दो जिलों से 20 फीसद समर्पण निधि जुटाने का भाजपा का लक्ष्य

भाजपा का लक्ष्य
  • लगातार फिसड्डी रहे भोपाल को दी राहत, ग्वालियर को भी मिला कम टारगेट

भोपाल/हरीश फतेह चंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। समर्पण निधि अभियान के तय लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रदेश भाजपा संगठन द्वारा तमाम जिलों के लिए राशि का लक्ष्य तय कर दिया गया है। खास बात यह है कि लक्ष्य को हासिल करने के लिए भाजपा संगठन ने चारों महानगरों में शामिल इंदौर और जबलपुर से ही करीब 20 फीसदी राशि जुटाने का तय किया है। इस मामले में भोपाल व ग्वालियर जैसे महानगरों को कम लक्ष्य देकर इन जिलों के संगठन को राहत दी गई है।
यह दोनों महानगर वाले जिले प्रदेश की राजनीति से लेकर प्रशासन के लिए बेहद अहम माने जातें हैं। दरअसल ग्वालियर चंबल इलाका प्रदेश का वो इलाका हैं जहां से शिव सरकार में सर्वाधिक मंत्री आते हैं। यह बात अलग है कि इनमें से अधिकांश मंत्री श्रीमंत समर्थक हैं। संगठन द्वारा जिलों के लिए तय किए गए लक्ष्य में इंदौर  को 15 करोड़ रुपए का भारी भरकम टारगेट दिया गया है। इसमें शहर के लिए दस करोड़ तो ग्रामीण इकाई के लिए 5 करोड़ रुपए का लक्ष्य दिया गया है। इस मामले में दूसरे नंबर पर जबलपुर जिला है। इस जिले को 11 करोड़ रुपए का लक्ष्य दिया गया है। इसके उलट भोपाल जैसे बेहद महत्वपूर्ण जिले को महज 5 करोड़ रुपए का ही लक्ष्य दिया गया है। यह वो जिला है जहां पर सरकार से लेकर संगठन तक के सभी महत्वपूर्ण लोगों का न केवल ठिकाना है , बल्कि कई पूर्व मंत्री और संगठन के अलावा सत्ता साकेत से जुड़े बेहद प्रभावशाली लोग रहते हैं। इसी तरह से ग्वालियर जिले को भी महज पांच करोड़ रुपए का लक्ष्य दिया गया है। इस जिले में शहरी इकाई के लिए  4 करोड़ और ग्रामीण जिला इकाई के लिए एक करोड़ रुपए का लक्ष्य तय किया गया है। खास बात यह है कि लक्ष्य तय करते समय महानगरों के अलावा राजनैतिक रुप से बेहद महत्व वाले इन दोनो ही जिलों की तुलना में कई अन्य जिलों को इनसे अधिक लक्ष्य दिया गया है। इनमें छिंदवाड़ा जिला भी शामिल है। इस जिले के लिए आठ करोड़ का लक्ष्य तय किया गया है।  इसी तरह से अन्य जिलों में उज्जैन को 6 करोड़, रीवा को 4 करोड़ , सागर को 4 करोड़ , छतरपुर को 2 करोड़ , रतलाम को 2 करोड़ , गुना को डेढ़ करोड़ और खंडवा जिले को 1 करोड़ का लक्ष्य दिया गया है। प्रदेश में अब तक किस जिले से इस निधि के माध्यम से कितना पैसा आया, पार्टी कल यानि की 24 फरवरी को इसकी समीक्षा करने जा रही है। दरअसल भाजपा में पुरानी परम्परा है कि पार्टी का खर्च कार्यकर्ताओं और समान विचारधारा वाले लोगों से चंदा लेकर निकाला जाता है। दो साल पहले तक संगठन द्वारा इसके लिए महज 15 से 20 करोड़ तक का ही लक्ष्य तय किया जाता रहा है, पर इस साल इसे अचानक बढ़ाकर 150 करोड़ कर दिया गया है। अब तक समर्पण निधि से जिस जिले से जितनी राशि आती थी, उसका पचास फीसदी हिस्सा उस जिले के संगठन को इसके अलावा 25 फीसदी केन्द्रीय संगठन को और इतनी ही राज्य संगठन अपने पास रखता है। इस राशि से पार्टी कार्यालयों के सालभर के खर्चे चलते थे। इस बार टारगेट एकदम से बढ़ाने के पीछे सोच यह है कि इस 150 करोड़ की राशि को बैंक में जमा किया जाए और इसके ब्याज से खर्च चलाया जाए।
कल की जाएगी समीक्षा  
भाजपा ने 24-25 फरवरी को इस अभियान की समीक्षा के लिए मंत्री, सांसद, विधायक, जिला अध्यक्ष और जिला प्रभारियों समेत अन्य वरिष्ठ नेताओं की बैठक बुलाई है। इस बैठक में 11 फरवरी से अब तक किस जिले ने कितनी समर्पण निधि का संग्रह किया, उसकी समीक्षा की जाएगी। अभियान में आने वाली दिक्कतों पर भी इस बैठक में बात की जाएगी। बैठक में सीएम, केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर समेत पार्टी के अन्य दिग्गज नेता शामिल रहेंगे। भाजपा हर साल अपने शीर्ष नेता पं. दीनदयाल उपाध्याय की पुण्यतिथि से समर्पण निधि अभियान की शुरुआत करती है। इस साल भी इसकी शुरुआत 11 फरवरी से हो गई है। इसके लिए 25 सदस्यीय कमेटी का भी गठन किया गया है। इसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय आदि को शामिल किया गया है। मंत्रियों, सांसदों को जिलों के प्रभार देकर उन्हें जिम्मेदारी दी गई है कि वे जिला अध्यक्षों और प्रभारियों के साथ समन्वय बनाकर जल्दी से जल्दी टारगेट को अचीव कराएं। जिन मंत्रियों को इस काम में लगाया गया है, उनमें गोपाल भार्गव, नरोत्तम मिश्रा, भूपेन्द्र सिंह, जगदीश देवड़ा, ओम प्रकाश सकलेचा, विश्वास सारंग, प्रद्युम्न सिंह तोमर, राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव शामिल हैं।
कम लक्ष्य की यह वजह
भोपाल जिला संगठनात्मक रूप से शहर और ग्रामीण में बंटा है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि भोपाल जिला ऐसा जिला है, जहां पर बीते कई सालों से लगातार तय किए गए लक्ष्य को पूरा नहीं किया गया है। इसकी वजह से इस बार लक्ष्य कम तय किया गया है। हालांकि इस मामले में अधिक लक्ष्य पाने वाले जिलों के नेताओं का कहना है कि अच्छा काम करने का इसे इनाम माना जाए या फिर कुछ ओर। दरअसल तय लक्ष्य को हासिल नहीं करने के बाद भी प्रदेश संगठन द्वारा भोपाल जिले के संगठन को कभी कोई सजा नहीं दी गई , बल्कि जिले के संगठन की कमान उन नेताओं को ही दोबारा दी जाती रही है, जो तय लक्ष्य को हासिल करने में फिसड्डी रहे हैं।

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