सालाना 55 हजार करोड़ बचाएगी सरकार

खनन माफिया
  • खनन माफिया पर कठोर कानून की लगाम

मप्र में भू माफिया, ड्रग्स माफिया, अपराधियों, तस्करों पर नकेल कसने के बाद अब शिवराज सरकार ने खनन माफिया के साम्राज्य का खात्मा करने के लिए कठोर कानून का पहरा बैठा दिया है। सरकार ने मप्र खनिज अवैध परिवहन, भण्डार नियम 2022 को हरी झंडी दी है। इससे सरकार सालाना 55 हजार करोड़ रूपए से अधिक की खनिज संपदा बचाएगी। साथ ही सरकार की खनिज संपदा से होने वाली आय में बढ़ोतरी भी होगी।

गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
मप्र में खनिज संपदा के अवैध खनन को रोकने के लिए सरकार ने पूर्व में कई कदम उठाए हैं, लेकिन वे असरकारी साबित हुए हैं। इसको देखते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के दिशा-निर्देश पर सरकार ने खनन माफिया पर नकेल कसने के लिए कठोर कानून बनाया है। गत दिनों मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में निर्णय लिया गया कि अवैध खनन, परिवहन और भंडारण पर 15 गुना रायल्टी वसूली जाएगी। साथ ही इतनी ही राशि पर्यावरण क्षति के रूप में ली जाएगी। यानी अवैध परिवहन, खनन और परिवहन करने वाले से 30 गुना दंड वसूला जाएगा। यही नहीं लगाया गया अर्थदण्ड जमा नहीं करने पर जप्त वाहन एवं मशीनरी आदि को राजसात किया जाएगा। जुर्माना की राशि जमा करने पर वाहन की सुपुदर्गी मिलेगी। इसके लिए कैबिनेट ने मप्र खनिज अवैध परिवहन, भंडार नियम 2022 को हरी झंडी दी है।
अवैध खनन, परिवहन, भंडार के कारण अधिरोपित अर्थदंड की राशि जमा न होने पर मप्र भू-राजस्व संहिता, 1959 के प्रावधानों के तहत राशि वसूली तथा कुर्की किए जाने का प्रावधान किया गया है। परिमिट में दर्ज मात्रा से अधिक परिवहन के मामलों में खनिज रायल्टी की 15 गुना वसूली होगी। नियमों में कलेक्टर द्वारा पारित आदेश के विरूद्ध संभागायुक्त को अपील प्रस्तुत करने का प्रावधान पूर्व की तरह ही रहेगा। संभागायुक्त द्वारा पारित आदेश के विरूद्ध पुनरीक्षण याचिका राजस्व मंडल को प्रस्तुत किए जाने का प्रावधान किया गया है। इन सुधारों से प्रदेश में अवैध उत्खनन, परिवहन तथा भंडारण पर प्रभावी नियंत्रण हो सकेगा तथा उपरोक्त नियमों में एकजाई प्रावधान होने से प्रकरणों के निराकरण में पारदर्शिता एवं सुगमता हो सकेगी। नए कानून के तहत जब्त वाहन छुड़ाने के लिए संबंधित को 50 हजार से 4 लाख रुपए तक जुर्माना भरना होगा। यह राशि वाहन के हिसाब से निर्धारित की गई है। दो एक्सल वाहन पर 50 हजार रुपए, डंपर पर एक लाख रुपए, 10 पहिया वाहन पर 2 लाख रुपए, 10 पहिया से अधिक वाहन पर 4 लाख रुपए की पर्यावरण क्षति की राशि वसूली जाएगी।

माफिया की मनी और मसल का जोर खत्म
मप्र में खनिज संपदा के अवैध खनन पर अभी तक किसी का जोर नहीं चल रहा था। खनन माफिया मनी और मसल के जोर पर नर्मदा सहित प्रदेशभर की नदियों को खोखला कर रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार माफिया खनिज संपदा के अवैध खनन और नदियों से अवैध रेत निकालकर सरकार को सालाना 55 हजार करोड़ रुपए की चपत लगा रहे हैं। वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सख्ती के बाद प्रशासन ने जहां-जहां सख्ती की है माफिया ने पुलिस, वन और खनिज विभाग पर हमला बोला है। लेकिन सरकार के नए कानून से अब माफिया की मनी और मसल का जोर खत्म हो जाएगा। साथ ही सरकार की आय में इजाफा भी होगा।
