मप्र की 40 नदियों का अस्तित्व खतरे में

  • प्रदेश की 18 नदियों का पानी आचमन करने लायक भी नहीं बचा
  • गौरव चौहान
 नदियों

मप्र की नदियों का दम घुट रहा है। इन नदियों में इतना कचरा बहाया जा रहा है कि उसे साफ करने में नदियां हांफ रही हैं। उनकी ऑक्सीजन कम हो रही है। इनका पानी नहाना तो दूर आचमन लायक भी नहीं बचा है। यह नदियां जैविक प्रदूषण से छटपटा रही हैं। इस कारण मप्र में कई नदियों का अस्तित्व समाप्त होने के कगार पर पहुंच गया है। जीवनदायिनी नर्मदा आज देश की बड़ी नदियों में प्रदूषण के मामले में छठवें नंबर पर पहुंच गई है। 18 नदियों का पानी आचमन करने लायक भी नहीं बचा है। यही नहीं 40 नदियां ऐसी हैं, जिनका अस्तित्व खतरे में बना हुआ है। ये स्थिति तब है, जब हमारे राज्य को नदियों का मायका कहा जाता है। सरकार और जनता अब भी न चेते तो वह दिन दूर नहीं होगा, जब यही आने वाली पीढ़ी को जवाब तक नहीं दे पाएंगे।  
नेशनल वाटर क्वालिटी मॉनिटरिंग प्रोग्राम के तहत नदियों के पानी की नियमित जांच की जाती है। पानी की परख बीओडी (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) के मानक के आधार पर की जाती है। पानी में अगर जैविक कचरा ज्यादा हो तो उसे नष्ट करने के लिए पानी में घुलित ऑक्सीजन की ज्यादा खपत होती है। यानी बीओडी जितना ज्यादा, प्रदूषण भी उतना ज्यादा। पीने के पानी में बीओडी अधिकतम दो या उससे कम होना चाहिए। नहाने के पानी में यह 3 से ज्यादा नहीं होना चाहिए। नदी में बीओडी बढऩे की सबसे बड़ी वजह सीवेज का प्रवाह है। मल-मूत्र के अलावा मानव शव, पशु शव, फूल-पत्तियों का प्रवाह नदी के संतुलन को बिगाड़ता है। इन्हें नष्ट करने में भारी मात्रा में ऑक्सीजन खर्च होती है। इससे नदी के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है। नदियों के किनारे बसे बड़े शहरों में ज्यादातर में या तो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं हैं, या फिर पूरी तरह पानी साफ नहीं कर रहे हैं। यह सीवेज नदियों में प्रवाहित किया जा रहा है।  
नालों से दूषित हो रही नदियां
नर्मदा में बढ़ते प्रदूषण ने जलीय जीवों के जीवन को खतरे में डाल दिया है। मंडला में छोटे-बड़े 18 नालों का गंदा पानी नदी को दूषित कर रहा है। जिले की बंजर, सुरपन, बुढऩेर नदी में भी प्रदूषण बढ़ रहा है। श्योपुर में चार नदियों का अस्तित्व खतरे में हैं। जिले के 3800 वर्ग किलोमीटर में विस्तार लिए जंगल सहित 6607 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला श्योपुर जिला पानी के लिए छह नदियों पर निर्भर है। अंधाधुंध दोहन और अवैध उत्खनन ने इन छह नदियों में से चार के अस्तित्व को लगभग समाप्त कर दिया है। इसी तरह पार्वती और चंबल अस्तित्व के लिए जूझ रही हैं।
इन नदियों में मौजूद जलीय जीवों का जीवन खतरे में है। सीप नदी को नगर पालिका ने गंदा कर दिया है। इसमें 18 गंदे नाले मिलते हैं। इंदौर में कान्ह और सरस्वती नदी प्रदूषित हैं। इनके शुद्धिकरण पर 15 वर्ष में 1157 करोड़ खर्च हो चुके हैं। अब 511 करोड़ और खर्च करने का प्लान है। यह राशि खर्च होने के बाद नदियां साफ होंगी या नहीं इस पर संशय है। नर्मदा नदी में मिलने वाली गंदगी को रोकने 2017 में 173 करोड़ रुपए की सीवरेज प्रोजेक्ट नेटवर्किंग योजना बनाई गई थी, लेकिन अब तक इसका काम नहीं हो सका है। यह प्लांट आदमगढ़ में प्रस्तावित है। नगरपालिका ने माचना नदी को प्रदूषित होने से बचाने अंडर ब्रिज के पास नाले में पाइप डालकर जालियां लगाई थीं, ताकि पानी के साथ आने गंदगी को नदी में जाने से रोका जा सके, लेकिन जालियां टूट गईं। अजनाल नदी हरदा की जीवन रेखा है। शुरू से ही इसमें आसपास के पांच कच्चे और पक्के नालों का गंदा पानी मिल रहा है, जिससे यह प्रदूषित हो रही है। आगे इसी नदी का पानी नर्मदा में भी मिलता है।
