भाजपाईयों के निशाने पर श्रीमंत समर्थक

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गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में श्रीमंत समर्थक नेताओं और मंत्रियों के दिन अच्छे नहीं चल रहे हैं। विधानसभा के शीतकालीन सत्र में कांग्रेस के तेवर सरकार पर कम, महाराज के समर्थक मंत्रियों पर ज्यादा तीखे नजर आए। वहीं सदन के बाहर भी श्रीमंत समर्थक मंत्री बीते कुछ दिनों से अपनों के निशाने पर हैं।
श्रीमंत और उनके समर्थकों  को कांग्रेस से तोड़कर भाजपा ने मप्र में सरकार तो बना ली, लेकिन अब भाजपा में इसके साइड इफेक्ट नजर आने लगे हैं। प्रदेश में कई जगह श्रीमंत समर्थकों व मूल भाजपाईयों में विवाद बढ़ने लगा है। विधानसभा चुनाव 2023 के पहले ये स्थिति भाजपा के लिए चिंताजनक है। ताजा मामला बुरहानपुर जिले की नेपानगर विधानसभा क्षेत्र में सामने आया है। नेपानगर विधायक सुमित्रा कास्डेकर के खिलाफ भाजपा के ही पूर्व मंडल अध्यक्ष प्रवीण काटकर ने मोर्चा खोल दिया है। इस कारण जाति प्रमाण पत्र को लेकर लंबे समय से आरोपों का सामना करती आ रहीं नेपानगर विधायक सुमित्रा कास्डेकर एक बार फिर जांच के दायरे में आ गई हैं।
डिप्टी कलेक्टर हेमलता सोलंकी ने भाजपा के ही पूर्व मंडल अध्यक्ष प्रवीण काटकर की शिकायत पर जांच शुरू कराई है। उन्होंने नेपानगर एसडीएम को शिकायत की जांच कर स्पष्ट अभिमत के साथ रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा है।  गौरतलब है की 2020 में जो कांग्रेसी श्रीमंत के समर्थन में भाजपा में शामिल हुए हैं, उन्हें मूल भाजपाई अभी तक अपना नहीं मान पाए हैं। इसकी वजह यह है कि बागी कांग्रेसियों के कारण मूल भाजपाईयों की राजनीति का रास्ता लगभग बंद हो गया है। इसलिए मूल भाजपाईयों ने श्रीमंत समर्थकों के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है।
कास्डेकर की शिकायत पर जांच शुरू
ज्ञात हो कि 22 दिसंबर को प्रवीण काटकर ने कलेक्टर के नाम एक शिकायत देकर कास्डेकर के अजजा जाति प्रमाण पत्र के फर्जी होने का आरोप लगाया था।  इसी प्रमाण पत्र के आधार पर उन्होंने पहले कांग्रेस के टिकट से और डेढ़ साल बाद भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ा था। दोनों बार सुमित्रा कास्डेकर विजयी हुई थीं। उल्लेखनीय है कि इससे पहले भी उनके जाति प्रमाण पत्र को लेकर एक परिवाद स्थानीय न्यायालय में लगाया गया था, जिस पर न्यायालय ने खकनार थाना पुलिस को प्रकरण दर्ज करने के आदेश दिए थे, लेकिन अब तक यह मामला पेंडिंग है। इससे पहले पूर्व विधायक मंजू दादू ने भी हाईकोर्ट जबलपुर में याचिका लगाई थी, जो तकनीकी कारणों से खारिज हो गई थी। प्रवीण काटकर ने शिकायत में यह भी आरोप लगाया है कि जाति प्रमाण पत्र बनाने के लिए एसडीएम कार्यालय नेपानगर ने वैधानिक प्रक्रिया नहीं अपनाई थी। शिकायत में बताया है कि जाति प्रमाण पत्र से संबंधित नस्ती, आदेश आदि की प्रमाणित प्रति सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई थी, जो एसडीएम कार्यालय ने उपलब्ध नहीं कराई, जिससे स्पष्ट है कि इससे जुड़ी फाइल को अधिकारी, कर्मचारियों ने गायब कर दिया है। जांच का आदेश जारी हुए करीब एक सप्ताह का समय बीत चुका है, लेकिन अब तक जांच रिपोर्ट जिला प्रशासन को नहीं मिली है। वहीं इस संबंध में विधायक सुमित्रा कास्डेकर ने कहा कि शिकायतें होती रहती हैं। इनका कोई आधार नहीं है। जांच चल रही है। जांच पूरी होने के बाद दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।
राजवर्धन भी अपनों के निशाने पर
प्रदेश सरकार के एक मंत्री का मामला हाल ही में उछला था। दोनों श्रीमंत  समर्थक हैं। मंत्री राजवर्धन सिंह दत्तीगांव पर आरोप लगाती एक महिला का वीडियो वायरल हुआ, हालांकि बाद में वह पलट गई। इधर, इमरती देवी डबरा पुलिस थाने में धरना देना पड़ा था। वह टीआई को हटाने की मांग पर अड़ गईं थी। एडीजी के सामने ही इमरती देवी ने कह दिया था कि डबरा टीआई लुटेरा है। उन्होंने यह भी कहा था कि इसके ऊपर बड़े मंत्री का हाथ है। वह अपनी ही सरकार की पुलिस की बखिया उधेड़ रही थीं, जबकि उन्हें खुद राज्य मंत्री का दर्जा मिला हुआ है। इससे पहले ऊर्जा मंत्री प्रद्मुमन सिंह तोमर भी अपनी ही सरकार में बेबस नजर आए। उन्होंने ग्वालियर की सड़कें खराब होने को लेकर जूते-चप्पल का त्याग कर दिया था। तोमर ने ऐलान किया कि जब तक सड़कें नहीं बनेंगी, वे नंगे पांव रहेंगे। लेकिन सरकार में उन पर कोई ध्यान नहीं दे रहा। विधानसभा में भी जब उन्हें कांग्रेस ने घेरा तो उनके सपोर्ट में एक भी मंत्री खड़ा नहीं हुआ। इतना ही नहीं, हाल ही में ग्वालियर के नामी-गिरामी जीवाजी क्लब पर पुलिस के छापे को राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारे में सियासी कार्रवाई के तौर पर देखा जा रहा है, जबकि क्लब के एक कमरे में जुआ खेल रहे कुछ व्यापारियों को पकड़ा गया था, जिन्हें थाने से जमानत दे दी गई। सवाल यह घूम रहा है कि पुलिस ने क्लब में घुसने की हिमाकत कैसे और किसके इशारे पर की? चुनाव से पहले श्रीमंत और उनके समर्थकों को कमजोर करके किसको फायदा होगा? इस पर भाजपा के एक नेता की टिप्पणी- राजनीति में साम-दाम-दंड-भेद सब जायज है। यहां कोई किसी का स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता। बस समय पर फेर है।

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