एक अनुमान के अनुसार मप्र की नदियों के पेट से सालाना वैध तरीके से 2.25 लाख करोड़ रुपए की रेत निकाली जाती है। जबकि अवैध तरीके से 30 हजार करोड़ रुपए की। वहीं करीब 25 हजार करोड़ रूपए की अन्य खनिज संपदा का अवैध खनन होता है। हद तो यह है कि प्राकृतिक संसाधनों का दोहन नेताओं, अफसरों और माफिया की मिलीभगत से हो रहा है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि कोरोनाकाल में जब पूरा देश घरों में कैद था, तब भी नर्मदा में रेत का अवैध खनन धड़ल्ले से होता रहा। शासन और प्रशासन कोरोना संक्रमण को कंट्रोल करने में लगा रहा और माफिया नदियों को खोदने में जुटे रहे। अब एनजीटी ने अवैध खनन पर चिंता जाहिर की तो सरकार ने भी सख्त कदम उठाया है।

शिवराज की सख्ती से आई चुस्ती
नर्मदा सहित प्रदेश की नदियों में रेत का अवैध खनन किस कदर हुआ है, इसका अंदाजा इस साल की पहली कमिश्नर-कलेक्टर कांफ्रेंस के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सख्त तेवर देखकर लगाया जा सकता है। मुख्यमंत्री ने कई बार अफसरों को जमकर फटकार लगाई और उन्हें हिदायत दी कि वैध कॉन्ट्रेक्टर को हमें प्रोटेक्ट करना है, अवैध को रोकना है। रेत के काले धंधे को हमें पूरी तरह से खत्म करना है। वाहन जब्त करने से कुछ नहीं होगा, उन्हें राजसात करना है। अवैध के नाम पर पैसे वसूलना पाप है, यह नहीं होने देंगे। रेत से किसी ने पैसा निकालने की कोशिश की तो मैं किसी को छोडूंगा नहीं। ऐसी शिकायतें नहीं आनी चाहिए, अगर शिकायतें आएंगी तो मैं कड़ी कार्रवाई करूंगा। नौकरी से बर्खास्त तक कर दूंगा। सभी यह ध्यान रखें। रेत से अगर किसी ने पैसा बनाना सोचा तो मैं किसी को नहीं छोडूंगा, किसी के दवाब में आने की जरूरत नहीं है। मैंने तय किया है कि मैं भी कॉन्ट्रेक्टर से बात करूंगा, उनसे भी फीडबैक लूंगा। मुख्यमंत्री की नाराजगी के बाद नर्मदा किनारे के जिलों का प्रशासन सक्रिय भी होता रहा है। नर्मदा में अवैध खनन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई होती रही है। लगभग हर जिले में अवैध खनन करने वाली मशीनों का जब्त किया जाता रहा है। लेकिन अवैध खनन कभी रूका नहीं। लेकिन अब सरकार का नया कानून माफिया की कमर तोड़ देगा। इससे प्रदेश में अवैध खनन रूकने की संभावना बढ़ गई है।
गौरतलब है कि एनजीटी ने इस बात पर कई बार चिंता जताई है कि नर्मदा सहित प्रदेश की नदियों में मशीनों से रेत की खुदाई की जा रही है। गौरतलब है कि नर्मदा नदी में मशीनों के जरिए रेत खनन पर रोक लगाई हुई है। नर्मदा में सिर्फ मैन्युअल तरीके से ही रेत खोदी जा सकती है। लेकिन नर्मदा में आज भी मशीनें धड़ाधड़ रेत खोद रही हैं। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने पूर्ववर्ती शासनकाल में नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए कई कदम उठाए थे। लेकिन दिसंबर 2018 में सत्ता परिवर्तन के बाद प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद एक बार फिर से नर्मदा में अवैध रेत खनन का सिलसिला शुरू हुआ। कांग्रेस के 15 माह के शासनकाल में माफिया ने नर्मदा में मशीनों से जमकर खुदाई की। यही नहीं मार्च 2020 में सत्ता परिवर्तन के बाद भाजपा की सरकार बनी तब भी माफिया नर्मदा नदी से रेत निकालने में जुटा रहा। विगत साल विदिशा निवासी रूपेश नेमा ने एनजीटी में एक याचिका लगाकर नर्मदा नदी में अवैध खनन की ओर सरकार का ध्यान आकृष्ट किया।

