यस एमएलए: कभी किसी एक पार्टी पर भरोसा नहीं

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम।  भिंड जिले की मेहगांव विधानसभा सीट के वोटर्स को हर बार के चुनाव में कई उम्मीदवार देखने को मिलते हैं। यहां तक कि मेहगांव की जनता ने भी कभी किसी एक पार्टी पर अपना भरोसा नहीं दिखाया है। वहां के ग्रामीण हर बार विकास की खोज में बंटे हुए ही दिखाई देते हैं। फिलहाल सीट पर भाजपा का कब्जा है और ओपीएस भदौरिया यहां के विधायक हैं। मेहगांव विधानसभा के सियासी इतिहास की बात की जाए तो 1977 में यहां से जनता पार्टी के रामेश्वर दयाल विधानसभा पहुंचे। लेकिन 1980 में राय सिंह भदौरिया निर्दलीय चुनाव लड़े और जीते थे। 1985 में कांग्रेस के रूस्तम सिंह ने यहां से जीत का परचम लहराया। 1990 में कांग्रेस के हरी सिंह ने चुनाव जीता। 1993 में सीट पर बीएसपी के टिकट पर नरेश सिंह गुर्जर ने चुनाव जीता। 1998 में बीजेपी के राकेश शुक्ला यहां से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। 2003 में मेहगांव की जनता ने निर्दलीय मुन्ना सिंह को अपना विधायक चुना। 2008 में बीजेपी के राकेश शुक्ला ने दूसरी बार यहां से चुनाव जीता। 2013 में बीजेपी ने चौधरी मुकेश सिंह चतुर्वेदी को टिकट दिया, जिन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी ओपीएस भदौरिया को मात दी थी। इस चुनाव में बीजेपी को जहां 29733 वोट मिले। वहीं कांग्रेस को 28460 वोट मिले। इस तरह जीत का अंतर 1273 वोटों का रहा। 2018 में कांग्रेस के टिकट पर जीतने वाले भदौरिया 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल हो गए। उपचुनाव में कांग्रेस के हेमंत कटारे को हराकर भदौरिया विधानसभा पहुंचे और मंत्री भी बनाए गए।  भदौरिया ने इस सीट से पार्टी बदलकर चुनाव न जीतने का मिथक भी तोड़ा है। इस सीट पर एक बार फिर से भदौरिया को कांग्रेस के पूर्व विधायक हेंमत कटारे से चुनौती मिल सकती है, जबकि कांग्रेस के ही चौधरी राकेश चतुर्वेदी भी कांग्रेस से बड़े दावेदार माने जा रहे हैं।

सियासी मिजाज
मेहगांव सीट से जुड़ा एक मिथक था  , जो 2020 के उपचुनाव में टूट गया। 1967 में यहां से जनसंघ के टिकट पर राय सिंह भदौरिया ने चुनाव जीता था। 1972 में रायसिंह भदौरिया ने पाला बदलते हुए कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन, उनकी बुरी तरह से हार हुई। इसके बाद 1977 में भी जनता ने नकार दिया। 1980 में रायसिंह भदौरिया ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत मिली। जब 2020 का उपचुनाव हुआ तो इस वाकये का जिक्र हुआ लेकिन,  जनता ने ओपीएस भदौरिया को पाला बदलने के बाद भी चुनाव जिताया। बीजेपी अब तक इस सीट से 3 चुनाव जीत चुकी है और कांग्रेस भी 3 चुनाव जीत चुकी है। तीन बार निर्दलीयों ने चुनाव जीता। 2018 विधानसभा चुनाव में कुल 1,62,734 लोगों ने मतदान किया था, जो कुल वोटों का 63.9 प्रतिशत था। कांग्रेस के ओपीएस भदौरिया ने 37.9 प्रतिशत वोट हासिल कर बीजेपी के राकेश शुक्ला को 25814 वोटों से हराया था, जिन्हें 22.01 प्रतिशत वोट मिले थे। 2013 विधानसभा चुनाव में 1,41,068 लोगों ने मतदान कर 61.67 प्रतिशत वोट किये थे। यहां बीजेपी के मुकेश सिंह चतुर्वेदी ने 21.08 प्रतिशत वोट हासिल कर कांग्रेस के ओपीएस भदौरिया को हराया था, जिन्हें चुनाव में 20.17 प्रतिशत मिले थे। दोनों के बीच जीत का अंतर महज 1273 वोटों का ही था। 2008 विधानसभा चुनाव में 1,26,617 लोगों ने 60.12 प्रतिशत वोट किए थे। तब भाजपा के राकेश शुक्ला ने 26.56 प्रतिशत वोट हासिल जीत प्राप्त की थी। तो वहीं रासमद, कांग्रेस और बसपा नेताओं ने बीजेपी उम्मीदवार को कांटे की टक्कर दी थी।

