आयुष कॉलेज प्रवेश घोटाला : डॉक्टर शुक्ला के निलंबन के बाद शेष आरोपियों के खिलाफ नहीं हुई कार्रवाई

आयुष कॉलेज
  • डॉ जेके गुप्ता को आरोप पत्र, शेष केवल कारण बताओ नोटिस

भोपाल/गणेश पाण्डेय/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में बहुचर्चित आयुष कॉलेज प्रवेश घोटाले की जांच में 5 साल लग गए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के निर्देश पर हुई कार्यवाही फिर बंद हो गई है। आयुष विभाग ने मोहरे के रूप में डॉक्टर शोभना शुक्ला को निलंबित कर दिया पर उनके सहयोगी रहे समिति के सदस्यों में डॉ जेके गुप्ता, डॉक्टर बंदना बोराना और डॉ सैयद अब्दुल नईम तत्कालीन ओएसडी संचालनालय डॉ सैयद अब्दुल नईम पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई । कार्यवाही के नाम पर कारण बताओ नोटिस जारी किए गए। सूत्रों ने बताया कि आरोपियों में शामिल शिवराज कैबिनेट के रसूखदार मंत्री के रिश्तेदार को बचाने के लिए कार्रवाई को बंद कर दिया गया है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार घोटाले में कार्रवाई की शुरुआत डॉक्टर शोभना शुक्ला के निलंबन से हुई। आयुष महाविद्यालय शैक्षणिक सत्र वर्ष 2016-17 और शैक्षणिक सत्र 2017-18 में सेंट्रलाइज काउंसलिंग के लिए गठित समिति में डॉक्टर शोभना शुक्ला के अलावा डॉ वंदना बोराना दोनों ही सत्रों में समिति के सदस्य रहीं हैं। वहीं डॉक्टर जेके गुप्ता शैक्षणिक सत्र 2016-17 में समिति के सदस्य और डॉ सैयद अब्दुल नईम तत्कालीन ओएसडी संचालनालय सत्र 2017-18 में सेंट्रलाइज काउंसलिंग समिति में शामिल थे। आयुष विभाग में हुए प्रवेश घोटाले में केवल डॉ शोभना शुक्ला को निलंबित किया गया। दूसरे समिति के सदस्य डॉ जेके गुप्ता को आरोप पत्र थमा दिया। जबकि डॉ वंदना बोराना, डॉक्टर सैयद अब्दुल नईम डॉक्टर अंतिम नलवाया और डॉक्टर नीतू कुशवाहा को अभी तक कारण बताओ नोटिस ही जारी नहीं किया गया। सूत्र बताते हैं कि चारों को बचाने की कवायद चल रही है।
क्या है पूरा मामला
इस पूरे मामले की जांच कमेटी ने पड़ताल की तो पता चला कि आयुष संचालनालय, मेडिकल यूनिवर्सिटी के अधिकारियों की सांठगांठ से इस घोटाले  को अंजाम दिया गया है। वर्ष 2016 से 2018 तक आयुष कॉलेजों में हुए एडमिशन संबंधी जब जानकारी जुटाई गई तो 1292 अपात्र छात्रों को एडमिशन देने का मामला सामने आया।
इसमें 2016 और 2017 में जो निजी आयुष कॉलेज एमपी ऑनलाइन की काउंसिलिंग में शामिल नहीं हुए थे। उन्होंने अवैध तरीके से 1120 छात्रों को प्रवेश दे दिया। वर्ष 2018-19 से नीट परीक्षा अनिवार्य होने के बावजूद निजी आयुष कॉलेजों ने गलत तरीके से छात्रों को आयुर्वेद, होम्योपैथी और यूनानी के निजी कॉलेजों में सीधे प्रवेश दे दिया। तत्कालीन आयुक्त एवं मेडिकल यूनिवर्सिटी संदेह के दायरे में प्रवेश घोटाले में तत्कालीन आयुक्त शिखा दुबे  एमपी अग्रवाल की भूमिका भी संदेह के दायरे में है। इस घोटाले के लिए बनी जांच समिति शामिल सदस्यों की हैसियत इतनी बड़ी नहीं थी कि वह आयुष आयुक्त की भूमिका की जांच कर सके।  जांच समिति की जांच  केवल कक्ष प्रभारियों तक ही सिमट कर रह गई है। जबकि आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय जबलपुर से काउंसलिंग की सूची भेजी गई थी। कक्ष प्रभारियों ने ऑनलाइन और ऑफलाइन काउंसलिंग की सूची मिलान करके समिति के पास भेज दी थी।  
समिति के अप्रूवल के बाद सूची को तत्कालीन आयुष मंत्री रहे रुस्तम सिंह और जालम सिंह पटेल द्वारा नोट शीट पर दी गई सिफारिश के आधार पर तत्कालीन आयुक्तों ने एडमिशन की सूची पर अंतिम हस्ताक्षर किए हैं। यानी कक्ष प्रभारियों की गलतियों पर  समिति के सदस्य और आयुक्त ने भी  मुहर लगा दी।

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