खदानों पर नेताओं और माफिया का राज
अगर यह कहा जाए की मप्र में खनिज माफिया ने बेल्लारी की लूट के रिकॉर्ड भी तोड़ दिए हैं तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। कोल मंत्रालय की रिपोर्ट में भी मप्र में हो रहे अवैध खनन पर चिंता जाहिर की गई है। ज्ञातव्य है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मप्र को औद्योगिक हब बनाना चाह रहे हैं। किसी भी प्रदेश के औद्योगिक विकास में खनिज संसाधनों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। खनिज उपलब्धता की दृष्टि से मप्र देश का चौथा खनिज संपन्न राज्य है। विकास की आवश्यकता के अनुरूप खनिजों की मांग औद्योगिक प्रगति के साथ बढ़ती जाती है। इसी मांग की पूर्ति के लिए वैध की आड़ में अवैध उत्खनन हो रहा है। सरकार भले ही अवैध खनन रोकने के दावे पर दावे करे, लेकिन हकीकत यह है कि अवैध खनन साल दर साल बढ़ता जा रहा है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अवैध खनन को लेकर जितने मामले प्रदेश की अदालतों में हैं, उतने अन्य किसी राज्य में नहीं हैं। प्रदेश के हर हिस्से में अवैध खनन यों तो खनिजों का खनन देश की अहम जरूरत है। लेकिन कुछ दशकों से समूचे देश में अवैध खनन की बाढ़ आ गई है। यह कारोबार नेताओं, अफसरों और माफिया की मिलीभगत की वजह से एक संगठित अपराध का रूप ले चुका है। मप्र में अवैध खनन माफिया ने लूट के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं और इसमें वो अफसर भी शामिल हैं, जिन पर इसे रोकने की जिम्मेदारी है। ऐसे में अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहल पर मप्र खनिज अवैध परिवहन, भंडार नियम 2022 को हरी झंडी दी गई है। इससे अवैध खनन रुकेगा।
उधर, कोल इंडिया की एक रिपोर्ट को आधार माने तो मप्र में पिछले 11 साल में करीब 78 लाख 26 हजार 863 क्यूबिक मीटर गौण खनिज और 356 हजार 778 क्यूबिक मीटर प्रमुख खनिज का अवैध खनन हुआ है। कोल मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में मप्र के अवैध खनन की जो तस्वीर प्रस्तुत की है उससे यही लगता है कि प्रदेश में संगठित तरीके से अवैध खनन हो रहा है। रेत और पत्थर के अवैध खनन के लिए कुख्यात ग्वालियर-चंबल अंचल हो या फिर मालवांचल या विंध्य या महाकौशल, हर क्षेत्र में वैध खनन की आड़ में अवैध खनन हो रहा है। चाहें गौण खनिज रेत, गिट्टी, मुरम हो या फिर प्रमुख खनिज कोयला, मैग्नीज, बाक्साइड और कॉपर हर खनिज संपदा का अवैध खनन हो रहा है। प्रदेश का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां अवैध खनन नहीं हो रहा हो। प्रदेश के गांवों में अवैध खनन की शिकायतें आम हैं। श्योपुर जिले में राजस्थान की सीमा से सटे पार्वती नदी के किनारे पत्थरों को अवैध उत्खनन हो रहा है। चंबल नदी का किनारा घडिय़ाल सेंचुरी के लिए आरक्षित है लेकिन रेत माफिया का काम जारी है। शिवपुरी जिले में नरवर और करैरा क्षेत्र में रिजर्व फोरेस्ट के भीतर, पिछोर क्षेत्र में राजापुर भड़ोरा खदान क्षेत्र में महुअर नदी का सीना चीरकर फर्शी, पत्थर की खुदाई की जा रही है।

