– कलेक्टर के तौर पर इंदौर में एमवाय के कायाकल्प से मिली थी ख्याति
– सूरत में प्लेग फैला तो इंदौर में एहतियातन की थी कार्रवाई
– सूरत में प्लेग फैला तो इंदौर में एहतियातन की थी कार्रवाई
– मोहंती के गुरु विजय सिंह भी बैठ चुके हैं सीएस की कुर्सी पर
– दल-बल के साथ पैदल ही चल पड़ते थे कलेक्टरी के दौरान
मध्य प्रदेश के नए मुख्य सचिव सुधिरंजन मोहंती ने पदभार ग्रहण कर लिया है। 1982 बैच के आईएएस अधिकारी मोहंती मध्यप्रदेश के 31वें मुख्य सचिव बनाए गए हैं। उन्होंने बीपी सिंह का स्थान लिया। यह तो हुई खबर, अब बात मोहंती की कार्यशैली की। 90 के दशक में हाथों में मरा चूहा उसकी पूंछ से पकड़े फोटो खिंचवाने वाले मोहंती पूरी दुनिया में पहचाने गए थे। इंदौर में ऑपरेशन कायाकल्प के तहत प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल महाराजा यशवंतराव चिकित्सालय का कायाकल्प किया था उन्होंने। जितना मुश्किल काम था, उतनी ही तन्मयता के साथ मोहंती ने उसे अंजाम दिया था। कामयाबी की वजह से सुर्खियों में भी रहे थे। खैर, उस समय दिग्विजय सिंह की सरकार थी। जब भाजपा सरकार बनी तो मोहंती लूपलाइन में डाल दिए गए। जो मौका मिला, उसे गंवाया नहीं। अब प्रदेश के प्रशासनिक मुखिया बने हैं तो उनसे कई उम्मीदें की जा रही हैं…
अवधेश बजाज/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)। एक अकेला आदमी मूलत: ईमानदार… प्रतिभावान…। उसको हर वक्त नीचा दिखाने की कोशिश की गई…. उसे डेढ़ दशक तक लॉलीपॉप दिए गए… जो दोस्त थे उन्होंने ही अड़ंगे लगाए… उसने ठगा-सा महसूस किया… पर धर्म और योग सेे खुद को भीतर से साधे रहा… अपने कर्मपथ पर अडिग रहा… डटा रहा… न तनिक कोई उद्वेलित कर सका और न विचलित…. और आज प्रदेश के सर्वोच्च पद पर जा बैठा… हम बात कर रहे सुधिरंजन मोहंती यानी एसआर मोहंती की… राम के चौदह वर्ष… पांडवों के 12 वर्ष वनवास के रहे… प्रदेश में राजनीतिक बदलाव के चलते मोहंती 15 वर्ष वनवास जैसी हालत में रहे…. उन्हें इस दौरान जो भी विभाग मिले उसमें न सिर्फ खुद को श्रेष्ठ साबित किया, बल्कि वैश्विक स्तर पर सरकार को सम्मान भी दिलाया… उनसे दो वर्ष जूनियर आईएएस को शिवराज सरकार ने सीएस बनाकर एक तरह से उनकी प्रतिभा से नजरें फेरने का काम किया, जैसा बाबूलाल गौर के मुख्यमंत्रित्व काल में सीएस रहे विजय सिंह के साथ। तंग आकर वे केंद्र में जाने को बाध्य हो गए थे…. दिग्विजय सिंह के विश्वस्त अधिकारियों में से एक रहे एसआर मोहंती को कमलनाथ ने मुख्य सचिव की उस कुर्सी पर बैठाया है जिस पर कभी उनके प्रशासनिक गुरु विजय सिंह बैठ चुके हैं…
मोहंती को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति
नई सरकार, नए मुख्यमंत्री के साथ नए बने मुख्य सचिव सुधिरंजन मोहंती की प्रशासनिक सफलताओं में इंदौर की कलेक्टरी मील का पत्थर रही है। आईआईएम अहमदाबाद से पढ़े मोहंती ने मैनेजमेंट का पूरा ज्ञान प्रदेश को संवारने में लगा दिया। मोहंती की प्रतिभा ऐसी थी कि उन्हें कोई भी इंकार नहीं कर पाता था। उन्हें वरिष्ठ अफसरों और नेताओं से भले ही खूब आश्वासन मिले, मगर उन्होंने किसी का दिल नहीं दुखाया। हर समय सभी के साथ खड़े दिखे। आज मोहंती अगर मुख्य सचिव के पद पर पहुंचे हैं, तो यह सिर्फ उनकी काबिलियत