बा खबर असरदार/मंत्रीजी की पीड़ा

  • हरीश फतेह चंदानी
मंत्रीजी

मंत्रीजी की पीड़ा
प्रदेश सरकार में सबसे उम्रदराज मंत्रियों में से एक मंत्री जी आजकल अपने जिले में ही उपेक्षित हैं। यह खुद मंत्रीजी का मानना है। सूत्रों का कहना है कि मंत्री जी हर किसी से कहते फिर रहे हैं कि उनके जिले के अधिकारी ही उनको भाव नहीं दे रहे हैं। आलम यह है कि वरिष्ठ अधिकारी तो पहले से ही भाव नहीं दे रहे थे,अब कनिष्ठ अधिकारी भी उनकी नहीं सुन रहे हैं। मंत्रीजी ने इसके लिए कलेक्टर से लेकर उच्च अधिकारियों तक शिकायत की। जब उनकी शिकायतों को महत्व नहीं दिया गया तो उन्होंने जिले की प्रभारी मंत्री को पत्र लिख डाला। इस पत्र में मंत्रीजी ने सचिवों का स्थानांतरण करने के लिए लिखा है। पत्र में उल्लेख है कि मंत्री जी जब अपने गृह जिले के प्रवास पर आए थे तो स्थानीय जनप्रतिनिधियों से उन्हें पंचायत सचिवों की कई तरह की शिकायतें मिली थी। पंचायत सचिव विपक्षी दल के साथ सांठ-गांठ कर सत्ता पक्ष के प्रत्याशियों के खिलाफ कार्य कर रहे थे। मंत्री जी ने पत्र में 9 सचिवों का नाम भी उल्लेखित किया है। उधर, सूत्रों का कहना है कि बात कुछ और है। दरअसल, मंत्रीजी के पास जिन अफसरों के यहां से नजराना नहीं पहुंचा है, वे उनको सबक सिखाना चाहते हैं।

जांच की जद में आठ आईपीएस
प्रदेश में सुशासन और भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति को दर्शाने के लिए सरकार भ्रष्ट अफसरों पर नकेल कसने की तैयारी कर रहे हैं।  मंत्रालयीन सूत्रों के अनुसार सरकार ने इसके लिए कई सूचियां बनाई हैं, जिनमें एक सूची आईपीएस अफसरों की है, जिनमें 8 अफसर शामिल हैं। ये उन आईपीएस अफसरों की सूची है, जिनके खिलाफ आरोप पत्र जारी किए गए हैं। इनमें से रिटायर हो चुके अफसरों को आधी पेंशन ही दी जा रही है। इन अफसरों में 1985 बैच, 1989 बैच, 1996 बैच, 2003 बैच के अधिकारी हैं। कोई खरीदी, कोई सीबीडीटी जांच, कोई अव्यवहारिक लेन-देन के मामले में दोषी पाया गया है। हैरानी की बात यह है कि सरकार वर्षों से चल रहे इन मामलों में अभी तक कोई निर्णय नहीं ले पाई है। बताया जाता है कि सत्ता के करीबी अफसरों और राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण इन अफसरों का मामला अधर में लटका हुआ है।

कहानी के प्लॉट की खोज
2009 बैच के एक आईएएस अधिकारी तरुण पिथोड़े अपनी प्रशासनिक क्षमता के साथ ही विभिन्न विषयों पर लिखी गई अपनी किताबों के लिए चर्चा में रहते हैं। उनकी कई किताबें खासी चर्चा में रही हैं और उस पर विचार-विमर्श करने के लिए कार्यक्रम भी आयोजित किए गए हैं। इस बार साहब की मंशा ऐसी किताब लिखने की है, जो भारत ही नहीं बल्कि विदेश में भी चर्चा का विषय बने। बताया जाता है कि नई किताब के मजमून की खोज करने के लिए साहब ने सरकार से अनुमति लेकर रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के केंद्र बिंदु कीव का दौरा किया है। बताया जाता है कि अगली किताब इस युद्ध पर आधारित हो सकती है। हालांकि साहब के इस दौरे को लेकर प्रदेश की प्रशासनिक वीथिका में तरह-तरह के गप्पे लड़ाए जा रहे हैं। कोई कह रहा है कि जहां युद्ध हो रहा है, साहब वहां थोड़ी गए होंगे। वे माहौल बनाने के लिए वहां गए थे ,ताकि लोगों को लगे कि किताब में जमीनी हकीकत बयां है, जबकि किताब तो टीवी और अखबारों में छपी खबरों और कहानियों को आधार बनाकर लिखी जाएगी। जितने लोग, उतनी बातें सुनने को मिल रही हैं। लोग बातें कुछ भी करें, लेकिन यह तो तय है कि साहब किताब लिखने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।

