भोपाल (बिच्छू रोज़ाना)। बीते चुनाव की तरह ही इस बार भी अपने-अपने इलाकों में प्रभाव रखने वाले क्षेत्रीय राजनैतिक दल इस बार भी दोनों प्रमुख राजनैतिक दल भाजपा व कांग्रेस का चुनावी गणित बिगाड़ सकते हैं। हालांकि माना जा रहा है कि इन दलों को मिलने वाले मतों से भाजपा को कम कांग्रेस को अधिक नुकसान होगा। चुनावी साल होने की वजह से इस साल की शुरुआत से ही कांग्रेस इन क्षेत्रीय दलों से चुनाव पूर्व गठबंधन के पक्ष में खड़ी हुई नजर आ रही थी। लेकिन जैसे-जैसे चुनाव का समय पास आता गया वैसे-वैसे गठबंधन की संभावनाएं समाप्त होती चली गई और अब यह छोटे-छोटे दल पूरी तरह से अपनी-अपनी ताल ठोकने के लिए पूरी तरह से तैयार हो गए हैं। खास बात यह है कि इनमें से कई ने तो अपने कुछ प्रत्याशी तक घोषित कर दिए हैं। दरअसल बीते डेढ़ दशक से मप्र में राजनीति का वनवास भोग रही कांग्रेस इन क्षेत्री दलों के सहारे सत्ता में वापसी करना चाहती थी, लेकिन पार्टी के रणनीतिकारों की देरी और अपनी हठ के चलते यह गठबंधन परवान ही नहीं चढ़ सका है। गठबंधन की चर्चाओं के बीच यह तय माना जा रहा था कि अगर कांग्रेस को बसपा गोंगपा व जयस का साथ मिल जाता तो भाजपा की फिर से सरकार बनना काफी मुश्किल हो जाता। इस अच्छी संभावना के बाद भी कांग्रेस सपा, बसपा , जयस व गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ गठबंधन करने में नाकाम रही हैं। इन स्थानीय दलों ने बीते चुनाव में करीब 17 फीसदी मत हासिल किए थे। इन मतों को अगर कांग्रेस के मतों में शामिल कर दिया जाए तो बीते चुनाव में ही कांग्रेस की सरकार बन जाती। यही वजह है कि इन मतों का बिखराव रोकने के लिए ही गठबंधन की योजना तैयार की गई थी। लेकिन ऐसा नहीं होने से अब कांग्रेस को चुनाव में नुकसान उठाना पड़ सकता है। उधर इस गठबंधन की संभावनाएं समाप्त होने से भाजपा खेमे ने राहत की सांस ली है। तीसरे मोर्चा का इतिहास देखा जाए तो तस्वीर साफ हो जाएगी। असल में तीसरे मोर्चे के ये अलग अलग दल भले ही जीत हासिल करने में नाकाम हो जाएं लेकिन यह मुख्य राजनीतिक दलों के वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब हो जाते हैं। इस चुनाव में सवाल ये है कि तीसरा मोर्चा किसे नुकसान पहुंचाएगा। भाजपा का दावा है कि ये सारे दल कांग्रेस के ही वोट बैंक में सेंध लगाएंगे। वहीं, कांग्रेस नेताओं का कहा है कि इन दलों की मौजूदगी में उन्हें कोई नुकसान नहीं होने वाला है। कुल मिलाकर देखा जाए तो ये दल उन 25-30 सीट पर जिताऊ प्रत्याशियों के लिए सिरदर्द बनेंगे, जहां हार-जीत का अंतर 5 हजार के नीचे होगा।
मध्यप्रदेश – कुल मतदाता 5,03,94,086 (2018)
कुल सीट – 230
वर्ष 2013, मतदाता- 4,69,34,590
मत पड़े- 3,32,06,406 (70.8 फीसदी)
नोटा- 6,43,144 (1.9)
सामान्य- 148, एससी- 35, एसटी- 47 (सीटें मिलीं)
भाजपा- 165 सीटें (45.7 फीसदी वोट)
कांग्रेस- 58 सीटें (37.1 फीसदी वोट)
बसपा- 4 सीटें (6.4 फीसदी वोट)
सपा- 0 सीट (1.2 फीसदी वोट)
गोंगपा- 0 सीट (1.0 फीसदी वोट)
सामान्य-दलित विवाद का असर पड़ेगा
2018 में होने वाले चुनाव में एक बार फिर तीसरे मोर्चे के दल कई सीटों पर खेल बिगाड़ेंगे। इस बार सामान्य और पिछड़े वर्ग के संगठन सपाक्स, आदिवासियों का संगठन ’जयस‘ भी मैदान में हैं। बसपा, सपा और गोंडवाना भी वोटों का खेल बिगाडऩे को तैयार हैं। राजनीतिक पंडित भी अनुमान नहीं लगा पा रहे हैं कि इन दलों की मौजूदगी से ज्यादा नुकसान किस दल को होगा।