सहायक नदियां भी गिरा रहीं जहर
मप्र में प्रदूषण से नदियों का दम घुट रहा है। जीवनदायिनी नर्मदा के कुछ हिस्सों को छोड़ दें तो बाकी जगह पानी पीने लायक तक नहीं है। कई नदियों में प्रदूषण का स्तर इस हद तक बढ़ गया है कि उनका पानी छूने योग्य भी नहीं है। इससे जलीय विविधता खत्म हो रही है। जीव-जंतु दम तोड़ रहे हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि नदियों के संरक्षण पर करोड़ों रुपए खर्च होने के बाद भी हालात नहीं बदले हैं। जल गुणवत्ता की स्थिति बदतर हुई है। नर्मदा नदी में रोजाना करोड़ों लीटर गंदगी सीवेज के जरिए पानी में मिल रही है। नर्मदा के किनारे बसे सभी शहर इसमें प्रदूषण का जहर घोल रहे हैं। आलम यह है कि नर्मदा अपने उद्गम स्थल अमरकंटक से ही दूषित है। इसके बाद मंडला, डिंडौरी में भी सीधे सीवेज का पानी पहुंच रहा है। उसकी सहायक नदियां भी गंदगी उड़ेल रही हैं। इसके बाद का प्रवाह और भी चिंताजनक हालात पैदा कर रहा है। केंद्रीय और मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की गुणवत्ता जांच रिपोर्ट में 18 नदियों का पानी अत्यधिक प्रदूषित पाया गया है, जो छूने लायक भी नहीं है। इनमें चंबल, बेतवा, हिरन, जोहिला, मंदाकिनी, सोन, बिछिया, कलियासोत, कान्ह, माही, वर्धा, नेवज, पार्वती, तापी और कुंदा नदी शामिल हैं। इन नदियों के कई के प्रवाह क्षेत्र में बीओडी (बॉयोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड) उच्चतम स्तर पर पहुंच गया और जलीय जीवों का अस्तित्व खत्म हो गया है।
सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में नर्मदा भी
इधर, केंद्र के नमामि गंगे प्रोजेक्ट में गंगा कछार की नदियां शामिल हैं। मध्यप्रदेश के आधे हिस्से की नदियां या तो सीधे गंगा में मिलती हैं या उसकी सहायक नदियों से होकर गंदगी वहां पहुंच रही है। फिर भी केंद्र ने नमामि गंगे में यहां की नदियों के लिए कुछ नहीं दिया है। केंद्र ने सर्वाधिक प्रदूषित देश की 13 नदियों में नर्मदा को शामिल किया है। इस मामले में नर्मदा देश में छठवें नंबर पर है। 19 हजार करोड़ की डीपीआर में सबसे अधिक यमुना के 5200 वर्ग किलोमीटर के प्रदूषित क्षेत्र का उपचार किया जाएगा। नर्मदा के 800 वर्ग किलोमीटर हिस्से का उपचार किया जाना है। इसके तहत गाद निकालने से लेकर पौधरोपण और बायोडायवर्सिटी को सुरक्षित करने का प्रस्ताव है। इधर, धार जिले के खलघाट में 1.7 एमएलडी सीवेज रोजाना नर्मदा में मिल रहा है। इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार ने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के लिए करोड़ों रुपए का आवंटन किया है, लेकिन यह अभी निर्माण के चरण में ही हैं। अब राज्य सरकार ने नमामि गंगे प्रोजेक्ट की तर्ज पर नमामि देवी नर्मदे प्रोजेक्ट लॉन्च किया है। इसके तहत 1042 करोड़ की लागत से नर्मदा नदी के संरक्षण, प्रदूषण निवारण और परिक्रमा पथ के लिए कॉरिडोर के निर्माण का प्रस्ताव है। इसकी शुरुआत जबलपुर से किए जाने की घोषणा की गई है। पहले चरण में 200 करोड़ के प्रोजेक्ट की डीपीआर तैयार की जा रही है।

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