का ही उदाहरण है। मध्य प्रदेश के किसी आईएएस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिली तो वह इंदौर कलेक्टर के रूप में मोहंती को ही मिली। उन्हीं के कार्यकाल में प्रदेश के सबसे बड़े सात मंजिला अस्पताल एमवायएच में ‘ऑपरेशन कायाकल्प’ शुरू हुआ। इस अभियान के बाद ही प्रदेश में सरकारी स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी के प्रयास में जनभागीदारी की शुरुआत से तेजी आई और जिलों में रोगी कल्याण समितियों के गठन के माध्यम से ‘बेटर हेल्थ सर्विस’ का मॉडल मोहंती ने तैयार किया जिसे पूरे प्रदेश में लागू किया गया। 22 सितंबर 93 से 27 जून 96 तक इंदौर कलेक्टर रहते एसआर मोहंती की उपलब्धियों में सबसे महत्वपूर्ण रहा प्रदेश के सबसे बड़े सात मंजिला एमवाय अस्पताल में किया गया कायाकल्प जिसकी विश्व स्तर पर चर्चा आज भी होती है।
इंदौर आज भी याद करता है मोहंती को: स्वास्थ्य सेवाओं के लिहाज से बजट कम था, शासन ने एमवायएच के लिए पृथक से फंड भी दिया लेकिन जिस तरह से कायाकल्प के तहत काम होना था वह अधूरा न रह जाए उसके लिए जनसहयोग का रास्ता निकाला गया। इस अभियान से शहर को जोडऩे के लिए इंदौर प्रेस क्लब में शहर के सभी सामाजिक एवं स्वयंसेवी संगठनों की बैठक आयोजित की गई। लकड़ी पीठा व्यापारी संघ ने मरीजों के सहायकों के बैठने के लिए स्टूल बनाकर देने की, एमटीएच क्लाथ मार्केट ने गद्दे और चादर उपलब्ध कराने की घोषणा की तो किसी संगठन ने टूटे पलंग ठीक कराने का जिम्मा लिया। इंदौर प्रेस क्लब ने भी शहर हित के इस निर्णय में स्थानीय संगठनों और आमजन से आर्थिक सहयोग का आह्वान किया था। तत्कालीन अध्यक्ष शशींद्र जलधारी (नईदुनिया) और सचिव कीर्ति राणा (दैनिक भास्कर) सहित प्रेस क्लब कार्यकारिणी ने कायाकल्प अभियान में साढ़े आठ लाख रुपए जनसहयोग से जुटाए थे। इंदौर के मीडिया जगत ने भी इस अभियान की प्रगति को हर दिन प्रमुखता से स्थान दिया। शासकीय कार्य में जनभागीदारी के कांसेप्ट का भी ऑपरेशन कायाकल्प मॉडल बना। सरकारी योजनाओं में पेड सर्विस की शुरुआत भी रोगी कल्याण समिति (रोकस/आरकेएस) की चि_ी का शुल्क जमा कराने से हुई थी।
सूरत में फैले प्लेग से चला ऑपरेशन कायाकल्प : तत्कालीन एडीएम सीबी सिंह (अब सेवानिवृत्त) बताते हैं सितंबर 94 में सूरत में प्लेग फैला तो मप्र सरकार ने गुजरात सीमा से सटे सभी जिलों को भी अलर्ट कर दिया। वहां के हीरा कारखानों में काम करने वाले मप्र के विभिन्न जिलों के लोग भी अपने घरों को लौट रहे थे। मोहंती साब की चिंता थी कि इंदौर भी कहीं प्लेग की चपेट में न आ जाए। इसी दौरान एडिशनल कलेक्टर शैलेंद्र सिंह (अभी केंद्र में अतिरिक्त सचिव वाणिज्य-उद्योग) के पिताजी एमवायएच में दाखिल थे। कलेक्टर उनकी मिजाजपुर्सी के लिए गए साथ में सीबी सिंह, तत्कालीन एसडीएम सराफा निर्मल उपाध्याय (सेवानिवृत्त) भी थे। इसी दौरान एक मोटा-सा चूहा पलंग के नीचे से भागता हुआ निकला। वहीं दाखिल एक मरीज के पैर का अंगूठा चूहे द्वारा कुतरने की घटना भी इन्हीं दिनों में हो चुकी थी। बस मोहंती ने तय किया कि एमवायएच से चूहों का सफाया करना है। अब चुनौती थी कि अस्पताल में पेस्ट कंट्रोल कराने से लेकर टॉयलेट-बाथरूम और किचन में चूहों के बिल और उनके आने-जाने के रास्ते पैक करने की। इसके लिए पूरा अस्पताल खाली कराना जरूरी था।