नर्मदा की सहायक नदियों का मिलेगा जीवन
शिवराज सरकार द्वारा मप्र खनिज अवैध परिवहन, भंडार नियम 2022 कानून लागू होने के बाद नर्मदा सहित उसकी सहायक नदियों को जीवनदान मिलेगा। गौरतलब है कि मप्र की जीवनरेखा नर्मदा और उसकी लगभग एक दर्जन सहायक नदियां अपना अस्तित्व बचाने के लिए जद्दोजहद कर रही हैं। नरसिंहपुर जिले की प्रमुख नदियों शक्कर, शेढ़, सीतारेवा, दूधी, ऊमर, बारूरेवा, पांडाझिर, माछा, हिरन आदि नदियों में से कई नदियों को रेत माफिया लगभग मौत के घाट उतार चुका है। बारूरेवा, माछा, पांडाझिर, सीतारेवा, ऊमर नदी तो ऐंसी नदियां हैं कि जहां माफिया ने रेत का अंधाधुंध खनन नदी के अंदर से किया, जिससे नदी की सतह पर पानी थामने वाली कपायुक्त त्रि-स्तरीय तलहटी (लेयर) पूरी तरह उजड़ गई है। नर्मदा का हाल यह है कि उसका सीना लगातार छलनी किया जा रहा है। इससे नर्मदा के दोनों तटों पर रेत की बजाय अब कीचड़ है, नदी के अंदर से पोकलेंड मशीन के जरिए रेत निकालकर वही कार्य किया जा रहा है। शकर और शेढ़ नदी के हाल बुरे हैं। कभी इन नदियों के किनारे खरबूज-तरबूज की खेती लहलहाती थी, आज वहां उजड़ा चमन है। शकर अस्तित्व से जूझ रही है, वहीं शेढ़ को भी संकट का सामना करना पड़ रहा है।
मप्र में खनन कारोबार का इस कदर विस्तार हुआ है कि राज्य के हर हिस्से में खदानों का खनन हो रहा था जिसके चलते अवैध उत्खनन का ग्राफ बढ़ गया है। प्रदेश में करीब 28 जिलों में तो खनन माफिया का एकछत्र राज है। इन पर न तो सरकार हाथ डाल पा रही है और न ही जिम्मेदार अधिकारी। खनिज विभाग के अफसर तो इनकी जानकारी देना तो दूर किसी प्रकार मुंह खोलने को भी तैयार नहीं होते। यही वजह है कि कई जिलों में अवैध उत्खनन के मामले में खनन माफिया पर लगाए गए अर्थदंड के अरबों रुपए वसूल नहीं हो पा रहे हैं। मजबूरी में राज्य सरकार को प्रदेश के सभी कलेक्टरों को सख्त पत्र लिखकर जुर्माने की वसूली एवं प्रकरण दर्ज करने के आदेश जारी करने पड़े, लेकिन खनिज संसाधन विभाग के मंत्रालय द्वारा जारी प्रमुख सचिव के पत्र का भी इन अफसरों पर खास असर नहीं हुआ है।
मप्र में नर्मदा, चंबल, बेतवा, केन और बेनगंगा आदि बड़ी नदियों के साथ ही अन्य नदियों में जितनी रेत खदानें हैं, वह सभी अवैध हैं। इन खदानों के संचालन में न तो एनजीटी के नियमों का पालन हो रहा है और न ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मापदंडों का पालन हो रहा है। नियमों को दरकिनार नदियों का कलेजा चीरकर माफिया सालाना 30 हजार करोड़ का अवैध धंधा कर रहा है। मप्र में रेत खदानें सोना उगलती हैं। इसी वजह से माफिया सक्रिय हैं। नतीजा यह है कि रेत खनन वैध कम अवैध अधिक चल रहा है। जो खदान चल रहीं हैं उनके पास पर्यावरण मंजूरी नहीं है। प्रशासन अनजान बन रहा है और अवैध उत्खनन खुलेआम जारी है। मप्र प्रदूषण बोर्ड का दावा है कि प्रदेश में जितनी भी रेत खदान चल रही है उनमें से अधिकांश के पास पर्यावरण मंजूरी नहीं है। बिना मंजूरी के सभी खदान अवैध हैं। प्रशासन को भी खदान आवंटन से पहले पर्यावरण मंजूरी की जानकारी लेना चाहिए था। रेत के अवैध उत्खनन, अवैध भंडारण व ओवरलोड परिवहन के कारण नदियों की सभी स्वीकृत रेत खदानों का 90 प्रतिशत रेत पूरी तरह समाप्त हो चुका है। खनन माफिया ऐसे स्थानों से रेत का उत्खनन कर रहे है, जहां खदान स्वीकृत नहीं है। इससे नर्मदा, चंबल, बेतवा, केन, बेनगंगा आदि नदियों के हालात खनन के कारण गंभीर हैं।

