मीडिया चर्चा-महेश दीक्षित
हृदयेश दीक्षित: हिन्दी पत्रकारिता में योगदान के लिए डी-लिट् उपाधि
प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और मीडिया हाउस प्रदेश टुडे के चेयरमैन हृदयेश दीक्षित को हाल ही में हिन्दी पत्रकारिता में विशेष योगदान के लिए विक्रमशिला हिन्दी विश्वविद्यालय ने मानद डी-लिट् की उपाधि से सम्मानित किया है। यह सम्मान उन्हें मौनी बाबा के उत्तराधिकारी संत डॉ सुमनभाई मानस भूषण के उज्जैन मेें आयोजित पट्टाभिषेक समारोह में प्रदान किया गया। हृदयेश ने वर्ष 1989 में इंदौर के साप्ताहिक अखबार स्पूतनिक से पत्रकारिता की शुरुआत की। इसके बाद हृदयेश ने 1993 में दैनिक भास्कर में बतौर सिटी रिपोर्टर ज्वाइन किया। इंदौर में दैनिक भास्कर के स्टार रिपोर्टर साबित हो जाने के साथ ही वे भास्कर समूह की आंख का तारा बन गए। इसके बाद भास्कर ने उन्हें भोपाल ज्वाइन करने का प्रस्ताव दिया, तो उन्होंने भोपाल भास्कर में बतौर विशेष संवाददाता ज्वाइन कर लिया। इस दौरान भोपाल में काम करते हुए हृदयेश ने राजनीति और प्रशासन में अपनी अलग पहचान बनाई। लेकिन हृदयेश ने पत्रकारिता में ठहराव करना तो सीखा ही नहीं था, सो इसके बाद उन्होंने इलेक्ट्रानिक मीडिया की ओर रूख किया। जी-न्यूज और सहारा में दिल्ली से भोपाल तक कई दायित्वों का बखूबी निर्वाहन किया। जी-न्यूज और सहारा न्यूज में मप्र-छत्तीसगढ़ हेड रहे। पर इतने भर से हृदयेश को संतोष कहां था? उनका सपना खुद का मीडिया हाउस स्थापित करने का था। सो प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया का पर्याप्त अनुभव लेने के बाद वर्ष 2010 में उन्होंने प्रदेश टुडे के नाम से भोपाल से सांध्य कालीन अखबार शुरू कर दिया। इसके जरिए हृदयेश ने मीडिया जगत में बिरला इतिहास रचा। मप्र की राजधानी से इससे पहले भी शाम के अखबार हुआ करते थे, लेकिन वे पाठकों में अपनी साख और धाक नहीं बना पाए। हृदयेश ने अपनी पत्रकारीय और व्यापारिक सूझ-बूझ से मप्र ही नहीं, देश का सबसे अधिक प्रसार संख्या वाला सांध्य दैनिक अखबार बना दिया। आज प्रदेश टुडे का भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर, उज्जैन, सागर, रीवा, कटनी, छिंदवाड़ा, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र एवं नई दिल्ली समेत 13 स्थानों से अलग-अलग प्रकाशन हो रहा है। इसके साथ ही जल्द ही प्रदेश टुडे का चैनल शुरू होने जा रहा है। प्रदेश टुडे का यह चैनल से दूसरे चैनलों से हटकर, कुछ अलग अंदाज में परदे पर उतरेगा। हृदयेश कहते हैं कि आगे बढऩा और सबको लेकर चलना चुनौती पूर्ण जरूर है, लेकिन यह बेहद सुखद है। वे कहते हैं कि जब तक हम पत्रकारिता में कुछ नया और दूसरों से अलग नहीं करेंगे, प्रतिस्पर्धा के इस दौर में अलग पहचान के साथ टिके रहना मुश्किल है। वे कहते हैं कि प्रिंट मीडिया में झंडे गाडऩे के बाद अब हमारा टास्क इलेक्ट्रानिक मीडिया है।
