई दल हो या रामजी के आराध्य शंकर जी के नाम से बनी कोई सेना सबके सब हनुमान चालीसा के सहारे धर्मयुद्ध जीत लेना चाहता है।
मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकरों पर अजान की आवाजों से आजिज मनसे के राज बाबू ने जब विरोध में मस्जिदों के बाहर हनुमान चालीसा पढ़ने का ऐलान किया तो मुम्बई की ही हनुमान भक्त निर्दलीय सांसद नवनीत राणा ने शिवसेना के मुख्यालय मातोश्री के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ करने की घोषणा कर दी। मजे की बात देखिये कि मस्जिदों के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ करने का ऐलान करने वाली मनसे की सहोदर शिवसेना को राणा के ऐलान से एलर्जी ही गयी।
हनुमान भक्त शिवसैनिक राणा के घर घेराव करने जा धमके। महाराष्ट्र में सरकार शिवसेना गठबंधन की है ,पुलिस उन्हें कैसे रोकती, सो सेना सरकार का दिल खुश करने के लिए शाम को सांसद राणा को गिरफ्तार कर लायी। पुलिस का पुरुषार्थ इससे ज्यादा क्या हो सकता था? बेचारे हनुमान जी मूक दर्शक बने सब देख रहे होंगे लेकिन वे किसी को समझा नहीं सकते, कि कम से कम सियासत के लिए उनके नाम का दुरूपयोग न किया जाए। बहरहाल न हुनमान चालीसा मस्जिद के बाहर पढ़ा गया है और न मातोश्री के बाहर। पूजाघरों पर लगे ध्वनि विस्तारक यंत्रों के इस्तेमाल की मुखालफत तो मैंने भी की लेकिन मैंने इसके लिए हनुमान चालीसा का इस्तेमाल नहीं किया। यूपी के बाबा जी ने भी इस विवाद को रोकने के लिए पूरे प्रदेश के पूजाघरों से ध्वनि विस्तारक यंत्र हटाने का प्रशासकीय आदेश जारी कर दिया। वहां इस काम के लिए हनुमान चालीसा की जरूरत नहीं पड़ी। कहीं भी नहीं पड़ना चाहिए। हनुमान चालीसा कोई विरोध का हथियार थोड़े ही है,हनुमान चालीसा हनुमान जी की स्तुति है ,उसका इस्तेमाल हनुमान जी को खुश करने के लिए ही हो सकता है और होना भी चाहिए। हनुमान चालीसा के आरम्भ में ही कहना पड़ता है ‘बुद्धिहीन तनु जान के सुमरहुँ पवनकुमार ,बल बुद्धि ,विद्या देहु मोहि हरउ क्लेश, विकार ‘अर्थात हनुमान चालीसा क्लेश और विकार दूर करने के लिए रचा गया है न कि क्लेश और विकार पैदा करने के लिए। हनुमान जी ज्ञान और गुणों के सागर हैं ,उनका सियासत से क्या लेना-देना? किसी ने उनसे पूछा भी नहीं की आपकी स्तुति मस्जिदों या किसी राजनीतिक दल के नेता के घर के बाहर की जा सकती है या नहीं। हनुमान चालीसा और उससे पहले राम के नाम का इस्तेमाल सियासत के लिए करने वाले लोग आम नागरिक नहीं हैं। वे खास लोग हैं, ये वे लोग हैं जो राजनीतिक दल चलाते हैं या राजसत्ता में बने रहने के लिए राम नाम की बैसाखी का इस्तेमाल करते हैं। राम नाम के इस्तेमाल की जरूरत मुगलों और अंग्रेजों के समय किसी ने महसूस नहीं की लेकिन आजादी के अमृत वर्ष में राम तो राम, हनुमान तक का इस्तेमाल अपने ही लोगों के खिलाफ किया जा रहा है। काश राम जी लाल किले के प्राचीर पर खड़े होकर देश को सम्बोधित कर कह पाते कि-‘ मेरे नाम का, मेरे भक्त हनुमान के नाम का दुरूपयोग करना बंद करो बाबलो ! ‘ धर्म का इस्तेमाल राजधर्म के लिए किया जाये तो समझ में आता है लेकिन जब राजधर्म की किसी को फिक्र ही नहीं है तो कोई क्या कर सकता है। मान लीजिये कि इस समय देश में अनेक राज्यों में राम राज आ भी गया है तो भी वहां लोग हर्षित क्यों नहीं हैं? क्यों वहां से शोकों का लोप नहीं हुआ है? क्यों दिल्ली में राजसत्ता की नाक के नीचे साम्प्रदायिक दंगा हो रहा है ,क्यों खरगोन जल रहा है? क्यों राजगढ़ (अलवर) में स्थानीय रामभक्त प्रशासन किसी पूजाघर को खंडित कर साम्प्रदायिक तनाव पैदा कर रहा है? मैं अपने ही लोगों की कटु आलोचनाओं का शिकार बनकर भी बार-बार कहता हूं कि राजा राम जैसे हमारे नायकों और भक्ति के प्रतीक हनुमान जैसे चरित्रों को सियासत से दूर रखिये , उनके नाम पर न कोई संगठन बनाइये और न ऐसे संगठनों को कानून हाथ में लेने की इजाजत दीजिए। सदभाव बनाये रखना राजसत्ता की जिम्मेदारी है भले ही सत्ता किसी भी विचारधारा के राजनीतिक दल की हो। सत्ताएं सनक से नहीं सहकार से विधि-विधान से चलती हैं। आपको याद होगा कि मैंने सबसे पहले देश में अल्पसंख्यकों के विरुद्ध जेसीबी संहिंता (जिसे बुलडोजर संहिता के नाम से ख्याति मिली) के इस्तेमाल के समय ही कहा था कि सरकार चाहे तो इसे विधिक रूप देकर इसका इस्तेमाल करे,भारतीय दंड संहिता का लोप कर दे।
कुल मिलाकर महिला संसद नवनीत राणा जल्द रिहा कर दी जाएंगी। आखिर वे भी हनुमान भक्त हैं और राज्य की सरकार भी रामभक्तों की अगुवाई वाले मोर्चे की चल रही है। मेरा तो अल्लाह के बन्दों से भी कहना है कि वे अपने पूजाघरों को ध्वनि विस्तारक यंत्रों के लिए प्रतिबंधित कर दें, कम से कम इससे हमारे हनुमान जी को तो परेशानी से मुक्ति मिल पाएगी। वैसे भी न अल्लाह बहरे हैं और न राम जी। वे अपने भक्तों की विनती, प्रार्थना, आर्तनाद बिना स्पीकर के भी सुन लेते हैं। कभी मन से ये सब करके देखिये। आपको यकीन नहीं होगा लेकिन मै आपको बता दूँ कि मेरे एक मुस्लिम मित्र ने जबसे अपनी कुंडलनी जागृत कर परम पिता से साक्षत्कार किया है तबसे वे निर्विकार हो गए हैं, कर्मकांडों से उनका भरोसा उठ सा गया है। बहरहाल चार फलों के देने वाले हनुमान जी की स्तुति अपने मन में कीजिए आपने मन के मुकुर को सुधारकर कीजिये।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)