सर्वे से तय होगा विधायकों का भविष्य

विधानसभा चुनाव

-सर्वे की खबर से भाजपा-कांग्रेस में खलबली
-खराब परफॉर्मेंस वाले विधायकों के कट सकते  हैं टिकट

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/ बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले उन विधायकों का टेंशन बढ़ गया  है, जिन्होंने चार साल तक अपने क्षेत्र पर ध्यान नहीं दिया है। दरअसल, भाजपा और कांग्रेस ने अपने-अपने विधायकों की परफॉर्मेंस का आकंलन करने के लिए सर्वे  शुरू कर दिया है। जिनका पार्टी सर्वे रिपोर्ट में परफॉर्मेंस खराब निकलेगा, उनका टिकट संकट में पड़ जाएगा। इसलिए दोनों पार्टियों में सर्वे की खबर से खलबली मची हुई है। गौरतलब है कि मप्र में अगले साल विधानसभा चुनाव होना हैं। विधानसभा चुनाव के एक साल पहले प्रदेश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों भाजपा और कांग्रेस ने टिकट को लेकर सर्वे का काम शुरू कर दिया है। इन सर्वे ने विधायकों के दिलों की धड़कनों को बढ़ा दिया है। भाजपा सर्वे के अलावा बूथस्तर तक रायशुमारी भी कराएगी तो कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि वे टिकट के लिए विशुद्ध रूप से सर्वे को ही आधार बनाएगी। तीन चरणों में होने वाले सर्वे के बाद टिकट किसे मिलेगा यह तय कर दिया जाएगा। गौरतलब है कि दोनों पार्टियों पूर्व में आंतरिक सर्वे करा चुकी हैं। कांग्रेस पार्टी के आंतरिक सर्वे में मौजूदा 27 विधायकों की स्थिति खराब बताई गई है। कांग्रेस के आंतरिक सर्वे के बाद अब कांग्रेस के कई मौजूदा विधायक सीट बदलने के मूड में आ गए हैं। सिर्फ कांग्रेस के अंदर ही विधायक सीट बदलने की तैयारी में नहीं हैं ,बल्कि भाजपा के अंदर भी आंतरिक सर्वे रिपोर्ट में कई विधायकों को डेंजर जोन में बताया गया है। हाल ही में हुए नगरीय निकाय चुनाव में आधा दर्जन मंत्री ऐसे निकल कर आए हैं, जिनके प्रभाव वाले जिले में भाजपा का प्रदर्शन खराब रहा है। पार्टी की सर्वे रिपोर्ट में भी कई विधायकों की स्थिति ठीक नहीं बताई गई है। यही वजह है कि भाजपा के अंदर भी कई विधायकों ने दूसरी सीट तलाशना शुरू कर दिया है।
तीन-तीन एजेंसियों से अलग -अलग सर्वे
सर्वे की परम्परा राजनीतिक दलों में नई नहीं है पर इस बार लड़ाई बेहद कांटे की है। लिहाजा राजनीतिक दल तीन-तीन एजेन्सियों से अलग -अलग सर्वे करा रहे हैं। इन सर्वे की रिपोर्ट के बाद ही टिकट के बारे में फैसला लिया जाएगा। 2018 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा के आंतरिक सर्वे में कई मंत्रियों के विधानसभा में चुनाव हारने की रिपोर्ट आई थी। कई मंत्रियों की सीट बदल दी गई थी। लेकिन अपनी परंपरागत सीट पर चुनाव लड़ने  वाले कई मंत्री विधायकी से हाथ धो बैठे थे। अब यही वजह है कि पार्टी सर्वे के आधार पर विधानसभा में अपनी स्थिति को बेहतर बनाने की कोशिश में विधायक हैं। जहां स्थिति नहीं सुधरेगी वहां विधायक दूसरी विधानसभा सीट पर अपनी दावेदारी ठोक सकते हैं। भाजपा और कांग्रेस के अंदर मौजूदा विधायकों के साथ और भी कई दावेदार सक्रिय हैं। इनमें तो कई नये चेहरे भी हैं। मतलब साफ है कि नए चेहरों की दावेदारी और पुराने चेहरों की स्थिति को लेकर भाजपा के अंदर भी अब विधायक दूसरी सीट की तलाश में जुटे हुए हैं। जैसे ही चुनाव नजदीक आएंगे वैसे ही, विधायक अपनी विधानसभा सीट पर अपनी स्थिति को भांपते हुए व पाला बदल दूसरी सीट पर किस्मत आजमाने की कोशिश कर सकते हैं।
भाजपा ला सकती है नया फार्मूला
