- मप्र में नक्सलियों के आत्मसमर्पण की नीति का है अभाव
भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र के नक्सल प्रभावित तीन जिलों में इन दिनों नक्सलवाद तेजी से पनप रहा है। यही वजह है कि देश में सबसे अधिक बाघों वाले मंडला स्थित कान्हा टाइगर रिजर्व के 80 फीसदी इलाके पर नक्सलवादियों ने कब्जा कर अपनी हूकुमत चलानी शुरू कर दी है। इसकी वजह से अब इस कान्हा टाइगर रिजर्व में आने वाले पर्यटकों की संख्या महज बीस फीसदी ही रह गई है। इसके बाद भी प्रदेश में अब तक सक्रिय नक्सलियों को समाज की मुख्यधारा में वापस लाने और उनके बेहतर पुनर्वास के लिए कोई नीति ही नहीं है। इसके लिए तैयार की गई सरेंडर पॉलिसी मंजूरी के लिए वित्त विभाग के पास स्वीकृति के लिए पड़ी हुई है। प्रदेश में बालाघाट, डिंडौरी एवं मंडला में नक्सली सक्रिय हैं। यह हालात तब है जबकी प्रदेश में नक्सलवाद के खात्मे के लिए हर साल तीनों जिलों में करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं। इसके बाद भी कान्हा टाइगर रिजर्व में नक्सलियों को प्रभाव बढ़ता ही जा रहा है। इसकी वजह से अब तो मैदानी अमला और वन अधिकारी अपनी रेंज और बीटों में जाने तक से डरने लगे हैं। एक पूर्व वन अफसर के मुताबिक अब कान्हा के सिर्फ 18 प्रतिशत इलाके में ही पर्यटन हो पा रहा है। आने वाले समय में इसमें और भी कमी आना तय है। नक्सली दो महीने में तीन वन कर्मचारियों की हत्या कर चुके हैं। 22 मार्च को उन्होंने वनकर्मी सुखदेव को मुखबिरी के शक में मार दिया था, जिसके बाद मैदानी अमले ने पेट्रोलिंग पर जाना ही बंद कर दिया है। नक्सलियों के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए ही केंद्रीय वन मंत्री भूपेंद्र यादव, पूर्व पीसीसीएफ एचएस पाबला, एनटीसीए के पूर्व सदस्य और ग्लोबल टाइगर फोरम के सेक्रेटरी जनरल राजेश गोपाल ने सीएम शिवराज सिंह चौहान ने पत्र लिखा है। वहीं, द नेचलर वॉलंटियर संस्था के अध्यक्ष पद्मश्री भालू मोंढ़े ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कान्हा को नक्सलियों से मुक्त कराने का आग्रह किया है।
पड़ौसी प्रदेशों से आकर बना रहे ठिकाना
वन विभाग सूत्रों के मुताबिबक छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में पुलिस के बढ़ते दबाव की वजह से उन राज्यों में सक्रिय नक्सली अब मप्र को अपना सुरक्षित ठिकाना बना रहे हैं। इसकी वजह से ही प्रदेश के आदिवासी आहुल्य इन तीनों ही सीमावर्ती जिलों में उनकी दखल बढ़ रहा है। बताया जाता है कि कान्हा नेशनल पार्क, बालाघाट, डिंडौरी और मंडला में नक्सलियों के मोचा व खातिया दलम का दबदबा है। ये अक्सर वन कर्मियों को डराते, धमकाते रहते हैं।
हर साल 24 करोड़ खर्च
कान्हा नेशनल पार्क की यह स्थिति तब हुई है जब सरकार वनों की सुरक्षा के लिए गठित विशेष पुलिस बल के लिए हर साल 23 करोड़ 88 लाख 56 हजार रुपए खर्च किया जाता है। देश में सबसे ज्यादा 108 बाघ कान्हा नेशनल पार्क में है। यहां 1,74,312 पर्यटक हर साल पहुंचते हैं, जिनमें 30 हजार विदेशी होते हैं।
पिछले साल प्रदेश में 19 नक्सली घटनाएं
मप्र में पिछले साल यानी वर्ष 2021 में 19 नक्सली हिंसा के मामले सामने आए, जिसमें तीन लोगों की मौत हुई। वर्ष 2020 में हुईं 16 घटनाओं में दो की तो वर्ष 2019 में पांच नक्सली हिंसा की घटनाओं में दो लोगों की मौत हुई थी।
पांच राज्यों में लागू है नीति
सक्रिय नक्सलियों को समाज की मुख्यधारा में वापस लाने और उनके बेहतर पुनर्वास के लिए नक्सल प्रभावित राज्यों में शामिल छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र में आत्मसमर्पण नीति लागू है। इसके अलावा केंद्र ने भी सरेंडर पॉलिसी तैयार की है। बहरहाल, पुलिस मुख्यालय की नक्सल विरोधी अभियान शाखा ने नक्सल समर्पण नीति का मसौदा गृह विभाग को भेजा गया था, जिसको वित्त विभाग की मंजूरी का इंतजार है , जिससे उसे कैबिनेट में रखा जा सके। प्रस्तावित नीति के अनुसार नक्सलियों और उनके द्वारा सरेंडर किए जाने वाले हथियारों के आधार पर पुनर्वास किया जाएगा। सरेंडर करने वाले नक्सलियों को जीवन यापन के लिए कृषि योग्य भूमि या अन्य सेवाओं में मौका दिए जाने का भी प्रावधान किया गया है। एके-47 या इसके समकक्ष हथियार सरेंडर करने और उन पर घोषित इनाम के आधार पर प्रोत्साहन राशि भी तय की गई है।
सीमावर्ती जिले नक्सल प्रभावित
नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ के जिलों में दबाव बनने पर नक्सली सीमा से सटे मप्र के जिलों में आ जाते हैं। घना वन क्षेत्र होने से नक्सलियों को मप्र में छिपने की बेहतर सुविधाएं देती है। इसके अलावा डिंडौरी, बालाघाट और मंडला के दूरदराज और वन्य क्षेत्रों में नक्सली अपनी गतिविधियों को लगातार विस्तार देने की फिराक में रहते हैं। इसके चलते युवाओं को बरगलाकर नक्सल गतिविधियों में शामिल करने के साथ ही स्थानीय तेंदुपत्ता फड़ों से वसूली भी शामिल है। हालांकि पिछले साल हॉक फोर्स की सख्ती के चलते मप्र से सिर्फ एक फड़ से वसूली करने में ही नक्सली सफल हो सके थे।