खानें खोलेंगी लक्ष्मी की राह
अवैध खनन पर प्रतिबंध लगने के बाद सरकार के राजस्व में ऐतिहसिक बढ़ोतरी की संभावना बढ़ गई है। गौरतलब है कि मप्र की खनिज संपदा की देशभर में मांग है। अभी तक अवैध खनन के माध्यम से माफिया इसकी भरपाई कर रहे थे। अब सरकार व्यवस्थित तरीके से खनिज संपदा का खनन कराकर बड़ा राजस्व प्राप्त कर सकती है। यही नहीं आर्थिक तंगहाली से जूझ रही प्रदेश सरकार अब खजाना भरने की प्लानिंग कर रही है। उसके मद्देनजर जीआईएस अर्थात भौगोलिक सूचना तंत्र विकसित किया जा रहा है। इस सिस्टम से न केवल अवैध खनन पर अंकुश लगेगा बल्कि नए खनन क्षेत्र चिन्हीकरण व माइनिंग लीज जारी करने की प्रक्रिया में तेजी लाई जा सकेगी। इससे अगले दो साल में खान विभाग का राजस्व करीब 10 हजार करोड़ रुपए पहुंचने की संभावना है। केन्द्र सरकार की योजना के अंतर्गत जियोग्राफिकल इनफोरमेशन सिस्टम के जरिए सेटेलाइट से भोपाल में कृषि, राजस्व, माइनिंग आदि विभिन्न सेक्टरों से सम्बंधित डेटा एकत्रीकरण के आधार पर विभाग द्वारा उक्त प्लान तैयार की गई। इसमें नए खनिजों की खोज अर्थात एक्सप्लोरेशन व माइनिंग विभाग के बीच बेहतर समन्वय पर फोकस रखा गया है।
यह सिस्टम अवैध खनन गतिविधियों पर अंकुश लगाने में कारगर साबित होगा। दो खानों के बीच का कितना पार्ट खाली पड़ा है। ऐसे प्लॉट भी मिनटों में खोजे जा सकेंगे। ऐसे प्लॉट से भी खासा राजस्व मिलने की संभावना है। फिलहाल, ऐसे बीच वाले प्लॉट पर अवैध माइनिंग अधिक की जा रही है। चूंकि खनिज भण्डारों का पूरा खाका नक्शे पर लाया जा सकेगा अत: वहां अवैध खनन गतिविधियां काफी हद तक थामी जा सकेगी। इस सिस्टम के जरिए प्रदेश में प्रधान खनिजों की खानें दो गुना होने की संभावना है। जबलपुर, रीवा, शहडोल, कटनी, बालाघाट, छिंदवाड़ा, सतना, उमरिया आदि जिलों में लगभग 500 प्रधान खनिजों की खानें चल रही हैं। सिस्टम के अस्तित्व में आने के बाद इतनी ही और खानें बढऩे की उम्मीद है। सूत्रों के अनुसार तमाम खदानों में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएंगे। इन पर जिला कलेक्ट्रेट में डेटा कलेक्शन सेंटर से नियंत्रण रहेगा। पता चला है कि इससे खनिज परिवहन में होने वाली तमाम गड़बडिय़ों पर प्रभावी रोक लगाई जा सकेगी। कितना माल भरा गया? गाड़ी का रास्ता कौन सा है? कहां पहुंची? कहां खाली हो रही है? आदि जीपीएस सिस्टम से पता लगाया जा सकेगा। संभाग स्तर पर क्षेत्रीय कार्यालयों में प्रयोगशाला नुमा डेटा कम्पाइलेशन व वेरीफिकेशन का काम होगा। ये लेब्स भोपाल में बनने वाली मुख्य लेब से जुड़ी होगी।

मप्र की चमकती रेत पर पड़ोसियों की नजर
