पुलिस सुधार-2 : समाज के साथ संवेदनशील हो पुलिस का व्यवहार

  • प्रवीण कक्कड़
पुलिस सुधार

इस लेख के पहले भाग में हमने पुलिस सुधार के उन बिंदुओं पर चर्चा की थी, जिनको अपनाकर पुलिसकर्मियों की समस्याएं दूर की जा सकती हैं। उनका और उनके बच्चों का भविष्य बेहतर बनाया जा सकता है। उन्हें वे बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकती हैं, जिनसे उनमें काम करने का उत्साह आए और वे मानवीय गरिमा के साथ अपनी ड्यूटी का निर्वहन कर सकें। लेख के इस भाग में हम चर्चा करेंगे कि पुलिस के व्यवहार में और कार्यप्रणाली में वे कौन से बदलाव आने चाहिए जिससे लोग जनता को वाकई अपना मित्र और हितैषी समझें। अपराधी और असामाजिक तत्व पुलिस से डरें। जबकि आम आदमी पुलिस की उपस्थिति में खुद को निर्भय महसूस करे।
सबसे पहली बात तो यह है कि पुलिस की ट्रेनिंग आज भी कुछ ना कुछ ब्रिटिश जमाने की चली आ रही है। ब्रिटिश शासन में पुलिस की जिम्मेदारी अपराधियों पर नकेल कसने के साथ ही जनता को भयभीत रखने की भी होती थी। उस समय जनता को डरा कर रखना इसलिए जरूरी था क्योंकि उसके मन में किसी भी तरह विदेशी शासन से विद्रोह करने की मानसिकता ना आ सके। बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि उस जमाने में खाकी का इतना भय हुआ करता था कि अगर किसी गांव में डाकिया भी पहुंच जाए तो लोग सहम जाते थे।
लेकिन आजाद भारत में तो पुलिस का काम समाज को भयमुक्त करना है। आम नागरिक की सबसे बड़ी समस्या यह रहती है कि जब वह थाने में किसी बात की शिकायत करने जाता है या एफआईआर करना चाहता है तो इस प्रक्रिया में उसे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। कई गंभीर मामलों में तो पुलिस समाज के रसूखदार लोगों या राजनीतिक दबाव में भी एफआईआर नहीं करती है। कितने ही ऐसे मौके आते हैं, जब बड़ी पहुंच वाले लोगों से एफआईआर कराने के लिए फोन करने पड़ते हैं।
पुलिस के तंत्र में इस तरह के बदलाव किये जानी चाहिए की आम नागरिक के लिए शिकायत करना और रिपोर्ट दर्ज कराना आसान हो। क्योंकि पुलिस न्याय देने वाली संस्था नहीं है लेकिन न्याय की प्रक्रिया की पहली सीढ़ी अवश्य है।
पुलिस के पास अपराधों की जांच करने, कानूनों का प्रवर्तन करने और राज्य में कानून एवं व्यवस्था की स्थिति बहाल रखने की शक्ति होती है। इस शक्ति का उपयोग वैध उद्देश्य के लिए हो, यह सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न देशों ने सुरक्षात्मक उपाय किए हैं जैसे राजनीतिक कार्यकारिणी के प्रति पुलिस को जवाबदेह बनाना और स्वतंत्र निरीक्षण अथॉरिटीज की स्थापना करना।
भारत में, राजनीतिक कार्यकारिणी (यानी मंत्रीगण) में पुलिस बलों के अधीक्षण और नियंत्रण की शक्ति है ताकि उनकी जवाबदेही को सुनिश्चित किया जा सके। हालांकि दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने टिप्पणी की थी कि इस शक्ति का दुरुपयोग किया जाता है और मंत्रीगण व्यक्तिगत एवं राजनीतिक कारणों के लिए पुलिस बलों का उपयोग करते हैं। इसलिए विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि राजनीतिक कार्यकारिणी की शक्तियों का दायरा कानून के तहत सीमित किया जाना चाहिए।
