बा खबर असरदार/दोस्त या दुश्मन

  • हरीश फतेहचंदानी
आईएएस अधिकारी

दोस्त या दुश्मन
2011 बैच के एक आईएएस अधिकारी इन दिनों काफी परेशान हैं। इनकी परेशानी की वजह यह है कि उनकी तमाम कोशिशों के बाद भी उन्हें कलेक्टरी का सुख नहीं मिल पा रहा है। दरअसल, साहब की काफी कोशिशों के बाद कलेक्टरों की सूची में उनका नाम शामिल हो गया था। लेकिन प्रदेश सरकार के एक मंत्री जो तथाकथित तौर पर साहब के दोस्त भी हैं, ने सूची से उनका नाम हटवा दिया। सूत्रों का कहना है कि मंत्री जी ने ऐसा इसलिए किया कि साहब के पास राजधानी में एक बड़ी जिम्मेदारी वाला पद है। कहा जा रहा है कि साहब पूरे विभाग को ढो रहे हैं। ऐसे में अगर साहब का तबादला कहीं ओर हो जाता है तो, विभाग में भर्राशाही और लापरवाही परवान चढ़ जाएगी। इसलिए मंत्री जी ने साहब को कुछ दिन और रोके रखने के लिए सूची से उनका नाम हटवा दिया। साहब की समझ में यह नहीं आ रहा है कि मंत्री जी उनके दोस्त हैं या दुश्मन।

साहब अंदर, बाकी सब बाहर
सरकार की आंख और कान माने जाने वाले 2011 बैच के एक प्रमोटी आईएएस इन दिनों निमाड़ क्षेत्र के एक जिले में कलेक्टर हैं। साहब जबसे जिले में पदस्थ हैं उनका अधिकारियों, कर्मचारियों से समन्वय बेहतर है। इसलिए अधिकारी-कर्मचारी साहब की ओर से बेफिक्र हैं। गत दिनों साहब अचानक पुराने कलेक्टोरेट परिसर स्थित कार्यालयों का औचक निरीक्षण करने पहुंचे तो उन्हें वहां कोई नहीं मिला। श्रम विभाग में आठ कर्मचारियों में से एक भी उपस्थित नहीं था । एमपीआरआरडीए में दरवाजे तक का ताला भी नहीं खुला था। एसडीएम कार्यालय के 18 व तहसील के नौ में से सिर्फ दो-दो कर्मचारी मौजूद मिले। यह स्थिति देखकर साहब भौचक्के रह गए। फिर क्या था साहब ने सबको तलब किया और जमकर फटकार लगाई। उन्होंने कहा कि मेरी पीठ पीछे मेरे विश्वास का इस तरह हनन किया जा रहा है, इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उसके बाद उन्होंने सभी को कारण बताओ नोटिस जारी करवा दिया।

पसीजा कलेक्टर का दिल
अक्सर माना जाता है कि ब्यूरोक्रेट्स कठोर दिल के होते हैं। जबकि हकीकत कुछ और है। इसका ताजा उदाहरण ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के अशोक नगर  जिले में तब दिखा जब एक होमगार्ड जवान के इलाज के लिए उनके परिजन मारे-मारे फिर रहे थे। इस बात की खबर जिले की अशोकनगर कलेक्टर उमा महेश्वरी को लगी। 2013 बैच की उक्त महिला आईएएस अधिकारी ने होमगार्ड जवान के इलाज के लिए अभियान चलाया। देखते ही देखते रेडक्रॉस सोसायटी जैसी कई संस्थाएं और लोग इलाज में सहायता के लिए आगे आए। इसका परिणाम यह हुआ कि दिल्ली में इलाज करा रहे होमगार्ड जवान के परिजनों पर आर्थिक बोझ कम हो गया। यही नहीं मैडम ने परिजनों को आश्वासन दिया है कि जब तक जवान पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो जाता उसके इलाज के लिए आर्थिक सहायता जुटाने में वे लगातार कोशिश करती रहेंगी।

मंत्रालय का गेट किधर है?
चुनावी साल में सरकार पार्टी के नेताओं को निगम मंडलों में अध्यक्ष-उपाध्यक्ष और अन्य पदों पर बैठा रही है। ऐसे ही एक नेताजी को पढ़ाई-लिखाई वाले एक निगम का अध्यक्ष बनाया गया है। यही नहीं उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दे दिया गया है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि मंत्री जी को न प्रोटोकॉल की समझ है और न ही प्रशासनिक व्यवस्था की। इस कारण कई बार मंत्री जी को फजीहत का भी सामना करना पड़ता है। ताजा मामला मंत्रालय में सामने आया है। बताया जाता है कि कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिलने के बाद माननीय पहली बार मंत्रालय गए तो उन्हें यह मालूम ही नहीं था कि मंत्रालय में प्रवेश कहां से किया जाता है। इस स्थिति में उन्होंने अपने एक मातहत को यह पता लगाने के लिए भेजा कि वे मंत्रालय में कहां से प्रवेश करेंगे। मंत्री जी का मातहत भी ऐसा निकला कि वे हर आने-जाने वालों से पूछने लगा- मंत्रालय का गेट किधर है?

मैडम का बंगला प्रेम
1992 बैच की एक महिला आईएएस अधिकारी का बंगला प्रेम चर्चा में बना हुआ है। दरअसल, 1992 बैच की ये मैडम वर्तमान में राजधानी में पदस्थ हैं और एक विभाग के प्रमुख सचिव की जिम्मेदारी संभाल रही हैं। लेकिन मैडम का दिल आज भी प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी में रमा हुआ है। शायद यही वजह है कि मैडम का 2 साल पहले भोपाल में तबादला होने के बाद भी उन्होंने अपना पूर्ववर्ती बंगला नहीं छोड़ा है। सूत्रों का कहना है कि एक निगम के प्रबंध संचालक रहते मैडम को बंगले के साथ जो सुविधाएं मिली थीं, वे आज भी बरकरार हैं। यानी मैडम आज भी निगम की सारी सुविधाएं जैसे वाहन, चपरासी, सुरक्षाकर्मी आदि का सुख भोग रही हैं। हैरानी की बात यह है कि मैडम बंगले का उपयोग तो भरपूर कर रही हैं, लेकिन उसका किराया भी जमा नहीं करा रही हैं। गौरतलब है कि मैडम अपने महंगे शौक और महंगी साडिय़ों को लेकर भी चर्चा में रह चुकी हैं।

Related Articles