अवैध खनन देश के लिए एक गंभीर मसला है और किसी न किसी रूप में पूरे देश में यह धंधा चल रहा है। चाहे आंध्र प्रदेश में लौह अयस्क का मामला हो, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में बालू खनन का या झारखंड में कोयले का, देश भर में अवैध खनन माफिया की हर जगह तूती बोलती है। मप्र में खनन कारोबार के प्रति प्रदेश सरकार के अब तक के नरम रवैए को देखते हुए उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कारोबारी और माफिया मप्र की चमकती रेत के काले कारोबार पर नजर गड़ाए हुए है। उत्तर प्रदेश में खनन माफिया का तिलिस्म कभी कोई सरकार नहीं तोड़ पाई। वहां के नदी किनारे, पहाड़ी इलाकों को छूता कोई भी जिला ऐसा नहीं बचा है, जो अवैध खनन माफिया के कब्जे में न हो। ऊपरी तौर पर देखा जाए, तो यह तस्वीर बहुत गंभीर नहीं दिखती, लेकिन इसका असली खेल तब समझ में आता है, जब यह बात सामने आती है कि समूचा धंधा राजनेताओं के संरक्षण मे फल-फूल रहा हैं। उत्तर प्रदेश के कई सांसद और विधायक सीधे तौर पर इस धंधे में जुड़े हैं। ऐसे में हमेशा वहां वर्चस्व के लिए खूनी होली मचती रहती है। ऐसे में अब वहां का कारोबारी मप्र की ओर रूख करने को आतूर है। इसके लिए उन्होंने मप्र के खनन व्यवसायियों से सांठ-गांठ शुरू कर दी है। पर्यावरण का काम करने वाले फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर के सचिव डॉ. राजीव चौहान कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में लोग बंदूक की नोक पर खनन का काम करते हैं। ऐसे में अब वहां रोज होने वाले खून-खराबें से लोग आजीज आ चुके हैं। इसलिए अधिकांश माफिया मप्र में संभावनाएं तलाश रहे हैं। डॉ. राजीव चौहान कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी, अखंड सिंह, ब्रजेश सिंह, मुन्ना बजंरगी, धनंजय सिंह आदि जैसे बड़े बाहुबली अपने कारोबार को दूसरे राज्यों में बढ़ाना चाहते हैं। क्योंकि उनके कारोबार को कई अन्य माफिया की चुनौती मिल रही है। इसलिए इन खनन माफिया ने मध्य प्रदेश में अपना पैर जमाने की तैयारी कर दी है।
नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर कहती हैं कि मप्र के माफिया पर किसी का जोर नहीं चलता है। यहां का माफिया इस कदर संगठित है कि वह खुद रेत की खदानें आपस में बांट लेते हैं। नतीजतन पूरे प्रदेश में ये माफिया हर साल अवैध रूप से अरबों की रेत निकालकर अपनी तिजोरियां भर रहे हैं और सरकार है कि अपने कामकाज को चलाने के लिए लगातार बाहर से कर्ज ले रही है। अब तो राज्य सरकार की प्रशासनिक कमजोरियों का यह आलम है कि रेत के उत्खनन के लिए ये माफिया, सरकार की रत्ती भर परवाह नहीं कर रहे हैं और खुद ही तय कर लेते हैं कि किस खदान का दोहन कौन माफिया करेगा। जहां इस बारे में फैसला नहीं हो पाता, वहां अब खूनी संघर्ष की नौबत भी आने लगी है। आश्चर्य है कि रेत तो सरकारी है, और उस पर माफिया इस तरह अपना हक जता रहे हैं जैसे उस पर उनका संपूर्ण अधिकार है। इससे यह साबित होता है कि प्रदेश की खनिज संपदा पूरी तरह माफिया के हवाले है। लेकिन अब माफिया पर नकेल कसने के लिए सरकार ने अब तक का सबसे बड़ा कदम उठाया है। जानकारों का कहना है कि सरकार ने अगर अपने नए कानून को सही तरीके से क्रियान्वित करा दिया तो खनिज संपदा का दोहन होने से तो बचेगा ही सरकार को बड़ा राजस्व भी मिलने का रास्ता बनेगा। साथ ही पर्यावरण संरक्षण भी होगा।

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