शुद्धता के पैमाने पर खरा नहीं उतर रहा खाद्य विभाग का अमला

खाद्य विभाग
  • लोगों पर भारी पड़ रहा मिलावट माफिया

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश में जहां सरकार पूरी तरह से माफिया के खिलाफ हाथ धोकर पड़ी हुई है, वहीं प्रदेश का खाद्य विभाग उसकी मंशा पर पूरी तरह से पानी फेरने में लगा हुआ है। यही वजह है कि राज्य में लोगों को मिलावटी माफिया का शिकार होना पड़ रहा है। प्रदेश की बात छोड़ दी जाए तो राजधानी में ही ऐसे सैकड़ों मामले हैं, जिनमें खाद्य पदार्थ जांच की कसौटी में खरे नहीं उतर रहे हैं। इसके बाद भी इस विभाग के अफसरान लापरवाह बने हुए हैं। इस मामले में सिस्टम और अफसर मिलकर बुरी तरह से कबाड़ा कर रहे हैं। दरअसल, जो खाद्य पदार्थ जांच में गुणवत्ताविहीन पाए जाते हैं, उनकी नियमित जांच होनी चाहिए , लेकिन प्रदेश में तो ठीक राजधानी में ही नियमानुसार खाद्य सुरक्षा अधिकारी उनकी लगातार जांच करने का प्रयास ही नहीं करते हैं। इसकी वजह से उनमें की जाने वाली मिलावट जारी रहने की पूरी संभावना बनी रहती है। ऐसा नहीं है कि यह रवैया इस सरकारी अमले का किसी एक कंपनी या ब्रांड के मामले रहता है, बल्कि सभी के साथ ऐसा ही रहता है। अगर राजधानी की बात की जाए तो राजश्री, रजनीगंधा जैसे पान मसाले के सैंपल सर्वाधिक जांच में फेल हुए हैं, इसके बाद भी खाद्य सुरक्षा अधिकारी इनके सैंपल लेने में रुचि नहीं लेते हैं। यही वजह है कि लंबे समय के बाद भी इनकी जांच का इंतजार लोगों को बना हुआ है।
पुलिस कार्रवाई में मिल रहा है मिलावटी मावा-पनीर
राजधनी में आए दिन पुलिस द्वारा मिलावटी मावा और पनीर पकड़ा जा रहा है। इसके बाद उसे नष्ट करने का काम किया जाता है। खास बात है कि इस मामले में भी खाद्य विभाग का अमला पूरी तरह से लापरवाह बना हुआ है। खास बात यह है कि त्यौहारी सीजन पर ही खाद्य विभाग का अमला सक्रिय नजर आता है। उस समय भी यह कार्रवाई सिर्फ मिठाई की दुकानों व मावा तक ही सीमित रहती है। अगर मावा और पनीर के मामलों में पुलिस कार्रवाई न करे तो यह भी मिलावटी मावा व पनीर ही पकड़ा नहीं जाए। पुलिस द्वारा इसे पकड़कर पहले ही नष्ट करा दिया जाता है। बावजूद इसके दुकानों से बिकने वाले मावे की शुद्धता जांच के लिए सैंपल न के बराबर होते हैं। राजधानी में अधिकांश मावा व पनीर ग्वालियर या मुरैना से ही आता है इसके बाद भी खाद्य विभाग उस पर नजर नहीं रखता है।  
बड़े संस्थानों पर नहीं की जाती कार्रवाई
खाद्य विभाग का अमला तो दूर अन्य सरकारी विभागों का अमला भी शहर के बड़े संस्थानों की तरफ झांकना तक पसंद नहीं करता है। इसकी वजह क्या है यह तो वह ही जाने। जबकि पूर्व में कई बार चलाए गए अभियान में कई बड़े प्रतिष्ठानों के सैंपल जांच में फेल हो चुके है। यही नहीं खजुराहो घी का सैंपल तो अनसेफ तक निकल चुका है। इसी तरह से टेस्ट ऑफ इंडिया होटल से लिए गए नमूने तो दो बार फेल हो सका। इसके बाद भी लंबे समय से जांच नहीं की जा रही है।
नहीं की जाती तेल की जांच
सबसे खराब हालात तो उस तेल की है, जिसका उपयोग छोटे ठेलों से लेकर रेस्टोरेंट व होटलों में उपयोग किया जाता है। इस जांच को तो विभाग लगभग भूल ही चुका है। पहले हुई जांच में खुलासा हो चुका है कि अधिकांश स्थानों पर तीन से चार बार तेल का इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद विभाग ने व्यापारियों को समझाइश देकर मामले को ही भुला दिया है। लगभग यही हाल हरी सब्जियों को गंदे पानी से धोने और कलर का इस्तेमाल करने के मामले में भी है। इस मामले में कई बार जांच के निर्देश दिए जाने के बाद भी विभागीय अमले ने सक्रियता दिखाना मुनासिब नहीं समझा है। इस तरह के मामलों में भी तब कार्रवाई हो सकी है , जब उसको लेकर वीडियो वायरल हुए। इस तरह के मामलों में अमला खुद से  कभी सक्रियता नहीं दिखाता है।
सीएम के निर्देशों का भी पालन नहीं
प्रदेश में मिलावट के खिलाफ दो साल पहले नवंबर 2020 से अभियान शुरू किया गया था। उस समय अभियान को शुरू करने से पहले ही मुख्यमंत्री ने साफ कर दिया था कि यह महज खानापूर्ति साबित नहीं होना चाहिए। मिलावटखोरों पर सीधी और कड़ी कार्रवाई की जाए। इसके बाद कुछ समय तो दिखने के लिए कार्रवाई की गई, लेकिन बाद में अफसरों ने इसे भुला दिया है। जिनके सैंपल अमानक निकले या सब स्टैंडर्ड निकले उनकी जांच दोबारा नहीं की गई।

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