श्रीमंत समर्थकों के टिकटों पर कैंची चलाने की कवायद

श्रीमंत

अभी से कयासों का दौर हुआ शुरु, कई की बढ़ रहीं धडक़ने

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में भले ही विधानसभा के आम चुनाव में अभी 11 महीने बचे हुए हैं, लेकिन अभी से टिकटों को लेकर कयास लगाए जाने लगा है। माना जा रहा है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिराकर भाजपा को सत्ता में लाने वाले श्रीमंत के कई  समर्थक विधायकों के टिकट पर भाजपा आलाकमान कैंची चला सकता है।  फिलहाल जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं उससे माना जा रहा है कि कम से कम आधा दर्जन श्रीमंत समर्थक इस बार टिकट से वंचित कर दिए जाएंगे।  इनमें तीन मंत्री के नाम भी चर्चा में बने हुए हैं। यह वे मंत्री हैं जिनकी कार्यप्रणाली से सरकार से लेकर संगठन तक खुश नहीं है। यही नहीं इनकी कार्यप्रणाली से संघ भी नाराज बताया जाता है।  कहा तो यह भी जा रहा है कि दलबदल के समय उपचुनाव में टिकट देने व मंत्री बनाने का जो वाद किया गया था, उसे भाजपा पूरा कर चुकी है। इसके अलावा हारने वाले विधायकों को निगम मंडल की कमान देकर उन्हें मंत्री पद का दर्जा देने की शर्त पर भी अमल किया जा चुका है।  इस वजह से अब श्रीमंत और उनके समर्थक वादा खिलाफी का कोई आरोप भी नहीं लगा सकते हैं। बताया जाता है कि दलबदल के पहले तय की गई शर्त में सिर्फ एक बार टिकट देने की बात ही शामिल थी। इस बीच मिल रहे संकेतों की वजह से श्रीमंत समर्थक बहुत से नेताओं को अब अपने भविष्य की चिंता सताने लगी है। दरअसल जिन नेताओं के टिकटों पर कैंची चलने की संभावना जताई जा रही है वे अब तक पार्टी व सरकार द्वारा कराए गए सर्वे में भी खरे नहीं उतर सके हैं। यही नहीं अब उनकी इलाके में भी पकड़ कमजोर होना भी बताई जा रही है।
यह रहा था उपचुनाव का परिणाम
श्रीमंत समर्थक नेताओं द्वारा विधायकी से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल होने की वजह से प्रदेश में पहली बार एक साथ जब विधानसभा की 28 सीटों पर उपचुनाव हुए तो उनमें सर्वाधिक सीटें ग्वालियर-चंबल की ही थीं। इस अंचल की 16 सीटों पर हुए उपचुनाव भाजपा को 10 सीटों पर जीता मिली थी,  जबकि सरकार में भाजपा के होते हुए पूरी ताकत लगाने के बावजूद छह सीटों पर कांग्रेस से हार का सामना करना पड़ गया था। इनमें श्रीमंत समर्थक तत्कालीन मंत्री इमरती देवी, एंदल सिंह कंसाना और गिर्राज दंडोतिया को भी हार का समाना करना पड़ा था।
टिकट का पैमाना
अगर पार्टी सूत्रों की माने तो उसके द्वारा विधानसभा चुनाव के लिए पैमाना तय किया हुआ है, जिसके मुताबिक उन नेताओं को ही टिकट दिया जाएगा जिनकी न केवल छवि अच्छी होगी , बल्कि कामकाज भी अच्छा रहने की वजह से जीत की संभावना अधिक है। जिन नेताओं के साथ पार्टी कार्यकर्ताओं का सामंजस्य नहीं बैठ पा रहा है या जो स्वयं को पार्टी की रीति-नीति के हिसाब से नहीं ढाल पाए हैं, ऐसे नेताओं से पार्टी चुनाव के समय किनारा कर लेगी। यही वजह है कि भाजपा संगठन व सरकार चुनावी साल से ठीक पहले अलग-अलग स्तर पर तीन सर्वे करा चुकी है। माना जा रहा है कि चुनाव से पहले इसी तरह के सर्वे के दो दौर और हो सकते हैं।
श्रीमंत के इलाके में सर्वाधिक चुनौती
विधानसभा चुनाव के समय भाजपा को सर्वाधिक चुनौती का सामना श्रीमंत के इलाके ग्वालियर-चंबल अंचल में रहने वाली है। इसकी वजह है इसी अंचल से सर्वाधिक नेता कांग्रेस छोड़ भाजपा में आए थे। इन्ही नेताओं की वजह से ही भाजपा संगठन  को सर्वाधिक चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी के पुराने नेता और कार्यकर्ता बेहद नाराज हैं। उधर, श्रीमंत समर्थक भाजपा नेताओं और पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं के बीच अब तक समन्वय ही नहीं बना पा रहे हैं। इसका परिणाम ही है कि भाजपा को इस अंचल में निकाय चुनाव में महापौर के पदों पर हार का सामना करना पड़ा है। खास बात यह है कि भाजपा को ग्वालियर में 57 साल बाद और मुरैना में ढाई दशक बाद हार का सामना करना पड़ा है। खास बात यह है कि केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के लोकसभा क्षेत्र मुरैना के महापौर की कुर्सी भी भाजपा के हाथों से निकल गई। यही कारण है कि पार्टी को इस क्षेत्र के टिकट बंटवारे को लेकर अभी से चिंता सताने लगी है। यह बात अलग है कि तोमर लगातार सीट बदलकर चुनाव लड़ते रहे हैं। इसकी वजह तो तोमर ही बता सकते हैं , लेकिन निकाय चुनाव की हार से चिंता तो बढ़ ही गई है।
कांग्रेस भी दिखा रही एकजुटता
अब बदली हुई परिस्थितियों में पूरे क्षेत्र में कांग्रेस एकजुटता दिखा रही है। ऐसे में भाजपा के सामने प्रत्याशियों का चयन करना कठिन काम माना जा रहा है। यदि भाजपा ने दलबदल कर आए श्रीमंत समर्थकों पर ही दांव लगाया तो उसके कार्यकर्ता चुनाव में कितना साथ देंगे, यह समय ही बताएगा। अगर भाजपा प्रत्याशी बदलती है तो उसके सामने बागियों से निपटने की भी बड़ी चुनौती रहेगी। उधर, कांग्रेस ने भी श्रीमंत समर्थकों से बदला लेने के लिए उनके इलाकों को लिए विशेष रणनीति तैयार की है। इसके तहत प्रदेश कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं के दौरे श्रीमंत समर्थक विधायकों के इलाकों में कराए जाने की तैयारी है।  

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