विकास के अपने-अपने दावे
क्षेत्र में विकास को लेकर मंत्री ओपीएस भदौरिया बड़े-बड़े दावे करते हैं। वह कहते हैं कि रेत कारोबार को बदनाम ज्यादा किया जा रहा है। यहां सभी खदानें वैध हैं। यह तो क्षेत्र के 20 हजार लोगों की रोजी-रोटी का जरिया है। नई सरकार में मंत्री बनाए जाने के बाद क्षेत्र में एक हजार करोड़ रुपये के कार्य चल रहे हैं। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी हेमंत कटारे कहते हैं कि क्षेत्र में विकास के नाम पर सिर्फ रेत की लूट हुई है। माफिया ने राजस्व को जमकर नुकसान पहुंचाया है। मेहगांव- गोरमी और रौन में बस स्टैंड तक नहीं है। युवाओं को नौकरी के लिए गुजरात- दिल्ली का रुख करना पड़ रहा है। मेहगांव- दतिया मार्ग पर गाता गांव में नदी पर पिछले पांच साल से पुल निर्माणाधीन ही है। लोगों को धूल भरे डायवर्सन मार्ग से गुजरना पड़ता है। रात में यहां हादसे की आशंका रहती है। मेहगांव बड़ा कस्बा है और नेशनल हाईवे से गुजरने वाली बसें सडक़ किनारे सवारियों को चढ़ाती- उतारती हैं।

मूलभूत सुविधाओं का अभाव
भिंड जिले में आने वाली मेंहगाव विधानसभा का सियासी इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है। यहां की जनता किसी भी एक राजनीतिक दल पर भरोसा नहीं करती। आंकड़े भी बताते हैं कि मेहगांव में जनता पार्टी से लेकर बीजेपी, कांग्रेस, बीएसपी और निर्दलीयों ने विधायक की कुर्सी तो हासिल की है। लेकिन विकास के नाम पर कुछ खास काम नहीं कराया। यही वजह है कि यहां के लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। चुनावी साल है तो मेहगांव का वोटर एक बार फिर अपने विधायक से बीते पांच साल के कार्यकाल का हिसाब मांग रहा है। मुद्दों की बात की जाए तो मेहगांव आज भी रोजगार और स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहद पिछड़ा नजर आता है। मंत्री के विभाग से संबंधित नल जल योजना के तहत क्षेत्र में फिल्टर प्लांट अभी तक नहीं बन पाया। मेहगांव में लंबे समय से बस स्टैंड नहीं है। यात्री सडक़ पर खड़े होकर बसों का इंतजार करते हैं। मेहगांव में अस्पताल तो है , लेकिन यहां महिला एवं बाल रोग विशेषज्ञ नहीं है। क्षेत्र के लोगों को भिंड और ग्वालियर जाना पड़ता है।

जातीय समीकरण
मेहगांव विधानसभा क्षेत्र में जातिगत समीकरण सबसे अहम हैं। यहां क्षत्रिय और ब्राह्मण मतदाताओं के वोट बंट जाते हैं तो एससी और ओबीसी के मतदाता निर्णायक भूमिका में होते हैं। यही वजह है कि बसपा इस क्षेत्र में सक्रिय है। गुर्जर, बघेल, नरवरिया, राठौर, जैन और मुस्लिम मतदाता भी महत्वपूर्ण हैं। मेंहगांव की अनारक्षित विधानसभा सीट पर ब्राह्मण समाज के 52,000 वोटर हैं, इसके अलावा यहां तोमर और भदौरिया मिलकर 50,000 से कुछ अधिक मतदाता हैं। इस सीट पर  गुर्जर, कुश्वाह, व्यापारी और शेष वर्ग मिलकर यहां 30 से 35 हजार के लगभग मतदाता होते है, यह मतदता चुनाव में बंटकर अलग-अलग उम्मीदवारों को मतदान करते हैं।

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