साहब को मिलेगा इनाम
2011 बैच के एक प्रमोटी आईएएस इन दिनों सरकार की आंख का नूर बने हुए हैं। आलम यह है कि प्रमोटी होने के बावजूद साहब सत्ता और संगठन के मुखिया के चहेते अफसर बन गए हैं। दरअसल, साहब ने कुछ ऐसा ही जादू कर दिखाया है। बता दें कि साहब वर्तमान में विंध्य क्षेत्र के एक जिले के कलेक्टर हैं। पंचायत चुनाव में साहब ने अपनी सरकार के लिए जमकर वफादारी निभाई। उनकी वफादारी के चर्चे राजनीतिक और प्रशासनिक वीथिका में खूब हो रहे हैं। आलम यह है कि जहां कांग्रेस उन्हे कोस रही है, वहीं सत्तापक्ष के वे चहेते बन गए हैं। दरअसल, साहब ने जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में अपनी बाजीगरी से सत्तापक्ष का अध्यक्ष बनवा दिया था। हुआ यह था कि सत्तापक्ष और विपक्ष के उम्मीदवार को एक बराबर वोट मिले थे। उसके बाद हार-जीत के फैसले के लिए लॉटरी निकाली गई और हारी प्रत्याशी की मानें तो साहब ने उनकी पर्ची निकलने के बाद भी दूसरे प्रत्याशी की पर्ची को हवा में लहराकर उन्हें विजयी घोषित कर दिया। अब सूत्रों का कहना है कि साहब की इस बाजीगरी का ईनाम देने के लिए पूरी तैयारी कर ली गई है।

आंकड़ेबाजी में फंसा पेंच
यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी कि अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे।  इन दिनों यह कहावत प्रदेश के सांख्यिकी विभाग पर सटीक बैठ रही है।  दरअसल, आंकड़ों की बाजीगरी करने वाला यह विभाग इस समय एक ऐसे पेंच में फंस गया है, जिससे उसकी साख खतरे में पड़ गई है। दरअसल, एडवोकेट जनरल ने सांख्यिकी विभाग से प्रदेश में जन्म और मृत्यु का आंकड़ा मांग लिया है। एजी की मांग के बाद से ही विभाग के अधिकारी असमंजस में फंसे हुए हैं। क्योंकि उनके पास प्रदेश में हुए जन्म और मृत्यु का पूरा आंकड़ा नहीं है। सूत्रों का कहना है कि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि जन्म का आंकड़ा तो हम अस्पतालों से जुटा लेंगे, लेकिन मृत्यु का आंकड़ा कैसे मिल पाएगा। विभाग की परेशानी यह है कि कोरोना संक्रमणकाल में लोगों की हुई मृत्यु का पूरा हिसाब-किताब किसी के पास नहीं है। ऐसे में विभाग पसोपेश में है कि पूरा आंकड़ा कहां से लाया जाए। उधर, सूत्रों का कहना है कि एजी ने कोरोनाकाल में भी मौतों का पूरा आंकलन करा लिया है। यह बात सांख्यिकी विभाग के अधिकारियों की भी जानकारी में आ गई है। अधिकारियों को डर सता रहा है कि अगर उन्होंने अनुमानित आंकड़ा पेश किया तो एजी से फटकार मिल सकती है।

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