अगड़े पिछड़े की लड़ाई से विंध्य, बुंदेलखंड और चंबल में बिगड़ेंगे भाजपा के समीकरण

 भाजपा
  • कांग्रेस वेट एंड वॉच की स्थिति में
    भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम । प्रीतम लोधी के मामले ने भाजपा को ऐसा उलझा दिया है की उसे निकलने के लिए नए रास्ते की तलाश करनी पड़ रही है। इसकी वजह है अब यह विवाद पूरी तरह से अगड़े व पिछड़े की लड़ाई के रुप में तब्दील होती दिख रही है। इसकी वजह से भाजपा के महाकौशल, बुंदेलखंड और चंबल में भाजपा के समीकरण बिगड़ना तय माने जा रहे हैं। उधर, इस मामले में अभी भी कांग्रेस वेट एंड वॉच की स्थिति में बनी हुई है। इस बीच बुंदलेखंड अंचल के सागर में संभागीय मुख्यालय पर लोधी द्वारा पिछड़ा वर्ग का समागम बुलाया गया है, जिस पर सरकार पैनी नजर रखने पर मजबूर हो गई है। इसकी वजह है की अगर इस समागम में हिंसा या लाठी चार्ज जैसी कोई अप्रिय स्थिति बनती है तो उसका पूरा ठीकरा भी सरकार पर ही फूटना  है।
    दरअसल ब्राह्मणों और कथावाचकों पर टिप्पणी करने के मामले में भाजपा द्वारा निष्कासित किए जाने के बाद से प्रीतम लोधी ओबीसी और अनुसूचित जाति का जगह-जगह जमावड़ा कर रहे हैं। इसी कड़ी में अब वे सागर के कैंट थाना के कजली वन मैदान में आयोजन करने जा रहे हैं। इसका चयन उनके द्वारा एक बलात्कार पीड़िता की वजह से सहानुभूति पाने के लिए किया गया है। सागर जिले के बंडा के खेजड़ा भेड़ा गांव में लोधी समुदाय की एक 13 साल की लड़की के साथ ब्राह्मण समुदाय के 56 वर्ष के बुजुर्ग पर अगवा कर दुष्कर्म की घटना को अंजाम देने का आरोप लगा था। इसके बाद पुलिस ने आरोपी को तत्काल गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था, लेकिन बंडा की बेटी को न्याय दिलाने के नाम पर जगह जगह ओबीसी और एससी समुदाय के लोगों का जमावड़ा किया जा रहा है। यह बात अलग है कि अब तक प्रशासन ने इस आयोजन के लिए कोई अनुमति नही दी है। इसके बाद भी लोधी इस आयोजन के लिए अड़े हुए हैं।
    यह है तीनों अंचलों का गणित
    लोधी बाहुल्य इलाकों में प्रदेश के चंबल, बुंदेलखंड और महाकौशल अंचल आते हैं। यही वजह है की इन अंचलों में लोधी समाज का अच्छा खासा प्रभाव होना। अगर पिछड़ा वर्ग के हिसाब से देखें तो इसमें विंध्य अंचल भी जुड़ जाता है। इस एपीसोड के पहले तक भाजपा का पूरा फोकस चंबल और विंध्य और उसके बाद महाकौशल पर था। 2018 के चुनाव में बीजेपी को विंध्य की 30 में से 24, बुंदेलखंड की 26 सीटों में से 18 पर जबकि चंबल की 34 में से महज 7 सीटों पर ही जीत मिल सकी थी। यह बात अलग है की भाजपा की कुछ अंचलों में पकड़ कमजोर हुई है। इसका उदाहरण महापौर के चुनाव हैं। चंबल अंचल के दोनों नगर निगमों में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है, इस मामले में अब  एक तरफ  कुआं व दूसरी तरफ  खाई की स्थिति है। लोधी व ब्राह्मण वर्ग भाजपा का पंपरापगत वोट बैंक रहा है। इन दोनों ही वर्ग की भाजपा की मप्र में सरकार बनवाने में बेहद अहम भूमिका होती है। भाजपा ही ऐसी पार्टी ने जिसने दो प्रदेश में लोधी समुदाय से आने वाले नेताओं को मुख्यमंत्री पद तक पहुंचाया है। इसकी वजह से लोधी भाजपा का कई दशकों से बेहद मजबूत वोटबैंक बना हुआ है। यही वजह है की इस मामले में भाजपा के नेताओं ने पूरी तरह से चुप्पी साध रखी है। भाजपा संगठन व सरकार दोनों ही इस मामले में बेहद साधे कदम रखना चाहते हैं। माना जा रहा है की अब इस मामले को शांत कराने के लिए भाजपा संगठन अपने दो बड़े लोधी नेता पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के साथ ही केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल को जिम्मा सौंप सकती है।
    कांग्रेस भी असमंजस में
