भाजपा आलाकमान का लोकसभा सीटों पर फोकस

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अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। भले ही भाजपा ने बीते लोकसभा चुनाव में  प्रदेश की 30 मे से 29 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी , लेकिन इस बार नगर निगम चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन और राज्य सरकार को लेकर जारी एंटीइंकम्बेंंसी को देखते हुए भाजपा हाईकमान कोई रिस्क लेने को तैयार नही है। इसी वजह से भाजपा हाईकमान ने प्रदेश की सभी सीटों पर विशेष फोकस करना शुरु कर दिया है। पार्टी हाईकमान इस बार पूरी तीस लोकसभा सीटें जीतने की रणनीति पर अभी से सक्रिय हो गए हैं। दरअसल बीते चुनाव में भाजपा को प्रदेश की एक मात्र सीट छिंदवाड़ा में हार का सामना करना पड़ा था। यहां से लगातार कमलनाथ जीतते आ रहे हैं। उनके इस्तीफा देने के बाद हुए चुनाव में भी कमलनाथ के पुत्र नकुल नाथ को जीत मिली है। यह बात अलग है कि वे चुनाव बेहद कम मतों से जीत पाए हैंं। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियों में किसी भी तरह की कोई कमी न रह जाए , इसके लिए पार्टी हाईकमान द्वारा अभी से प्रदेश की लोकसभा सीटों का क्लस्टर बना दिया गया है। खास बात यह है कि इन क्लस्टर  की जिम्मेदारी भी दो -दो बड़े नेताओं को दे दी गई है। इसके तहत भोपाल, राजगढ़, देवास और उज्जैन चुनाव के लिए बनाए गए क्लस्टर का जिम्मा विनय सहस्त्रबुद्धे और रामशंकर कठेरिया को दिया गया है । जबलपुर, बालाघाट, मंडला और शहडोल का जिम्मा पंकजा मुंडे और विष्णुदेव साय को , जबकि  विदिशा, दमोह, टीकमगढ़ और सागर का जिम्मा मुरलीधर राव और प्रिया सेठी को और   ग्वालियर, भिंड, मुरैना और गुना का तरुण चुघ और गीता शाक्य को जिम्मा दिया गया है। इसी तरह से छिंदवाड़ा का जिम्मा केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और सुनीता दुग्गल को दिया गया है। इन दोनों नेताओं को सिर्फ छिंदवाड़ा का ही प्रभार दिया गया है।
बीते चुनाव के परिणामों को दोहराने की चुनौती
दरअसल बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा ने प्रदेश की 29 सीटों में से 28 पर ऐतिहासिक विजय हासिल की थी। तब भाजपा को 58 फीसदी और कांग्रेस को महज 34.50 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिला था। इस चुनाव में मोदी लहर थी , जिसकी वजह से कई अनाम और कम पकड़ रखने वाले भाजपा प्रत्याशी भी अच्छे  खासे मतों से जीतने में सफल रहे थे, लेकिन इस बार सूबे में भाजपा की सरकार के खिलाफ एंटीइंकम्बेंसी और कई ऐसे मुद्दे हैं जिसकी वजह से प्रदेश में कांग्रेस से कड़ी चुनौती मिलने की संभावना है। इसमें भी भाजपा को खासतौर पर उन आधा दर्जन सीटों की भी चिंता है , जिन पर बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा को एक लाख मतों के आसपास ही जीत मिल सकी थी। इनमें रतलाम , मंडला ग्वालियर , मुरैना और धार जैसी सीटें शामिल हैं।
इस तरह के रहे थे परिणाम
लोकसभा चुनावों में राज्य में सबसे अधिक मतों के अंतर से होशंगाबाद से भाजपा प्रत्याशी उदय प्रताप सिंह ने जीत हासिल की थी। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी शैलेंद्र सिंह को पांच लाख 53 हजार छह सौ 82 मतों से पराजित किया था।  राज्य में सबसे कम मतों के अंतर से जीतने वाले कांग्रेस के नकुल नाथ रहे थे। वे कांग्रेस के परंपरागत गढ़ छिंदवाड़ा में मात्र 37 हजार पांच सौ 36 मतों के अंतर से ही जीत सके थे। इस सीट पर 2014 में उनके पिता कमलनाथ एक लाख सोलह हजार से अधिक मतों से जीते थे। इसके अलावा मप्र में मोदी की आंधी के चलते कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, कांतिलाल भूरिया, अजय सिंह, मीनाक्षी नटराजन, अरुण यादव और विवेक तन्खा जैसे दिग्गजों को हार का सामना करना पड़ा था।

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