बृजेश राजपूत: टीवी पत्रकारिता पर शोध से मिली डाक्टरेट
देश के सबसे तेज न्यूज चैनल एबीपी न्यूज के मप्र ब्यूरो एवं वरिष्ठ पत्रकार बूजेश राजपूत अब डाक्टर हो गए हैं। बृजेश को हाल ही में हिंदी समाचार चैनलों में गैर समाचार आधारित कार्यक्रमों की लोकप्रियता की वजह-विषय पर पत्रकारिता शोध के लिए माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय ने पीएचडी की उपाधि प्रदान की है। बृजेश को यह पी-एचडी उपाधि देश के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने भोपाल में आयोजित विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में प्रदान की। बृजेश ने यह शोध डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय के पत्रकारिता के शिक्षक प्रो प्रदीप कृष्णात्रे के मार्गदर्शन में की है। बृजेश ने नरसिंहपुर जिले के करेली कस्बे के सरकारी स्कूल में पढ़ाने करने के बाद सागर के डॉ. हरिसिंह गौर विवि से बीएससी, एमए, पत्रकारिता स्नातक और स्नातकोतर की डिग्री हासिल की। प्रिंट मीडिया से बतौर ट्रेनी रिपोर्टर बृजेश ने पत्रकारिता की शुरूआत की। भोपाल और दिल्ली के अखबारों में उपसंपादक और रिपोर्टर रहे। इस दौरान पत्रकारिता की बारीकियों को जाना-समझा। बृजेश 25 सालों से पत्रकारिता में हैं। इसमें से उनका अधिकतर वक्त टीवी चैनल की रिपोर्टिंग करते हुए गुजारा। सहारा टीवी से होते हुए एबीपी न्यूज आए। तथा पंद्रह साल इसी एबीपी न्यूज चैनल भोपाल में विशेष संवाददाता हैं। इस दौरान रोजमर्रा की खबरों के अलावा मप्र, उप्र, उत्तराखंड, गुजरात और महाराष्ट्र में लोकसभा और विधानसभा चुनावों की रिपोर्टिंग कर इन प्रदेशों के चुनावी रंग देखे और जाना कि चुनावी रिपोर्टिंग नहीं आसान एक आग का दरिया-सा है जिसमें डूब के जाना है। एबीपी न्यूज चैनल पर बृजेश ने कई ऐसी अकादमिक स्पेशल स्टोरीज कीं, जिसने पत्रकारिता को नए तेवर और नए व्याकरण दिए। चुनावी रिपोर्टिंग में डूबने उतरने के दौरान मिले अनुभवों के आधार पर अखबारों में लिखे गए लेख, आंकड़ों और किस्सों के आधार पर चुनाव, राजनीति और रिपोर्टिंग- मप्र विधानसभा चुनाव 2013 किताब लिखी है। जिसमें देश के पहले आम चुनाव की कई रोचक कहानियां भी हैं। श्रेष्ठ पत्रकारिता के उन्हें कई इनाम-इकराम भी मिले। इनमें मुंबई प्रेस क्लब का रेड इंक अवार्ड, दिल्ली का मीडिया एक्सीलेंस अवार्ड, देहरादून का यूथ आइकन अवार्ड, मप्र राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, भोपाल का पत्रकारिता सम्मान और माधवराव सप्रे संग्रहालय का झाबरलाल शर्मा सम्मान प्रमुख हैं। बृजेश का कहना है कि पत्रकारिता एक ऐसा पेशा है, जिसमें हमें हर दिन कुछ नया करना होता है। नयी चुनौती का सामना करना पड़ता है और जो पत्रकार यह कर पाता है वही पत्रकारिता में सिकंदर कहलाता है।
प्रवीण श्रीवास्तव: पत्रकार का मां के लिए मिशन फॉर मदर
वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण श्रीवास्तव प्रदेश के ऐसे इकलौते पत्रकार हैं, जिन्होंने पत्रकारिता को मां की सेवा का जरिया बना लिया है। इसके लिए प्रवीण ने परिवार और समाज में उपेक्षित होकर वृद्धाश्रमों में रह रहे बुजुर्गों के लिए एक जिंदगी मां के नाम का नारा देते हुए मिशन फॉर मदर शुरू किया है। ग्राम जतारा (जिला टीकमगढ़, मप्र) में 20 अगस्त 1969 को जन्मे प्रवीण बचपन से ही परोपकारी स्वभाव के रहे हैं। शायद इसलिए कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद बजाय सरकारी नौकरी में जाने के प्रवीण ने पत्रकारिता को जीवन ध्येय बनाया। हालांकि पिता श्री दाताराम श्रीवास्तव (स्व.) और माता श्रीमती शीला देवी श्रीवास्तव की चाहना थी कि उनका बेटा सरकारी नौकरी में जाए। लेकिन प्रवीण के भीतर तो पत्रकारिता के जरिए समाजसेवा का जुनून जो सवार था, सो उन्होंने वर्ष 1988 में मात्र 18 साल की उम्र में टीकमगढ़ से प्रकाशित मासिक पत्रिका स्वास्थ्य जागरण में बतौर टे्रनी उपसंपादक पत्रकारिता शुरू कर दी। कुछ साल तक यहां पत्रकारिता करने के बाद प्रवीण को टीकमगढ़ का आकाश संकीर्ण लगने लगा। वे हौंसलों की उड़ान भरते हुए नए आकाश तलाशने 1996 में भोपाल आ गए। इस दौरान प्रवीण नेे राष्ट्रीय हिन्दी मेल, सांध्य दैनिक राज्यश्री और सांझ मध्यभारत में काम करते हुए कई ऐसी स्पेशल स्टोरीज की, जिनसे पत्रकारिता में उन्हें नई पहचान और नई उड़ान मिली। उनके रिपोर्टिंग के अंदाज को देखकर 1999 में दैनिक भास्कर, भोपाल ने उन्हें ऑफर किया और ब्यूरो छतरपुर बनाकर भेज दिया। प्रवीण भास्कर टीकमगढ़ और सागर ब्यूरो में भी रहे। इसके बाद प्रवीण ने राज एक्सप्रेस और दबंग दुनिया में राजनीतिक व प्रशासनिक संवाददाता भी रहे और पत्रकारिता को नई परिभाषा दी। लेकिन इन अखबारों में काम करते हुए कहीं न कहीं प्रवीण को लगने लगा कि जिस तरह से मार्केट के दबाव हैं, ऐसे में इन अखबारों की चाल और मिजाज के साथ पत्रकारिता करना संभव नहीं है, तो उन्होंने अखबारों की नौकरी छोडक़र सितंबर 2015 में खुद का साप्ताहिक समाचार पत्र सौम्य संवाद का प्रकाशन शुरू कर दिया। इसके साथ परिवार और समाज में उपेक्षित माता-पिता के प्रति सम्मान का भाव जगाने का मकसद लेकर मिशन फॉर मदर शंखनाद कर दिया। इस मिशन के तहत प्रवीण रन फॉर मदर-एक जिंदगी मॉ के नाम से अब तक भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, कटनी, दमोह, छतरपुर, झांसी और आगरा में दर्जनों कार्यक्रम आयोजित कर चुके हैं। इसके अलावा प्रवीण ने बुंदेलखंड की संस्कृति को आगे बढ़ाने की अनूठी मुहिम शुरू की है। इसके तहत उन्होंने बुंदेलखंड के लोगों के सहयोग से 2016 में भोपाल में बुंदेली भवन की स्थापना की। प्रवीण को श्रेष्ठ पत्रकारिता और समाज सेवा के कार्यों के लिए कई सम्मान-पुरस्कार हासिल हो चुके हैं। प्रवीण का कहना है कि मूल्यों की पत्रकारिता ही ध्येय निष्ठ पत्रकारिता है। इसके बिना हम समाज के पैराकार नहीं हो सकते।