रोज शाम बंगले पर लेते थे फीडबैक
रोज शाम के वक्त मोहंती के बंगले पर अभियान को लेकर क्या करें, कैसे करें कि प्लानिंग होती। तत्कालीन संयुक्त संचालक जनसंपर्क सुरेश तिवारी को जिम्मा दिया गया ऑपरेशन कायाकल्प के लिए मीडिया को विश्वास में लेने का। लक्ष्मी पेस्ट कंट्रोल वाले संजय करमरकर का कहना था कम से कम तीन दिन के लिए तो एमवायएच के तलघर सहित सातों मंजिल बंद रखना ही पड़ेगी। मरीजों को शिफ्ट करने से लेकर उपचार के लिए निजी अस्पतालों और उनके संगठन आईएमए से बात की गई। इस अभियान के चलते किसी मरीज की उपचार के अभाव में मौत हो जाती तो राज्य सरकार की बदनामी और मोहंती के कैरियर पर दाग लगना तय था। बाकी मरीजों को धार रोड स्थित जिला अस्पताल में शिफ्ट किया गया। फिर शुरू हुआ चूहामार अभियान। शाम को मरे हुए चूहे बड़े ड्रमों में एकत्र किए जाते। अपने किस्म का मप्र में यह पहला ऐसा अभियान था जिसे कवर करने इंटरनेशनल मीडिया का भी आना-जाना लगा रहा।
मरे चूहों को पकड़े घूमते थे मोहंती
मरे हुए चूहों को पूछ से पकड़े कलेक्टर मोहंती भी खूब सुर्खियों में रहे। ऑपरेशन कायाकल्प शुरु तो किया गया था चूहों के खात्मे के लिए लेकिन जब एमवायएच के तलघर में देखा तो वहां टूटे पलंग, कुर्सियों, ट्यूबलाइट, फटे गद्दों आदि का अटाला भरा पड़ा था। ये एक नई चुनौती थी। दो डिप्टी कलेक्टरों गजानन यादव और (साइकल से आने जाने वाले) बीडी हिरवे को शिवाजी प्रतिमा के यहां तैनात किया गया। इनकी ड्यूटी तय की गई कि जो भी खाली ट्रक निकले उसे रोक कर एमवायएच भेजें, यह ट्रक अटाले की एक खेप भरेगा और छोटे (कुश्ती वाले) स्टेडियम में डाल कर आएगा। तलघर से इतना अटाला निकला कि स्टेडियम में कबाड़ का पहाड़ खड़ा हो गया।
राजबाड़ा का सौंदर्यीकरण भी मोहंती की देन
मोहंती के वक्त में ही राजबाड़ा का सौंदर्यीकरण, उस क्षेत्र के मकानों, साइन बोर्ड को एक से रंग में रंगने का अभियान भी चला। शहर में अतिक्रमण विरोधी मुहिम भी तब ही युद्धस्तर पर बिना किसी बड़े विरोध के चली थी। कृष्णपुरा छतरियों के आसपास से दुकानें हटाने, छतरियों का सौंदर्य निखारने का काम भी संभागायुक्त विजय सिंह के निर्देशन में चला। मोहंती के वक्त कृष्णपुरा छतरी पर जिला प्रशासन द्वारा फैशन शो कराए जाने के निर्णय के विरोध में कैलाश विजयवर्गीय ने वेष बदलकर समारोह स्थल पर पहुंच कर हंगामा करने के साथ ही पुलिस इंतजाम को धता बता दी थी। पुलिस और रेवेन्यू अधिकारियों में बेहतर तालमेल भी मोहंती के वक्त में ही बना।
दल-बल के साथ पैदल निकलते थे मोहंती
इंदौर की प्रशासनिक मुस्तैदी का तब यह आलम था कि कलेक्टर दल-बल सहित पैदल निकल जाए तो खौफ रहता था। इंदौर में नरेश नारद के बाद एसआर मोहंती ही ऐसे कलेक्टर साबित हुए जो अपने मातहत अधिकारियों की चिंता पालने के साथ ही उनका बुरा न हो यह खयाल भी रखते थे। अपने मातहत स्टॉफ पर भरोसा कर के ही हर चुनौती को सफलता में बदला जा सकता है मोहंती की यही वर्किंग स्टाइल उन्हें प्रदेश के प्रशासनिक मुखिया के रूप में भी श्रेष्ठतम साबित कर सकती है। जैसा मोहंती ने अपने स्टॉफ पर भरोसा किया उससे कहीं अधिक तत्कालीन संभागायुक्त विजय सिंह का मोहंती पर भरोसा रहा।