अपने बेटे को कांग्रेस का टिकट न मिलने से नाराज वरिष्ठ नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी ने बगावत कर दी। बेटे ने सपा के टिकट पर चुनाव लडऩे का नामांकन दाखिल किया तो सीनियर चतुर्वेदी उनके साथ थे। यह तक कह गए कि उत्तर प्रदेश की सीमा से लगी सीटों पर भी सपा के लिए प्रचार करूंगा। यह कांग्रेस के लिए जोरदार झटका रहा क्योंकि चतुर्वेदी पार्टी के वरिष्ठ सक्रिय नेताओं में से एक थे। दिग्विजय सिंह से जब सवाल पूछा गया तो वे दुखी हो गए। उनका कहना था कि चतुर्वेदी के लिए पार्टी ने काफी कुछ किया है। उन्हें ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए था। हालांकि, यह बात अलग है कि सत्यव्रत चतुर्वेदी ने कांग्रेस छोडऩे के लिए पार्टी में सामंतशाही को जिम्मेदार ठहराया। वे सामंतशाही के खिलाफ बयानबाजी करते रहे हैं, लेकिन इसके विपरीत जाकर वे उन्हीं नेताओं के चहेते भी बने रहे हैं।
अरुण पटेल/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी के बेटे नितिन चतुर्वेदी कांग्रेस का टिकट न मिलने पर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में छतरपुर जिले की राजनगर सीट से विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। यहां से कांग्रेस के कुंवर विक्रम सिंह वर्तमान में विधायक हैं, इसलिए उनकी टिकट काटना कांग्रेस के लिए आसान नहीं था, लेकिन सत्यव्रत चतुर्वेदी न केवल बेटे द्वारा उम्मीदवारी का पर्चा दाखिल करते समय उपस्थित रहे बल्कि उन्होंने यह भी कह डाला कि कांग्रेस में सामंतशाही और राजशाही हावी है। उनका कहना था कि नितिन के साथ पन्द्रह साल से अन्याय हो रहा है। कांग्रेस उनको लेकर दुविधा में फंस गई है क्योंकि इस घटनाक्रम के पूर्व वह कांग्रेस के स्टार प्रचारकों में सत्यव्रत का नाम दे चुकी थी। जब किसी को कांग्रेस रास नहीं आती तो वह आसानी से राजशाही और सामंतशाही का आरोप चस्पा कर देता है। जहां तक सत्यव्रत का सवाल है वे स्थानीय स्तर पर तो इसके प्रबल विरोधी रहे लेकिन पूर्व केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया हमेशा उनके चहेते नेता बने रहे और जोरशोर से वे 2018 के विधानसभा चुनाव में माधवराव के बेटे और पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को शिवराज के मुकाबले कांग्रेस का मुख्यमंत्री चेहरा घोषित करने की पैरवी भी करते रहे। वैसे वे अर्जुन सिंह के मंत्रिमंडल में उपमंत्री भी रहे हैं लेकिन उस समय उन्हें सामंतशाही व राजशाही से सम्बंध रखने वाले अर्जुन सिंह को अपना नेता मानने से गुरेज नहीं रहा। बाद में जरूर वे अर्जुनसिंह और दिग्विजय सिंह की राजनीति से खुलेआम अपनी नाराजगी प्रकट करने से हिचकिचाते नहीं थे एवं कभी-कभी बयानबाजी भी कर देते थे।
कांग्रेस के केंद्र की राजनीति में जो बड़े नेता अर्जुन सिंह व दिग्विजय सिंह के विरोध में रहे उनके प्रिय पात्र चतुर्वेदी बन गए। बेटे को टिकट न मिलने से सामंतशाही हावी होने का जो आरोप सत्यव्रत ने लगाया वह अपनी सुविधानुसार परिभाषा गढऩा ही माना जाएगा, क्योंकि एक तरफ तो वे महाराजाओं के समर्थक नजर आए तो दूसरी तरफ राजा और सामंतशाही से जिन्हें जुड़ा मानते हैं उनके विरुद्ध मोर्चा खोले रहे। वैसे सत्यव्रत कभी-कभी आवेश में आ जाते हैं और फिर नफे या नुकसान की चिन्ता किए बिना कदम उठा लेते हैं। दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्रित्वकाल में राज्य विधानसभा में कांग्रेस विधायक रहते हुए उनकी अपनी ही पार्टी की सरकार से इतनी नाराजगी पैदा हुई कि उन्होंने सदन में बात रखते-रखते विधायक पद से इस्तीफे की घोषणा कर दी और विधानसभा अध्यक्ष श्रीयुत श्रीनिवास तिवारीे ने उनका इस्तीफा मंजूर कर लिया। भले ही सत्यव्रत दिग्विजय सिंह से नाराज रहे हों लेकिन दिग्विजय सिंह का कहना है कि वे मेरे पारिवारिक मित्र और भाई हैं। अपनी आदत के अनुसार हमेशा ठहाका लगाने वाले दिग्विजय उस समय भावुक हो गए जब नितिन के सपा से चुनाव लडऩे के संबंध में सवाल पूछा गया, उनकी आवाज भारी हो गई और आंखें भर आईं। दिग्विजय का कहना था कि ये मेरे लिए बहुत दुख की बात है सत्यव्रत को मैं विनोद बोलता हूं, जब मैं मंत्री था तब वे मेरे डिप्टी थे। तमाम मतभेदों के बावजूद वह मेरा पारिवारिक मित्र एवं भाई है। उसके बेटे को टिकट नहीं मिला यह पार्टी का फैसला है, लेकिन इसका दुख मुझे भी हुआ है, लेकिन दूसरी पार्टी में जाकर चुनाव लडऩा मेरे लिए धक्का है।
यदि सत्यव्रत मुझसे नाराज हैं तो उनकी नाराजगी जायज है। ये सारी बातें करते-करते उनकी आंखों की कोरें भीगने लगीं और चश्मे के पार महीन आंसू दिखने लगे। दिग्विजय ने यह भी कहा कि सत्यव्रत चतुर्वेदी को कांग्रेस ने बहुत कुछ दिया है, उनकी मां और पिता को भी दिया, उनके बेटे को भी एक बार टिकिट दिया, इसके बावजूद पार्टी के साथ यह व्यवहार दुखी करने वाला है। सत्यव्रत ने कहा कि मैं अपने बेटे का एवं अन्य सीमावर्ती जिलों में भी समाजवादी पार्टी का चुनाव प्रचार करुंगा। कांग्रेस को यदि मेरी जरुरत है तो रखे अन्यथा बाहर कर दे। दिग्विजय सिंह ने उनकी अध्यक्षता में गठित कांग्रेस समन्वय समिति में सत्यव्रत को भी रखा था और उनके घर भी गये थे। बॉडी लैंग्वेज से दोनों के रिश्ते सुधरते हुए नजर आये लेकिन बेटे की टिकिट कटते ही सत्यव्रत रुठ गये।
– लेखक सुबह सवेरे के प्रबंध संपादक हैं