जवाहर लाल कैंसर अस्पताल का एक और फर्जीवाड़ा

जवाहर लाल कैंसर अस्पताल
  • शेल कंपनियां बनाकर बेची गरीबों को महंगी दवाएं

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। ट्रस्ट के नाम पर चल रहे जवाहर लाल नेहरू कैंसर अस्पातल में अनियमितताओं के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। अस्पताल के फर्जीवाड़े की तमाम परतें अब खुलने लगी हैं। गरीब मरीजों के नाम पर फर्जीवाड़ा करने के साथ ही अस्पताल प्रबंधन ने दवा खरीदी में भी जमकर गड़बड़ी की। अस्पताल प्रबंधन ने न केवल शेल कंपनियों का गठन किया, बल्कि महज चार महीने में ही गरीब मरीजों को 14 करोड़ रुपए की दवाएं बेच दी। जिससे पांच करोड़ का मुनाफा, भी कमाया। इस मामले में अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ लोकायुक्त में भी शिकायत दर्ज कराई गई है।
गरीब कैंसर पीड़ित मरीजों को रियायती दरों पर इलाज मुहैया कराने के लिए शुरू किए गए जवाहर लाल नेहरू कैंसर अस्पताल मरीजों से इलाज ही नहीं दवा के नाम पर भी मनमानी वसूली कर रहा है। अस्पताल मरीजों का हवाला देकर दवा कंपनियों से दवाओं पर भारी डिस्काउंट ले रहा है, लेकिन इसका फायदा मरीजों को देने की बजाय उन्हें प्रिंट रेट पर दवाएं बेची जा रही हैं। यही नहीं अस्पताल में ही नई कंपनी शुरू कर टैक्स चोरी और फर्जीवाड़ा किया जा रहा है। इस संदर्भ में लोकायुक्त में शिकायत की गई है। शिकायत में कहा गया कि अस्पताल के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा शेल कंपनियों का गठन किया गया और करीब आठ करोड़ रुपए का गबन किया। इन कंपनियों के माध्यम से करोड़ों रुपए के आयकर और जीएसटी की चोरी की गई। आधिकारियों द्वारा दिव्यज्ञान फार्मास्युटिकल, वियोदमान इंटरप्राइजेज, पीपी इंटरप्राइजेज, गोल्ड एंड गोल्ड इंटरप्राइजेज और आशिर्वाद इंटरप्राइजेज नाम की कंपनियां तैयार कीं। इनके बिलों में भारी गड़बड़ी सामने आई है।
कंपनी का गठन कर कमाया भारी भरकम मुनाफा
देश के पहले चीफ आॅफ डिफेंस रहे मेजर जनरल बिपिन रावत के भाई रिटायर्ड मेजर जनरल टीपीएस रावत के साथ भी धोखाधड़ी का मामला सामने आया है। दरअसल टीपीएस रावत को अस्पताल का डायरेक्टर नियुक्त कर बिना जानकारी लाखों के चैक पर साइन कराने की कोशिश की। जब टीपीएस रावत ने इसका विरोध किया तो उन्हें पद से हटाकर उनके खिलाफ दुष्प्रचार भी किया। शिकायतकर्ता रीटा. मेजर जनरल रावत के मुताबिक अस्पताल की सीईओ ने बेटे धनंजय पाराशर के नाम से अवांट्स कैंसर सपोर्ट फाउंडेशन नाम से कंपनी का गठन किया। कंपनी ने चार महीने में ही मरीजों को करीब 14 करोड़ की दवाएं बेच कर 4.6 करोड़ रुपए का भारीभरकम मुनाफा भी कमाया। दवा के लिए बनाई गई कंपनी में करीब तीन करोड़ रुपए का इनकम ,अवांट्स कंपनी के सारे दस्तावेज, टैक्स तथा जीएसटी की राशि ,कम्प्यूटर और अन्य सामग्री को खुर्द बुर्द कर दिया गया है। आशंका जताई गई है कि इन्हें  कार्यालय से हटाकर कहीं और रखवा दिया गया है।  शिकायत में कहा गया है कि धनंजय पाराशर ने इलेक्ट्रिक कार खरीदी जिसके चार्जिंग स्टेशन के निर्माण का खर्च अस्पताल के व्यय पर किया जा रहा है। अस्पताल से प्राप्त पे स्लिप के मुताबिक दिव्या पाराशर को प्रतिमाह 2.80 लाख तो उनके भाई राकेश जोशी को 2.45 लाख रुपए प्रतिमाह वेतन दिया जाता है।

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