अपराध और अव्यवस्था को रोकने के लिए पुलिस को आम जनता के विश्वास, सहयोग और समर्थन की जरूरत होती है। उदाहरण के लिए किसी भी अपराध की जांच के लिए पुलिसकर्मियों को इनफॉर्मर और गवाहों के रूप में आम जनता के भरोसे रहना पड़ता है। इसलिए प्रभावशाली पुलिस व्यवस्था के लिए पुलिस और जनता के बीच का संबंध महत्वपूर्ण है। दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने टिप्पणी की थी कि पुलिस और जनता के बीच का संबंध असंतोषजनक स्थिति में है क्योंकि जनता पुलिस को भ्रष्ट, अक्षम, राजनैतिक स्तर पर पक्षपातपूर्ण और गैर जिम्मेदार समझती है।
इस चुनौती से निपटने का एक तरीका कम्युनिटी पुलिसिंग मॉडल है। कम्युनिटी पुलिसिंग के लिए पुलिस को अपराध को रोकने और उसका पता लगाने, व्यवस्था बहाल करने और स्थानीय संघर्षों को हल करने के लिए समुदाय के साथ काम करने की जरूरत होती है ताकि लोगों को बेहतर जीवन प्राप्त हो और उनमें सुरक्षा की भावना पैदा हो। इसमें सामान्य स्थितियों में आम लोगों के साथ संवाद कायम करने के लिए पुलिस द्वारा गश्त लगाना, आपराधिक मामलों के अतिरिक्त दूसरे मामलों में पुलिस सेवा के अनुरोध पर कार्रवाई करना, समुदाय में अपराधों को रोकने का प्रयास करना और समुदाय से जमीनी स्तर पर प्रतिक्रियाएं हासिल करने के लिए व्यवस्था कायम करना शामिल है। विभिन्न राज्य कम्युनिटी पुलिसिंग के क्षेत्र में प्रयोग कर रहे हैं, जैसे केरल (जनमैत्री सुरक्षा प्रॉजेक्ट), राजस्थान (ज्वाइंट पेट्रोलिंग कमिटीज), असम (मीरा पैबी), तमिलनाडु (फ्रेंड्स आॅफ पुलिस), पश्चिम बंगाल (कम्युनिटी पुलिसिंग प्रॉजेक्ट), आंध्र प्रदेश (मैत्री) और महाराष्ट्र (मोहल्ला कमिटीज)।
इन चीजों को अमल में लाने के लिए पुलिस को उपलब्ध बुनियादी ढांचे में कुछ सुधार की आवश्यकता है। उसे मजबूत किए जाने की जरूरत है। कैग के ऑडिट में राज्य पुलिस बलों में हथियारों की कमी पाई गई है। ब्यूरो आॅफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ने यह टिप्पणी भी की है कि राज्य पुलिस बलों के अपेक्षित वाहनों (2,35,339 वाहनों) के स्टॉक में 30.5% स्टॉक का अभाव है। हालांकि इंफ्रास्ट्रक्चर के आधुनिकीकरण के लिए दिए जाने वाले फंड्स का आम तौर पर पूरा उपयोग नहीं किया जाता है। केवल 14% फंड्स का राज्यों द्वारा उपयोग किया गया था।
इन बातों से पता चलता है कि पुलिस प्रणाली में सुधार के लिए राज्य प्रशासन की इच्छा शक्ति की की बहुत जरूरत है। जिम्मेदार पुलिस के लिए पहली चीज तो यह है कि कम से कम उस सारे फंड का उपयोग कर लिया जाए जो पुलिस की बेहतरी के लिए दिया गया है। दूसरा यह कि आधुनिक समय की जरूरत के हिसाब से पुलिस का बजट बढ़ाया जाए। तीसरी बात यह कि पुलिस ट्रेनिंग में यह बात गंभीरता से सिखाई जाए कि पुलिस जनता की सेवक हैं, उसे अपराधियों के साथ व्यवहार में और आम आदमी के साथ लोगों में फर्क करना सीखना चाहिए। चौथी बात यह कि पुलिस जनता के प्रति जिम्मेदार है ना कि किसी रसूखदार व्यक्ति के प्रति। इससे आम जनता और पुलिस के संबंध बहुत मधुर और प्रभावशाली हो जाएंगे।
(लेखक पूर्व पुलिस अधिकारी हैं)

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