भोपाल नगर निगम में दागी ही दमदार, वे सभी पर हैं भारी

भोपाल नगर निगम
  • अफसर भी रहते हैं उनके रसूख के सामने नतमस्तक…

भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। करीब 3,000 करोड़ रूपए के बजट वाले भोपाल नगर निगम में भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी भी चरम पर है। आलम यह है कि निगम में बिना कुछ दिए कोई काम नहीं होता, इससे लोग परेशान हैं। लेकिन भ्रष्ट व रिश्वतखोरों का निगम में भरपूर संरक्षण मिलता है। यही वजह है कि नगर निगम के 60 अफसरों-कर्मचारियों के खिलाफ लोकायुक्त- ईओडब्ल्यू में मामले दर्ज होने के बाद भी उनका कोई बाल बांका नहीं कर पा रहा है। यही नहीं निगम में दागी ही दमदार बने हुए हैं। नगर निगम में दागदारों को किस प्रकार संरक्षण मिल रहा है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2016 के बाद निगम में घोटालों की लंबी सूची है, लेकिन अंदरूनी जांच के नाम पर दबा दिया जाता है। निगम खुद पुलिस या अन्य जांच एजेंसियों के पास मामले दर्ज नहीं कराता है। वहीं लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू में दर्ज मामलों के संदर्भ में भी जानकारी छुपाई जा रही है। इसका प्रभाव यह पड़ रहा है कि निगम में भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी रूकने का नाम नहीं ले रही।
लोकायुक्त में 40, ईओडब्ल्यू में 20 शिकायतें: नगर निगम की लगभग हर शाखा में भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी चल ही है। लेकिन वित्त शाखा में सबसे अधिक गड़बड़ होती है। वित्त शाखा के तीन अफसर चार कर्मचारियों के खिलाफ लोकायुक्त व ईओडब्ल्यू में शिकायत है। इनकी भी जांच हो तो आय से अधिक संपत्ति का खुलासा होगा। हाल में आरटीओ से भोपाल निगम में प्रतिनियुक्ति पर आए एक अफसर भी जांच के दायरे में हैं। बताया जा रहा है कि यहां हर भुगतान के लिए कमिशन का प्रतिशत तय है और ये नहीं देने वाले को भुगतान के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। लोकायुक्त में 40 जबकि ईओडब्ल्यू में 20 अफसर- कर्मचारियों के भ्रष्टाचार व रिश्वतखोरी को लेकर शिकायते हैं।
जांच और कार्रवाई में लचरता
नगर निगम में भ्रष्टाचार की जड़े सिर्फ वित्त शाखा तक ही सीमित नहीं है। यहां सीवेज से लेकर सिविल शाखा तक ये आम है। सीवेज प्रोजेक्ट के तहत ठेका एजेंसी को 300 करोड़ रुपए का भुगतान हुआ, लेकिन काम पूरा नहीं हो पाया। सीविल में भी यहां यातायात पार्क, यादगारे शाहजहांनी समेत अन्य में निर्माण पर सवाल खड़े हुए। पूर्व सदस्य एमआईसी, राजस्व शाखा आशाराम शर्मा का कहना है कि हमारी परिषद के समय ही ये घोटाले पकड़े गए थे। दोषियों को सजा दिलाने परिषद ने बकायदा संकल्प तक पारित किया, लेकिन प्रशासनिक स्तर पर जांच और कार्रवाई में लचरता रही। सीधे पुलिस या इसी तरह की तीसरी एजेंसी को जांच का जिम्मा दिया जाए तो दोषी को सजा हो। हाल में राज्य सूचना आयोग में खुद निगमायुक्त केवीएस चौधरी ने अपील दायर कर इनके नामों की जानकारी नहीं देने का निवेदन किया था। हालांकि आयोग ने इनके नामों व लोकायुक्त-ईओडब्ल्यू से हुए पत्राचार की पूरी जानकारी देने का कहा।
कई बड़े घोटाले दबा दिए गए
नगर निगम में भ्रष्टों का राज किस तरह चलता है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अब तक कई घोटाले सामने आने के बाद भी उन्हें दबा दिया गया। 2016 में परिवहन पार्ट्स घोटाला सामने आया। करीब पांच हजार फर्जी फाइलों से वाहनों के पार्ट्स खरीदे गए थे। मामले में निगम ने अपने ही स्तर पर जांच शुरू की, लेकिन रिपोर्ट तैयार ही नहीं हो पाई। 2016 में ही डीजल घोटाला सामने आया। यहां मनमानी से डीजल फिलिंग की जा रही थी। प्रतिमाह करीब 25 हजार लीटर डीजल की गड़बड़ी खुद तत्कालीन निगमायुक्त छवि भारद्वाज ने पकड़ी थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। 2017 में नगर निगम में बिल्डिंग कंप्लीशन सर्टिफिकेट घोटाला सामने आया। इसमें करीब 200 करोड़ रुपए का लाभ पहुंचाने की आशंका जताई। इसमें भी जिम्मेदार अफसरों को बचा लिया गया। 2017 में ही माय बाइक में घोटाला सामने आया। निगम की किराए की सायकिल घोटाले में 30 लाख रुपए का एक शून्य बढ़ाकर तीन करोड़ रुपए करने का मामला सामने आया, कोई कार्रवाई नहीं की। निगम में मॉड्यूलर टॉयलेट घोटाला  भी सामने आया। इसमें उज्जैन सिंहस्थ में उपयोग किए मॉड्यूलर टॉयलेट निगम के स्वच्छता अभियान तहत खरीद लिए गए। इसमें भी कोई जांच व कार्रवाई नहीं हुई। भेल क्षेत्र की सूरज नगर कॉलोनी के नाम पर नई जगह पर अनुमति देकर विकास कराने को लेकर लोकायुक्त में मामला दर्ज है। निगम के 25 कर्मचारियों के इसमें नाम है, लेकिन कुछ नहीं हुआ। इस संदर्भ में निगमायुक्त केवीएस चौधरी का कहना है कि कई मामलों में एफआईआर दर्ज होती हैं तो कुछ में विभागीय जांच भी होती हैं। सभी में नियम प्रक्रियाएं तय हैं। उसके अनुसार ही काम करते हैं।

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