भोपाल (बिच्छू रोज़ाना)। यूपी का चुनाव हो तो राम मंदिर का मुद्दा प्रमुख रह सकता है, मगर जब बात मप्र की हो तो नर्मदा मैया को भुलाया नहीं जा सकता। यही वजह है कि नर्मदा पर सियासत तेज हो गई है। चुनावी इतिहास में ये पहला मौका है जब नर्मदा नदी मुख्य मुद्दे के रूप में सामने आई हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अब नर्मदा भक्त के रूप में प्रचारित होने लगे हैं। कांग्रेस के हाथ इस मुद्दे के जाते देख भाजपा भी फार्म में आ गई है। जबलपुर में नर्मदा की आरती के बाद राहुल के रोड शो के बाद भाजपा ने सवाल उठा दिए। प्रभात झा ने कहा कि राहुल ने वोट के लिए शाम की आरती दोपहर में ही कर दी। मध्यप्रदेश में नर्मदा नदी का धार्मिक के साथ-साथ राजनीतिक महत्व भी है। अब दोनों दल नर्मदा की भक्ति कर चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश में हैं।
इसलिए नर्मदा पर मेहरबान दल
नर्मदा नदी प्रदेश की जीवनदायिनी मानी जाती है। नर्मदा नदी से लगे हुए 51 विकासखंड हैं तो उसके किनारे पर 1151 गांव भी हैं। नर्मदा का मुद्दा सीधे तौर पर प्रदेश की 50 विधानसभा सीटों को प्रभावित करता है। यानी नर्मदा से जुड़े मुद्दे पर बहुत हद तक इन गांव के लोगों की वोटिंग पर प्रभाव डालते हैं।
भाजपा ने नर्मदा मंत्रालय तक बनाया
कंप्यूटर बाबा ने नर्मदा किनारे पौधरोपण में घोटाले को उजागर करने के लिए यात्रा निकालने का ऐलान किया था तो प्रदेश सरकार ने उनको राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया। हाल ही में कंप्यूटर बाबा ने ये पद छोड़ दिया है। बाबा ने गौ मंत्रालय की तर्ज पर अलग से नर्मदा मंत्रालय बनाने की मांग की।
शिवराज और दिग्विजय कर चुके हैं परिक्रमा
चुनाव से पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नर्मदा सेवा यात्रा निकाल कर इसके संरक्षण को कोर एजेंडा बना दिया। नर्मदा संरक्षण के लिए कई घोषणाएं भी की गईं तो रेत के उत्खनन के लिए नई पॉलिसी भी तय की गई। इसके जवाब में दिग्विजय सिंह ने पैदल नर्मदा परिक्रमा की और नर्मदा से जुड़े कई मुद्दों को उजागर भी किया।