ईआरसीपी मप्र के लिए बन सकता है अभिशाप

  • ग्वालियर-चंबल अंचल की कई नदियों पर मंडरा सकता है खतरा

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। राजस्थान के 13 जिलों में पानी की समस्या को दूर करने के लिए शुरू की गई ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट (ईआरसीपी)ने मप्र की चिंताएं बढ़ा दी हैं। अगर इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में राजस्थान की सरकार की चली तो ईआरसीपी मप्र के लिए अभिशाप साबित हो सकता है। दरअसल, इस प्रोजेक्ट के तहत ग्वालियर-चंबल अंचल की कई नदियों का पानी राजस्थान अपने उपयोग में लेने लगेगा। इससे कूनो, पार्वती, चंबल जैसी नदियां सूखने की कगार पर आ जाएंगी।
गौरतलब है कि ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट पर केंद्र और राज्य सरकार पहले से आमने-सामने हैं। अब मप्र भी चिंतित हो उठा है। वजह यह है कि प्रोजेक्ट पर राजस्थान की मनमर्जी चली तो आने वाले कुछ सालों में मप्र-राजस्थान और मप्र-उप्र की सीमा पर चंबल नदी पूरी तरह सूखने के कगार पर पहुंच जाएगी। इतना ही नहीं चीता प्रोजेक्ट की लाइफ लाइन कूनो नदी के साथ-साथ क्यूल, कालीसिंध और पार्वती नदियों का अस्तित्व लगभग खत्म हो जाएगा। इससे न केवल ग्वालियर-चंबल में सूखे के हालात पैदा हो जाएंगे, बल्कि मप्र के किसानों और मुरैना व ग्वालियर शहर के लिए चंबल से जलापूर्ति की प्रस्तावित महत्वाकांक्षी परियोजना भी खतरे में पड़ जाएगी।
राजस्थान मनमानी कर रहा
ईआरसीपी को लेकर जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट का कहना है कि मप्र ईआरसीपी परियोजना के विरोध में बिल्कुल भी नहीं हैं, लेकिन अपने राज्य के किसानों के हक पर डाका डालने की छूट किसी को नहीं दे सकते हैं। राजस्थान को अंतरराज्यीय जल बंटवारे के नियमों के हिसाब से अपने इलाके में बांध और बैराज बनाने चाहिए। राजस्थान जिस तरह मनमाने ढंग से मप्र से निकलने वाली नदियों का पानी डायवर्ट कर रहा है, यह मप्र के हितों और हमारे किसानों का हक छीनने की साजिश है। इससे चंबल नदी के पूरी तरह सूख जाने का खतरा पैदा हो जाएगा। ग्वालियर चंबल में हमारी भविष्य में प्रस्तावित सिंचाई और जलापूर्ति योजनाएं खटाई में पड़ जाएंगी। यह नदी गुना से निकलती है। शिवपुरी की सीमा से राजस्थान के बांरा जिले में दाखिल होती है, इसके बाद वापस मप्र के श्योपुर में प्रवेश कर कूनो नेशनल पार्क के बीच से बहती हुई मुरैना जिले में करोली सीमा पर चंबल में मिल जाती है।
राजस्थान बना रहा कई बैराज
राजस्थान बांरा के हनोतिया गांव में इस पर 526.46 एमसीएम (50 प्रतिशत डिपेंडिबिलिटी) क्षमता का 20 मीटर ऊंचा बैराज बना रहा है। मप्र चाहता है कि बैराज सिर्फ 350.37 एमसीएम (75 प्रतिशत डिपेंडिबिलिटी) का बने। रामगढ़ में भी बैराज बन रहा है। क्यूल नदी गुना में शिवपुरी के पठार से निकलकर कूनो नदी के समानांतर बहती है, राजस्थान में दाखिल होने के बाद पार्वती नदी में मिलती है। राजस्थान बारां के रामगढ़ गांव में 209.30 एमसीएम स्टोरेज क्षमता (50 प्रतिशत डिपेंडिबिलिटी) वाला 26 मीटर ऊंचा बैराज बना रहा है। मप्र चाहता है कि यह 100.45 एमसीएम क्षमता (75 प्रतिशत डिपेंडिबिलिटी) का बने। महलपुर बैराज पार्वती पर बनाया जा रहा है। 471 किमी लंबी यह नदी मप्र के सीहोर से निकलती है। गुना से राजस्थान के बांरा में दाखिल होती है राजस्थान के बारा जिले के ही महलपुर गांव में 29 मीटर ऊंचा 3420 एमसीएम डायवर्जन क्षमता (50 प्रतिशत डपेंडिबिलिटी) का बैराज बना रहा है। मप्र चाहता है इसे 1039.1 एमसीएम क्षमता (75 प्रतिशत डिपेंडिबिलिटी) का बनाया जाए। नवनेरा बैराज कालीसिंध नदी पर बनाया जा रहा है। 278 किमी लंबी यह नदी देवास जिले में बागली से निकलती है, 150 किमी राजस्थान में बहती है। राजस्थान कोटा जिले में 3420 एमसीएम (50त्न डिपेंडिबिलिटी) पानी को डायवर्जन क्षमता का बैराज निर्माणाधीन हैं। नियमानुसार इसे 1039 एमसीएम (75त्न डिपेंडिबिलिटी) का ही बनाया जा सकता है। इस कारण चंबल में पानी की आवक लगभग खत्म हो जाएगी। दूनगढ़ी डैम और राठौर बैराज बनास नदी पर बनाया जा रहा है। 190 किमी लंबी नदी बनास राजसमंद जिले में अरावली पहाड़ों से निकलती है और सवाई माधौपुर में चंबल में समा जाती है। राजस्थान सवाई माधौपुर जिले में 289 एमसीएम (50 प्रतिशत डिपेंडिबिलिटी) का डैम बना रहा है।

Related Articles