टिकट वितरण के लिए भाजपा इस बार कोई नया फार्मूला सामने ला सकती है। गौरतलब है कि कैडरबेस भाजपा में टिकट को लेकर सबसे ज्यादा द्वंद्व होने के आसार है। चार बार सत्ता में रहने वाली पार्टी में पिछले दो दशकों में नेताओं की नई पीढ़ी तैयार हो गई है ,पर यह टिकट से वंचित है। पार्टी में कई ऐसे नेता है जो पिछले तीन-चार बार से लेकर छह बार तक के विधायक हैं और लगातार चुनाव जीत रहे हैं। इनके कारण क्षेत्र में नए नेताओं को मौका नहीं मिल पा रहा है। भाजपा में सर्वे के अलावा रायशुमारी को भी टिकट में महत्व दिया जाता है। यह रायशुमारी विधानसभा स्तर पर कार्यकर्ताओं से की जाती है और इसकी रिपोर्ट गुप्त रखी जाती है। इस रायशुमारी में कार्यकर्ता अपनी पसंद के नेता का नाम लिखकर देता है। इसके अलावा पांच साल के परफार्मेंस के आधार पर तैयार रिपोर्ट कार्ड और सर्वे को भी टिकट का आधार बनाया जाता है।
भाजपा के आधे विधायकों का टिकट संकट में
माना जा रहा है कि भाजपा इस बार अपने पचास फीसदी से अधिक वर्तमान विधायकों के टिकट काट देगी। यही वजह है कि विधायकों  को अभी से अपने टिकट की चिंता सता रही है। आने वाले दिनों में जैसे ही चुनावी माहौल रफ्तार पकड़ेगा , टिकट को लेकर हो रही कवायद भी नए रूप में सामने आएगी। टिकट को लेकर सबसे ज्याद संघर्ष ग्वालियर -चंबल अंचल में देखने को मिल सकता है।  जहां कांग्रेस छोड़कर श्रीमंत  समर्थक थोक में भाजपा में शामिल हुए हैं। यहां पुराने नेता इस बार भी टिकट के लिए अभी से खम ठोक रहे हैं तो सिंधिया के साथ भाजपा में आए नेता भी अपने लिए फिर से जमीन तैयार करने में लगे हैं। हालांकि भाजपा में फैसला बेहद गुपचुप और अनुशासन के दायरे में रहकर हो जाता है। विरोध के स्वर ज्यादातर मामलों में खुलकर सामने नहीं आते।
निकाय चुनाव में सर्वे से कांग्रेस को मिला बल
नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस ने सर्वे के आधार पर टिकट दिए थे।  मेयर चुनाव में जीत से कांग्रेस में ऊर्जा का संचार हुआ है।  हमेशा से क्षत्रपों की सिफारिश पर टिकट देने वाली कांग्रेस ने इस बार महापौर के चुनाव आला नेताओं की सिफारिश को दरकिनार करते हुए सर्वे के आधार पर टिकट दिए थे। उसका यह प्रयोग सफल भी रहा था। इसका जिक्र कमलनाथ बड़े नेताओं की बैठक में कर भी चुके हैं।  कुछ दिनों पूर्व पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की बैठक में उन्होंने मालवा क्षेत्र के एक बड़े नेता की तरफ इशारा करते हुए कहा था  कि विधानसभा चुनाव में जोबट में सर्वे को दरकिनार कर उनके कहने पर टिकट दिया गया पर परिणाम हमारे पक्ष में नहीं रहे। उनका कहना था कि रीवा में मेयर के लिए अजय मिश्रा बाबा को मैं ज्यादा नहीं जानता था पर सर्वे में उनका नाम आने पर टिकट दिया, उन्होंने जीत दर्ज की। कांग्रेस ने जबलपुर में भी सर्वे को आधार बनाकर मेयर का टिकट दिया था।  रतलाम में उसका प्रत्याशी जीत भले ही न पाया पर उसने अच्छे खासे वोट हासिल किए थे। यही वजह है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने पार्टी नेताओं की बैठक में साफ कर दिया है कि इस बार टिकट सिर्फ सर्वे, के आधार पर ही दिए जाएंगे। इसमें किसी नेता की सिफारिश नहीं मानी जाएगी। कांग्रेस से जुड़े सूत्र यह भी बताते हैं कि पार्टी इस बार करीब सौ टिकटों का ऐलान जनवरी में ही करने वाली है। पार्टी के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह इस संबंध में संकेत भी दे चुके हैं।

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