    अगड़े व पिछड़े की लड़ाई का रुप लेता जा रहा प्रीतम लोधी व भाजपा के विवाद में अब भी कांग्रेस पूरी तरह से वेट एंड वॉच की नीति अपनाए हुए है। दरअसल उसे पता है की एक पक्ष का साथ दिया तो दूसरा पक्ष नाराज हो जाएगा, लिहाजा पार्टी ने इस मामले में अब तक दूरी ही बनाए रखने की नीति बनाई हुई है। यह स्थिति तब बनी हुई है जब प्रदेश में बीते एक साल से कांग्रेस व भाजपा के बीच सबसे बड़े पिछड़ा वर्ग के हितैषी होने का श्रेय लेने की होड़ मची हुई है। हालांकि इस वर्ग के वोटर्स को अपने पाले में लाने की कोशिशों में लगी कांग्रेस के लिए ये अच्छा मौका साबित हो सकता है। चंबल में ब्राह्मणों की नाराजगी पहले से ही भारी थी। अब ओबीसी और एससी एसटी वोटर्स भी नाराजगी दिखा रहे हैं।
    भाजपा कर रही डैमेज कंट्रोल
    दूसरी तरफ सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी डैमेज कंट्रोल में जुट गई है। भाजपा सरकार में ओबीसी समुदाय की अगुवाई करने वाले नगरीय प्रशासन एवं आवास मंत्री भूपेंद्र सिंह का कहना है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने जितना ओबीसी वर्ग के लिए किया है, उतना किसी ने नहीं किया है। इसी का नतीजा है कि नगरीय निकाय चुनाव में भारी संख्या में ओबीसी के प्रतिनिधि चुनाव जीत कर आए हैं। हमने ओबीसी वर्ग के लिए 24 फीसदी आरक्षण दिलवाने का रास्ता कोर्ट के माध्यम से साफ किया है। जबकि कांग्रेस इसका विरोध कर रही थी। उन्होंने प्रीतम लोधी या किसी समुदाय को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की है। दूसरी तरफ तमाम सामाजिक संगठन बंडा में हुई घटना को लेकर चल रही सियासत का विरोध कर रहे हैं और बंडा घटना के नाम पर शक्ति प्रदर्शन कर रहे लोगों पर सामाजिक वैमनस्यता  फैलाने का आरोप लगा रहे है।
    संत समाज हुआ आमने -सामने
    प्रीतम लोधी द्वारा ब्राह्मणों और कथावाचकों पर टिप्पणी को लेकर अब संत समाज में भी विवाद खड़ा होने लगा है।  प्रीतम लोधी के बयान के बाद बागेश्वर धम के पं धीरेन्द्र  शास्त्री द्वारा जिस तरह से कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की गई थी, उसको लेकर पहले तो लोधी ही आलोचना कर रहे थे , लेकिन अब इस मामले में एक और प्रवचनकर्ता साधना भारती भी शास्त्री के खिलाफ न केवल खड़ी हो गई हैं , बल्कि वे तो बागेश्वर धाम के गुरु एंव जगतगुरु संत शिरोमणी रामभद्राचार्य के खिलाफ भी मोर्चा खोल रही हैं। दरअसल साधना भारती प्रीतम की सजातीय तो हैं ही साथ ही वे कांग्रेस की नेता भी है। वे पिछली बार विधानसभा चुनाव भी कांग्रेंस के टिकट पर लड़ कर हार चुकी हैं। उधर इस मामले में साधना ने बड़ा हमला करते हुए संत रामभद्राचार्य की तुलना रावण, कंस और अभिमानी हाथी तक से कर डाली है। दरअसल संत शिरोमणी ने बागेश्वार धाम के संत का पक्ष लेते हुए साधना को अज्ञानी कह दिया था।
    सूबे में आबादी का 52 प्रतिशत है पिछड़ा वर्ग
    दरअसल मप्र ऐसा राज्य है, जिसमें रहने वाली आबादी का 52 प्रतिशत पिछड़ वर्ग से आता है। इस वर्ग का साथ जिसे मिल जाता है, उसकी सरकार प्रदेश में बननी तय हो जाती है। इसी तरह से अगर लोधी व ब्राह्मण वोटों की बात की जाए तो प्रदेश में 40 लाख के करीब ब्राह्मण वोटर हैं।  ये कुल वोट बैंक का 10 प्रतिशत होते हैं। इनका प्रभाव विंध्य, महाकौशल, चंबल और मध्य क्षेत्र की 60 से अधिक सीटों पर है। इसी तरह से लोधी वोटर्स की संख्या भी करीब 9 प्रतिशत है। यह बुंदेलखंड की अधिकांश सीटों पर जीत हार को तय करने  की क्षमता रखते हैं। ओबीसी वोटर्स को देखा जाए तो प्रदेश के 20 जिलों में 50 प्रतिशत से अधिक ओबीसी वोटर हैं। इसमें से आधे जिले तो ऐसे हैं, जहां संख्या 70-80 प्रतिशत तक है। इसके अलावा प्रदेश में अनुसूचित जाति वर्ग के वोटर्स 16 फीसदी हैं।

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